धन-दौलत, मोह-माया सुख का नहींं, हमारे दुःख का साधन है: महासती धर्मप्रभा
सुनिल चपलोत/चैन्नई। संसार में सांसो का कोई भरोसा नहींं दुसरी सांस आऐ भी या नहीं आऐगी कोई भी बता नहीं सकता है।मंगलवार साहुकारपेट जैन भवन में महासती धर्मप्रभा ने आयोजित धर्मसभा में श्रोताओं को धर्मसंदेश प्रदान करतें हुए कहा कि समय अमूल्य है और जीवन क्षणभंगुर है और मनुष्य शरीर की नश्वरता को जानतें हुए भी संसार के क्षण मात्र के सुख को पाने की चाह में वो परलोक के सुख को खो रहा है। जबकि संसारी सुख से आत्मा को सुख नहींं दुःख मिलता है आत्मा को तब सुख मिल सकता है जब मनुष्य अपने मोह को छोड़ेगा तभी वह परलोक के सुख को प्राप्त कर सकता है। भगवान महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम स्वामी को मोह के कारण देर से केवलज्ञान प्राप्त हो पाया था। हमारा मोह घटेगा नहींं तब तक है हमारी आत्मा संसार से तिर नहीं सकती है और नाही आत्मा को मुक्ति मिलने वाली है। जितना हमारा मोह बढ़ेगा उतनी ही बार संसार की अलग-अलग जीवा योनियो में हमे जन्म लेना पड़ेगा और संसार के दुखों को भोगना पड़ेगा। धन-दौलत,राग-द्वेष, मोह-माया ये सुख का साधन नहींं है हमारे दुःख का साधन है। मनुष्य जितना मोह का त्याग करेगा उतनी ही उसे जीवन में उसे सुख की अनूभूति करेगा। और अपनी आत्मा को संसार के बंधनो से छुटकारा दिलवा पाएगा और परलोक के सुख को प्राप्त कर सकता है। श्रीसंघ के कार्याध्यक्ष महावीर चंद सिसोदिया ने जानकारी देतें हुए बताया इसदौरान चातुर्मास में प्रचार-प्रसार मे सेवा देने वाले सुनिल चपलोत का साहुकारपेट श्री एस.एस.जैन संघ के अध्यक्ष एम.अजितराज कोठारी,सुरेशचंद डूंगरवाल,हस्तीमल खटोड़,शम्भूसिंह कावड़िया मंत्री सज्जनराज सुराणा आदि सभी ने साध्वी धर्मप्रभा के सानिध्य में चपलोत को शोलमाला और अभिनन्दन पत्र देकर सम्मानित किया। इसदौरान अनेक भाई -बहनों ने साध्वीवृंद से प्रत्याखान लिए।