(आज के आधुनिक समय में सभी लोग सीमेंट से बने घर में रहना पसंद करते हैं और मिट्टी से बने घर में किसी को भी रहना अच्छा नहीं लगता है। अब तो ज्यादातर गाँव में ही मिट्टी से बने घर देखने को मिलते हैं नहीं तो शहर में तो हर कोई सीमेंट से बने घर में ही रहता है।)
सदियों से मिटटी के घर बनाने की जो परम्परा चली आ रही है; भारत में 118 मिलियन घरों में से 65 मिलियन मिट्टी के घर हैं? यह भी सच है कि कई लोग अपने द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों के लिए मिट्टी के घरों को पसंद करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हम शहरी केंद्रों में भी एक छोटा बदलाव देख रहे हैं, घर के मालिकों को लगता है कि उनके दादा-दादी के पास यह सही था। मिट्टी की झोपड़ी… फूस या खपरैल की छत। अगर यह विवरण सुनकर आप भारत के किसी दूर-दराज के पिछड़े गांव की तस्वीर दिमाग में बना रहे हैं तो आप गलत हैं। बदलते दौर में यह तस्वीर अब अमेरिका जैसे विकसित देश के मॉन्टेना या एरिजोना जैसे राज्यों में आपको दिख सकती है। कोरोनाकाल के बाद लोगों को खर्च कम करने के साथ ही पर्यावरण की भी चिंता हुई। इसकी वजह से कई लोग वैकल्पिक आवासीय प्रणालियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
आज के आधुनिक समय में सभी लोग सीमेंट से बने घर में रहना पसंद करते हैं और मिट्टी से बने घर में किसी को भी रहना अच्छा नहीं लगता है। अब तो ज्यादातर गाँव में ही मिट्टी से बने घर देखने को मिलते हैं नहीं तो शहर में तो हर कोई सीमेंट से बने घर में ही रहता है। वास्तु के अनुसार हर व्यक्ति को मिट्टी या भूमि तत्व के पास ही रहना चाहिए। मिट्टी से बनी वस्तुएं सौभाग्य और समृद्धिकारक होती हैं। पहले लोग मिटटी के ही मकान बनाते थे, इसका यह मतलब नहीं है कि कम पैसो के लागत के चलते लोग मिट्टी का मकान बनाते थे। मिट्टी सस्ती तो जरूर होती हैं, लेकिन मिट्टी के मकान बनाने पीछे कुछ कारण भी है, इसमें हमें शुद्ध हवा मिलती हैं । यहाँ तक की मिट्टी के मकान में अंदर का तापमान सामान्य होता है। मिट्टी के मकान हमें और पर्यावरण दोनों को लाभ पहुंचाते हैं। मिट्टी के घरों को टिकाऊ, कम लागत और सबसे महत्वपूर्ण, बायोडिग्रेडेबल होने के लिए जाना जाता है।
पहुंच में आसानी और कम लागत से, सीमेंट या स्टील के मुकाबले मिट्टी के घरों में कई फायदे हैं। आधुनिक सामग्रियों के विपरीत, वे दशकों के बाद भी स्थिर रहते हैं, और जब इन्हें नष्ट किया जाता है, तो कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न नहीं होता है। मिट्टी की ईंट, यदि स्थिर हो जाती है, तो दीवारों और फर्शों के लिए एक ठोस और टिकाऊ निर्माण सामग्री साबित हो सकती है। यह भूकंप या बाढ़ के दौरान भी दरारें विकसित किए बिना सदियों तक रह सकता है। भारत के गाँव भी तीव्र गति से आधुनिकीकरण का शिकार हो रहें है। पिछले दशक में, समय की कसौटी पर खरे उतरे बहुत से घरों को वर्तमान पीढ़ियों द्वारा स्वेच्छा से नीचे गिरा दिया गया है, उनके पीछे के समृद्ध ज्ञान से अनजान, कम आंका गया और अंततः उन्हें तथाकथित आधुनिक घरों का शिकार होने दिया गया।
‘मिट्टी के घर करीब 200 साल तक रह सकते हैं। इनमें पीढ़ी दर पीढ़ी लोग रह सकते हैं। इनके टूटने के बाद भी इनकी सामग्री पुनः इस्तेमाल की जा सकती है। दूसरी तरफ कंकरीट-सीमेंट के घरों की उम्र करीब 50 साल की होती है। उनके मलबे के निपटान की लागत भी चिंता का विषय है। उसमें भी बहुत ऊर्जा (डीजल) लगती है। सीमेंट और गिट्टी बनाने के लिए हर साल पहाड़ों को नष्ट किया जा रहा है, उन्हें तोड़ा जा रहा है। मिट्टी का घर बनाने के लिए चार बुनियादी निर्माण तकनीकें हैं जो जलवायु परिस्थितियों, स्थान और उसके आकार पर निर्भर करती हैं। इसमें, सिल: मिट्टी, मिट्टी, गोबर, घास, गोमूत्र और चूने के मिश्रण को औजारों, हाथों या पैरों से गूँथकर गांठें बनाई जाती हैं जो अंततः नींव और दीवारों का निर्माण करती हैं।
छत का भार या वजन दीवार पर नहीं, बल्कि लकड़ी के खंभों पर रखा जाता है। मिट्टी के मकान के लिए नीम की लकड़ी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है;उसमें दीमक लगने की संभावना बहुत ही कम होती है। जो कई मायनों में टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और आपदाओं से सुरक्षित हैं। मिट्टी की दीवारें प्राकृतिक रूप से इंसुलेटेड होती हैं, जिससे घर के अंदर आराम मिलता है। भीषण गर्मियों के दौरान अंदर का तापमान कम होता है, जबकि सर्दियों में मिट्टी की दीवारें अपनी गर्मी से आपको सुकून देती हैं। इसके अलावे छिद्र से भी ठंडी हवा घर में प्रवेश करती हैं। मिट्टी के मकान आज की जरूरत भी हैं, विशेषकर, तब जब सीमेंट-कंकरीट के घर बहुत महंगे बनते हैं, उनमें ऊर्जा की खपत होती है। ऐसे में मिट्टी के घरों से सैकड़ों बेघर लोगों का खुद के मकान का सपना साकार हो सकता है।
यूएन वर्ल्ड कमीशन ने पर्यावरण और विकास को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने भविष्य में ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करके सस्टेनेबल कंस्ट्रक्शन पर जोर देने की वकालत की है। उनके अनुसार, पुरानी शैली से प्रेरणा लेकर हमें बिना प्रकृति को नुकसान पहुचाएं, मजबूत और अच्छी इमारतें बनाने पर ध्यान देना होगा। ऐसे कई तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर हम एक सस्टेनेबल जीवन जी सकते हैं। ऑर्गेनिक भोजन से लेकर, घर में इस्तेमाल होने वाली चीजों तक, आधुनिक दुनिया में आउट-ऑफ-द-बॉक्स सस्टेनेबल विकल्प ढूंढना, एक नई बात लगती है।
जबकि, सच्चाई तो यह है कि यह कोई नया विकास नहीं है। खासतौर पर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर और डिजाइन की बात करें, तो हमारी प्राचीन निर्माण तकनीक ज्यादा कमाल की है, जिससे काफी कुछ सीखा जा सकता है।
प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,