मधुमेह/डाइबिटीज के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी, जिससे घर बैठे ठीक कर सकते हैं
अनेकों प्राचीन आयुर्वेदिक शास्त्रों को सार यह लेख मधुमेह रोगियों का उद्धार कर सकता है। निरंतर बढ़ती व्याधि मधुमेह- परहेज औऱ उपचार में सहायक होगा।
इस ब्लॉग में हजारों साल पुराने डाइबिटीज नाशक योगों-फार्मूलों का उल्लेख किया जा जा रहा है। इन्हें श्रद्धा भाव से आजमाकर मधुमेह की मलिनता से मुक्ति पाई जा सकती है।
यह बहुत बड़ा लेख है-
नीम-हकीम खतरे की जान…
भारत के प्राचीन ग्रन्थों में मधुमेह के बारे में वर्णन है। ज्यादातर लोग सुनी-सुनाई बातों में आकर कुछ भी दवाएं लेना शुरू कर देते हैं।
एक समय नीम का चलन इतना चला कि लोगों ने एक दिन में 10 से 20 पत्ते नीम का उपयोग किया। जबकि द्रव्यगुण विज्ञान में स्पष्ट लिखा है कि नीम केवल फाल्गुन, छेत्र और वैशाख के शुरू के 15 दिन ही नवीन 3 से 4 कोपल खाएं, ताकि कंठ कड़वा हो जाये।
नीम के अधिक सेवन से शरीर में दर्द, जोड़ों में सूजन, पाचनतंत्र की खराबी तथा थायराइड जैसी विकराल समस्या होती है। नीम ज्यादा खाने से इम्युनिटी भी घटने लगती है।
मेथीदाने का केवल पानी पीने की सलाह हमारे आयुर्वेदिक शास्त्रों ने दी है। लोग एक दिन में 10 से 20 ग्राम मेथी भसक रहे हैं। मैथी गर्म होने की वजह से भयंकर कब्ज कारक होती है।
भावप्रकाश ग्रन्थ कहता है कि युवा लोगों को 8 और 50 के बाद वालों को 3 से 4 बादाम ही लेना चाहिए।
हल्दी की मात्रा एक दिन में 50 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।
आयुर्वेद सहिंता के मुताबिक सुबह उठते ही भूलकर गर्म या गुनगुना पानी जहर के समान है।
किसी भी तरह का चूर्ण 5 से 8 ग्राम लेना पर्याप्त है, इससे अधिक पचता नहीं है। ये छोटे से अनुपान परिवर्तन आपके शरीर रूपी बर्तन को चमका सकते हैं।
मधुमेह की मलिनता,
…एक बार डाइबिटीज होने के बाद तन-मन विकारग्रस्त होकर पूरी तरह मलिन होने लगता है। मधुमेह एक साइलेन्ट रोग है।
समूचे संसारमें इस समय बड़ी तेजी से एक व्याधि बढ़ रही है जिसका नाम है- मधुमेह (Diabetes)। कुछ समय पूर्व इसे खाये-पीये बड़े लोगों की बीमारी, अमरीकी निशानी और सम्पन्नता, बड़प्पन तथा वी०आई०पी० लोगों में पनपने का प्रतीक माना जाता था। इसे राजाओं का राजरोग मकन्टे थे।
मधुमेह आजकल युवाओं एवं गरीबों में भी समान रूप से फैलती हुई फैशन की तरह आम बात होती जा रही है।
अखिल भारतीय चिकित्सा-विज्ञान द्वारा झुग्गी झोंपड़ी-क्षेत्रमें सम्पन्न कराये सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार अब तक 27 फीसदी लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं।
भारत में इस समय करीब 32 करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी की चपेट में हैं।
विश्व-स्वास्थ्य-संगठन (WHO)के अनुसार आगामी दो दशकों में यह संख्या दो गुनी हो जायगी। ये आँकड़े चौंकानेवाले हैं।
भारतीय चिकित्सा विज्ञान के चिकित्सकों द्वारा डायबिटीजके नियन्त्रित करनेके सारे उपाय बेकार हो चुके हैं।
डायबिटिक सेल्फ-केयर फाउण्डेशन का कहना है कि एक ओर तो लोगों की खान-पान की आदतों में बदलाव आ रहा है!
