डॉ. नरेन्द्र जैन भारती सनावद
प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान का मिलना नैसर्गिक गुण है। जिसके ज्ञान का जितना छयोपशम होता है वह उसके कर्मों का प्रभाव है। जैन दर्शन के अनुसार ज्ञानावरणी कर्म का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है इसलिए किसी के ज्ञान प्राप्ति के साधनों पर आवरण नहीं डालना चाहिए। इससे ज्ञान में हीनाधिक फल की प्राप्ति होती है। जिस व्यक्ति के पास जितना ज्ञान होता है वह बुद्धि में उसका सम्यक उपयोग करता है क्योंकि उपयोग मानव का लक्षण है। जो व्यक्ति जीवन में गलत रास्ते पर नहीं जाता है, अपनी बुद्धि का सही उपयोग करता है। वही मनुष्य श्रेष्ठ है। मनुष्य की योग्यता गलती न दिखने में है। लेकिन ऐसा सभी के साथ नहीं होता है बुद्धि का उपयोग करने में भी कई बार गलती हो जाती है यही कर्मों का प्रभाव है इसलिए व्यक्ति को अपनी सबसे महत्वपूर्ण पूंजी बुद्धि का प्रयोग सोच समझकर यथार्थ गुणों की प्राप्ति के लिए करना चाहिए। मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है वह अपने ज्ञान और बुद्धि का सम्यक उपयोग आत्मा के हित के लिए कर सकता है लेकिन उसके लिए स्वाध्याय जरूरी है स्वाध्याय से ही सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होती है जो दिशा निर्देशन का कार्य करती है। चिंता और चिंतन में यही अंतर है। चिंता करने से काम तो होता है परंतु सफलता मिले यह जरूरी नहीं है। चिंता करने वाला व्यक्ति हमेशा असफल रहता है, जबकि चिंतन से प्राणी कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ता है क्योंकि चिंतन से सुंदर कार्यों की संरचना अपने मन मस्तिष्क में बनती है, जो जीवन के नव निर्माण में सहायक बनती है। चिंतन से अच्छे विचार, अच्छी भावनाएं हमारे मन में आती है, जो भाव शुद्ध बनाए रखने में सहायक बनती है अतः भाव शुद्धि के लिए व्यक्ति अच्छा सोचे, अच्छा विचारे और अच्छा कार्य करे, इसी में जीवन की उन्नति निहित है।