विजय गर्ग
सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, शैक्षिक स्तंभकार, मलोट
सरकारों पर एआई का खौफ इस कदर तारी है कि इजराइल हमास युद्ध के धमाकों के बीच नवंबर के पहले सप्ताह 28 देशों के मुखिया, बड़े नेता और तकनीकी दिग्गज ब्रिटेन के ब्लेचली पार्क में आ जुटे भीतरी राजनीतिक उठापटक के बीच ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बैठक की मेजबानी की। यहां अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर और एलोन मस्क भी थे। यह तो पता है कि सरकारें विज्ञान की इस नई खोज यानी दिमाग वाली मशीनों से बुरी तरह डरी हैं लेकिन इसे कानून में बांधने की कवायद इतनी तेजी से होगी, यह आश्चर्यजनक है। लंदन से करीब 70 किमी दूर मौजूद ब्लेचली पार्क बड़ी रोमांचक जगह है। जिस एआई को काबू करने की कोशिश में सरकारों के मुखिया पसीना छोड़ रहे हैं, उसकी जमीन इसी जगह बनी थी। कहते हैं हिटलर की हार एक गणितज्ञ की वजह से हुई थी, जिसका नाम था एलन ट्यूरिंग । इसी पार्क के कोडब्रेकिंग सेंटर में ट्यूरिंग ने नाजी संचार की ताकत यानी एनिग्मा कोड को तोड़ने की मशीन बनाई थी। इसके बाद तीन साल में हिटलर हार गया।
यह ट्यूरिंग ही थे, जिन्होंने पहली बार एआई की राह दिखाई। 1950 में उनका शोध पत्र आया, जिसमें मशीनों की बुद्धिमत्ता तय करने के लिए ट्यूरिंग टेस्ट का आविष्कार शामिल था। इसी ब्लेचली पार्क में एक घोषणापत्र जारी हुआ, जिसका लब्बोलुआब था इससे पहले कि एआई हमें गुलाम बना ले, इसे अपने काबू में करना होगा!
खौफ की वजह इस साल की शुरुआत में एआई वैज्ञानिकों ने सरकारों को एक खत लिखा था, जिसमें कहा था कि एआई बेहद खतरनाक है, इससे निजता और लोकतंत्र चौपट हो जाएंगे। समाज में झूठ फैलाने और मशीनों को भेदभाव के लिए तैयार किया जाएगा। रूस और यूक्रेन और इजराइल हमास युद्ध में एआई के इस्तेमाल से डर कई गुना बढ़ गया है। रूस और अरब दोनों ही युद्धों में निजी सेनाएं लड़ रही हैं रूस में वैगनर ने यूक्रेन पर धावा बोला तो इधर अरब में हमास, हिजबुल्ला और हूती हैं। इनके पास तकनीकें पहुंचते देर नहीं लगेगी।
शेयर करने की जद्दोजहद : बीते सौ वर्षों के इतिहास में किसी नई तकनीक को लेकर इतना खौफ कभी नहीं देखा गया। ब्लेचली पार्क की बैठक तक विश्व की तीन प्रमुख ताकतें कानून बनाने के निर्णायक कदम उठा चुकी थीं। विभाजित राजनीति के कारण अमेरिका में कानून नहीं बना, मगर राष्ट्रपति जो बाइडन इस कदर डरे हैं कि उन्होंने अक्टूबर में राष्ट्रपति के अधिकारों के तहत एक बड़ा ऑर्डर जारी कर दिया। इस आदेश के बाद अमेरिका में एआई के प्रत्येक कदम की पड़ताल के अब तक के सबसे व्यापक नियम बनेंगे। कंपनियों को अपने शोध की जानकारी देना होगी। इस ऑर्डर में निजता, सुरक्षा, फेक न्यूज सबके लिए नियम शामिल हैं।
यूरोपीय समुदाय ने एआई पर शिकंजा कसने के लिए अप्रैल 2021 में काम शुरू किया था। ईयू एक व्यापक कानून बनाना चाहता है, जिसमें एआई के सभी पहलू समेटे जा सकें और एआई सिस्टम पर काम करने वालों की जिम्मेदारी तय की जा सके। अलबत्ता चीन ने एआई के व्यापक कानून नियम बनाकर एआई डेवलपमेंट और गवनेंस में अगुवाई कर ली है। 2017 में चीन ने एआई डेवलपमेंट प्लान के तहत 2030 तक एआई में बड़ी ताकत बनने का लक्ष्य तय किया है। 2021 में साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने एल्गोरिदमिक रिकमंडेशन के नियम तय कर दिए, जो एआई सिस्टम का बुनियादी संचालन है। 2022 में डीप सिंथेसिस तकनीकों पर रेगुलेशन बन गए। 2023 में चैटजीपीटी या बार्ड जैसी जनरेटिव एआई प्रणालियों के लिए व्यापक नियम बना दिए गए हैं। कोई नहीं चाहता कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक का अगुआ चीन एआई गवर्नेस के नियम तय करे, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो फिर कंपनियां इन्हीं के तहत उत्पाद और सेवाएं बनाएंगी। यही वजह थी कि बाइडन को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी करना पड़ा। यूरोप और ब्रिटेन इस कदर हिल गए कि आनन-फानन में 28 देशों का सम्मेलन बुलाया गया। पर भारत में डीपफेक पर सियासी चिंताओं के अलावा कानून को लेकर सक्रियता नहीं दिखती।
इनसे हो पाएगा? : क्या दुनिया की सरकारें सच में एआई को नियंत्रित कर पाएंगी? दो बड़े सवाल हैं। पहला, अमेरिका ने इस बैठक से पहले जारी कार्यकारी आदेश में खासतौर पर अमेरिकी मूल्यों पर आधारित एआई की शर्त रखी थी। सहमति की कोशिशों के बीच ब्रिटेन और ईयू भी अपने अलग कानून बना रहे हैं। चीन अपने नियम- पैमाने पहले ही तय कर चुका है। एआई पर काम करने वाली कंपनियां बहुराष्ट्रीय हैं। 2026 तक एआई आधारित उत्पाद सेवाओं का बाजार 300 अरब डॉलर से ऊपर होगा। बकौल ब्लूमबर्ग, 2030 तक जनरेटिव एआई में 1.3 ट्रिलियन डॉलर का निवेश होगा। दुनिया का हर देश इस निवेश को अपने यहां चाहेगा, इसलिए सामूहिक अंतरराष्ट्रीय नियमन पर सहमति मुश्किल है।
दूसरा, एआई की गहराई और विस्तार को करीब से जानने वाले बेधड़क कहते हैं कि बीते दो दशक में सूचना तकनीक कंपनियों पर कोई सख्त नियम नहीं लगाए गए, इसलिए उनके सर्वर प्रयोगशालाओं के भीतर क्या है यह किसी को पता नहीं है। यह कनेक्टेड दुनिया है, जिसमें बहुत-से सिस्टम अलग-अलग देशों में हैं, उनका नियमन होगा कैसे ? सरकारों के पास इन सिस्टम को समझने की क्षमता कहां है। एआई की मॉनिटरिंग के लिए वही लोग चाहिए जो उसे बना चला रहे हैं। खौफ भरपूर है और जद्दोजहद खासी पेचीदा है।