लोग अब भोजन के बाद पान न खाकर, पुड़िया खा रहे हैं। खाने के बाद सौंफ, मिश्री खाने का चलन मात्र होटलों तक सीमित हो गया है।
बीमार करने वाला रोजगार…
दूसरी ओर रोजगार ऐसा हो चला है कि शारीरिक श्रम करना ही नहीं पड़ता, जिससे डायबिटीजके मामलों में तेजी से वृद्धि बढ़ रही है और बड़ी संख्या में गरीब इंसुलिन के अभावमें मौत के मुँह में जा रहे हैं।
वर्तमान में अनियमित जीवन शैली, प्राकृतिक चिकित्सा से बेरुखी ऒर आयुर्वेद से घृणा के चलते डायबिटीज को लेकर हालात बेकाबू हो रहे हैं।
एलोपैथी की केमिकल दवाओं ने मस्तिष्क की नाड़ियों को तबाह कर दिया, जिससे 50 फीसदी लोग मानसिक विकृति के शिकार हो रहे हैं।
स्वस्थ्य रहने का फार्मूला…
रावण ने अर्क सहिंता में लिखा है कि देह से बड़ा धर्म कोई अन्य नहीं है। सारे सुख का आधार हमारा शरीर ही है। अगर शरीर को सुख देना चाहते हो, तो इसे तपाओं, कड़ा परिश्रम करो!
नियमित व्यायाम, अभ्यङ्ग करो, तो यह बहुत आराम देगा और तन को जितना आराम दोगे, यह उतने ही रोग देगा। सोचना आपको है।
दशरथ बनने की हसरत हो, तो कसरत करें। कसरती आदमी बेहतरीन पति होते है।
तंदरुस्ती के कुछ तहजीब हैं…सुबह जल्दी उठो, बिना स्नान और शिवभक्ति के अन्न ग्रहण न करो।
पैदल अधिक चलो, द्वेष-दुर्भावना से मुक्त रहो।
!!ॐ शम्भूतेजसे नमःशिवाय!! का निरंतर जाप करते रहो, जब तक कि यह अजपा न हो जाये।
ध्यान रखें.. दुनिया में हर कोई आपको लूटने के लिए बैठा है। ध्यान भटका, कि खुटका शुरू। शरीर कोरे ज्ञान से नहीं चलता।
डाइबिटीज की दरिद्रता…
यह बीमारी गरीबी लाने वाली कही जाती है। शरीर से दरिद्र, तो पहले हो जाते हो और फिर दवाओं के चक्कर में धन से गरीबी आने लगती है।
बम-बम भोले जपता जा…स्कंदपुराण का समस्त सार यह है कि “जो नमःशिवाय जपता, दुःख जन्म-जन्म का कटता।
बम-बम (बं-बं) बीज मंत्र है- स्वाधिष्ठान चक्र का। यह मूलाधार के बाद दूसरा चक्र है।
अगस्त्य सहिंता के अनुसार जब यह चक्र सुप्तावस्था में जाने लगता है, तो शरीर की तकदीर बिगड़ने लगती है।
स्वास्थ्य-विशेषज्ञ इस बीमारी को ‘डायबिटीज बम’ के नाम से सम्बोधित कर चेताने लगे हैं।
‘नेशनल मेडिकल एजूकेशन रिसर्च फोरम’ के मतानुसार जागरूकता का होता अभाव और साक्षरता की कमी के कारण मधुमेह की समस्या और जटिल होती जा रही है। क्योंकि इस बीमारी से ग्रस्त अनेकों लोग रहते इसके बारे में जानते भी नहीं।
अतः इस व्याधि को हमें खुद ही गम्भीरता से लेते हुए ठीक करना होगा। इसके लिए प्रकृति ने हमें अनेकों जड़ीबूटीउपहार स्वरूप प्रदान की हैं।
मधुमेह के कारण, लक्षण एवं उपचार-पद्धति को प्रचारित-प्रसारित करना सही है लेकिन सबकी तासीर विभिन्न होती हैं।
जरूरी नहीं कि जिस यपाय से आपको लाभ हुआ हो, तो दूसरे को भी होगा। इसलिए अपनी चिकित स्वयं अपनाएं। चरक सहिंता में 72 तरह के प्रमेह रोगों का उल्लेख है।
वर्तमान विनाश काल में प्रगतिशीलता तथा आधुनिकताके नाम पर प्रदूषित, अनुचित तथा अप्राकृतिक विधि के आहार- व्यवहार, खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार तथा तनाव-लगाव की मनोवृत्ति के फलस्वरूप भी मनुष्यमें मधुमेह की व्याधि तेजी से बढ़ रही है।
आलस्य से फालिस…डाइबिटीज बीमारी की चपेट में हर उस व्यक्तिके आनेकी सम्भावना रहती है, जो श्रमजीवी-परिश्रमी नहीं, आराम की जिन्दगी जीता, खाता-पीता तथा मोटा-ताजा है।
विश्व के विकसित देशोंमें यह आम धारणा है कि ४० वर्षकी आयु होते-होते यदि पेट में अल्सर नहीं हुआ, तो क्या खाक खाया- पिया? अगर हृदयरोग या उच्च रक्तचाप नहीं हुआ, तो जिन्दगी में क्या झकमारी?
बड़े व्यक्तियों की व्याधि…
इसी प्रकार डाइबिटीज बड़े आदमी होने की निशानी बन गई और हमने भी सुख की चाह में देखा-देखी इसका सम्मान किया। फिर सामान, सम्मान कुछ नहीं बचा। बल्कि कुछेक की पत्नी सामान में दम न रहने से भासग गईं।
आज कोई बिरला ही सौभाग्यशाली होगा, जो किसी भी क्षेत्र में बड़ा आदमी हो और उसे यह रोग न हो।
मधुमेह का आगमन…यदि अत्यधिक प्यास तथा भूख, ज्यादा पेशाब आना, थकावट, अचानक वजन कम होना, जख्म का देरी से भरना, गम्भीर हिचकी आना, पैरों में भड़कन-झनझनाहट रहना, जोड़ों में दर्द, सूजन, नींद न आना, शरीर में उल्लास की कमी, अनिद्रा से तनाव, तलुओं की जलन, चिड़चिड़ापन, नेत्रज्योति कम होना, सिर भारी रहना आदि से समस्याग्रस्त हैं, तो ये डाइबिटीज के लक्षण हैं। अतः आप डायबिटिक हो सकते हैं।
डायबिटीज के रिश्तेदार… से कई प्रकार की आन्तरिक विकृतियाँ गम्भीर समस्यायें यथा-किडनी (गुर्दा)- का खराब होना, अंधापन, हृदयघात ( Heart Attack), गेस्टोपेरेसिस आदि रोगोंकी सम्भावना बढ़ जाती है। अपनी प्रारम्भिक विकृति के साथ यदि मधुमेह की व्याधि एक बार हो जाती है, तो उम्रभर खामोशी से साथ रहती है।।
व्यापक रूप से व्याप्त मधुमेह की बीमारी के मामले में सर्वाधिक ध्यान देनेवाली बात यह है कि इसको नियन्त्रित या नष्ट करने में पथ्य-अपथ्य यानि परहेज का पालन करना, औषधि सेवन की अपेक्षा अधिक हितकर है।
बिना पथ्य-अपथ्यके पालन किये केवल औषधि के सेवन से इस बीमारी में ‘मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की’ की कहावत चरितार्थ होती है।
मधुमेह की महानता… डाइबिटीज ऐसा रोग है, जिसके लिये अनियमित आहार-विहार ही उत्तरदायी है। जिसमें समय रहते सुधार न करने तथा लापरवाही जारी रहने पर यह रोग असाध्य स्थिति में पहुँच जाता है और फिर मृत्युपर्यन्त पीछा नहीं छोड़ता। अस्तु,
मधुमेह के नियन्त्रण का सबसे सरल-सुरक्षित मार्ग है नियन्त्रित उचित आहार-विहार।
नवीन शोधों से भी सिद्ध हो चुका है कि जिनके शरीर में इन्सुलिनका बनना बिलकुल बंद नहीं हुआ है, उनका उपचार आहार-विहार के नियमन से सम्भव हुआ।
मधुमेह संक्रमण (Infection)-से होनेवाला संक्रामक रोग नहीं है, परंतु वंशानुगत प्रभाव से हो सकता है।
फलतः जिनके माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानीको यह रोग रहा हो, उन्हें बचपन से ही आहार-विहारके मामले में अधिक सावधानी बरतनी चाहिये और इस रोगके प्रारम्भिक लक्षण पता चलते ही तत्काल आहार-विहारमें उचित सुधार करते हुए शारिरिक श्रम और अभ्यङ्ग आरम्भ कर देना चाहिये, ताकि दवा खाने, इलाज करानेकी नौबत न आये।
डाइबिटीज में एक बार दवा विशेषकर इन्सुलिन लेने के चक्कर में फँसने पर इंसान जीवनपर्यन्त इस चक्रसे निकल नहीं पाते।
प्रातः खाली पेट रक्तमें शर्कराकी मात्रा ८० से १२० mg. (प्रति १०० सी० सी० रक्त)-के मध्य होने पर सामान्यतः मनुष्य स्वस्थ होता है।
आयुर्वेद सहिंता के हिसाब से 40 के बाद 85 से 125 और 60 से अधिक उम्र वालों को 95 से 135 तक रहना सामान्य है। ऐसे लोगों को मधुमेह ग्रस्त नहीं माना है।
विपरीत असंतुलित आहार का सेवन तथा बद परहेजी करने पर मधुमेह रोग नहीं जा पाता। इस सम्बन्धमें आयुर्वेद का व यह श्लोक द्रष्टव्य है- विनाऽपि भेषजैर्व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते। पथ्यविहीनस्य भेषजानां शतैरपि॥
अर्थात- सेकड़ों दवाएँ खाने पर भी पथ्यविहीन व्यक्ति का कोई भी रोग नष्ट नहीं होता। मन वश में होने, संतुलित आहार करने, उचित विहार करने, अच्छा व्यवहार बरतने तथा व्यायाम या योगासन का अभ्यास होने पर व्यक्ति कभी मधुमेह रोग से ग्रस्त तथा त्रस्त नहीं होगा।
दिनचर्या एवं पथ्य-अपथ्य-मधुमेहका रोगी प्रातः भ्रमणोपरान्त घर में जमा हुआ दही स्वेच्छानुसार चार गुना सादा जल, जीरा तथा समुद्री नमक मिलाकर पीये।
नाशते में मीठा दही अनिवार्य है। यह रस बनाता है।
भोजनमें जौ-चने के आटे की रोटी, हरी शाक-सब्जी, सलाद और छाछ-मट्ठा का सेवन करे। भोजन करते हुए छाछ को घूंट-घूंट करके धीरे से पियें।
भोजन के 2 घण्टे पश्चात् फल लेवे। रात को दही, फल, अरहर की दाल न लेवें।
सायंकाल का भोजन शाम ७ बजे तक कर ले। भोजन फुरसत के अनुसार नहीं, बल्कि ठीक निश्चित समय पर ही करे। प्रतिदिन निश्चित समय पर भोजन करने से रक्त-शर्करा की मात्रा सामान्य अवस्था में बनी रहती है।
मधुमेह में महाविनाशकारी मेवा…
बादाम 2 या 3 से अधिक न लेवें, इससे पाचनतंत्र बिगड़ता है।
अंजीर को हमेशा दूध में उबालकर लेवें अन्यथा बवासीर हो सकती है।
चिरौंजी खस का हलुआ बनाकर खाएं।
खून बढाने के लिए केवल काली किसमिस खाएं, ऊपर से दूध पियें।
केवल सुबह के नाश्ते या भोजन में थोड़ा मीठा अवश्य लेवें। अन्यथा वातरोग हो सकते हैं। रक्त नाड़ियों को चलायमान रखने के लिए गुड़ आदि अवश्य लेवें।
रात के भोजन में भोजन में मीठे पदार्थ चीनी-शक्कर, मीठे फल, मीठी चाय, मीठे पेय, मीठा दूध, चावल, आलू, सकरकंद, तले-चिकने पदार्थ, घी, मक्खन, सूखे मेवे, गरिष्ठ पदार्थ आदि का सेवन बंद कर दे।
रेशायुक्त खाद्य पदार्थों जैसे हरी शाक-सब्जी, सलाद, आटे का चोकर, मौसमी फल, अंकुरित अन्न, मूंग दाल आदि का सेवन अधिक मात्रा में करे।
अपनी दिनचर्या में वाञ्छित सुधार करे। दिनचर्या में वायुसेवन हेतु सूर्योदय से पूर्व भ्रमण के लिये जाना, तेल-मालिश, योगासन, व्यायाम करना, दिन में चल-फिरकर रहना हितकारी होता है। योगासनों में सूर्य नमस्कार, भुजङ्गासन और अन्तमें शवासन अवश्य करे।
अतः अंत में मधुमेह मनुष्य को रोगी को पथ्यका पालन और अपथ्यका त्याग करना अपेक्षित है।
घरेलू उपचार एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा- मेथीदाना ५०० ग्राम धो-साफकर, इसमें 5 ग्राम चूना डालके 24 घंटे तक पानी में भिगोऐं।
मेथीदाना मिटाता है-मधुमेह…मेथीदाना फूलने पर इन्हें पानी से निकाल सुखा ले और कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर ले। इस चूर्ण को सुबह-शाम 2–2 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह के रोगी को अच्छा लाभ होता है।
मिट्टी के पात्र में रातको 20 ग्राम मेथीदाना पानी में भिगोये और सुबह मसल-छानकर इस पानी को पीये। इसी प्रकार सुबह का भिगोया मेथीदाना शाम को मसल-छानकर पिये।
25 मिलीग्राम पिसी हल्दी और एक चम्मच amrutam आँवला का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से रक्त शर्करा सामान्य मात्रा में बनी रहती है, क्योंकि इसके सेवन से अग्न्याशयको बल मिलता है, जिससे इन्सुलिन नामक हार्मोन उचित मात्रामें बनता रहता है। यदि स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करे तो वह भी अनेक व्याधि से बचा रह सकता है।
केवल चैत्र महीने में ढाक (पलाश)-के फूलोंका रस आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम पीना मधुमेह से ग्रस्त मरीज के लिये लाभप्रद रहता है।
मात्र 5 बेल के ताजे हरे पत्तों का रस सुबह-शाम पीना मधुमेह के रोग में बहुत गुणकारी और उत्तम है।
मधुमेह नाशक चूर्ण घर पर बनाएं… गुड़मार ८० ग्राम, बिनोले की मींगी ४० ग्राम, बेल के सूखे पत्ते ६० ग्राम, सनाय 30 ग्राम, गुलाब फूल 50 ग्राम, जामुनकी गुठली ४० ग्राम और नीम की सूखी पत्तियाँ २० ग्राम तथा जीरा, सौंफ, धनिया, तेजपत्र, कालीमिर्च, सभी 10–10 ग्राम को कूट-पीसकर मिलाकर चूर्ण बना ले और उसका सुबह-शाम आधा-आधा चम्मच प्रयोग करे।
मधुमेह नाशक चूर्ण से अग्न्याशय और यकृत् या लिवर को बल मिलने से उनके विकार नष्ट होते हैं और मूत्र तथा रक्तकी शर्करा नियन्त्रित हो सामान्य मात्रामें रहती है।
आयुर्वेदिक औषधि वसन्तकुसुमाकर रस अथवा अम्बरयुक्त शिलाजत्वादि वटी और प्रमेहगज केसरी वटी इन दोनोंकी एक-एक गोली सुबह-शाम दूधके साथ ले। आयुर्वेदिक औषधियोंसे तैयार मिश्रण का प्रयोग मधुमेहके रोगमें विशेष लाभकारी रहता है।
डाॅ. पीयूष त्रिवेदी
आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी, राजस्थान विधान सभा जयपुर।