गुंसी, निवाई। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी , जिला – टोंक (राज.) में ससंघ विराजित गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी महती धर्म की प्रभावना में संलग्न है। ध्यान, स्वाध्याय, उपवास आदि का क्रम लगातार बढ़ रहा है। पूज्य माताजी अपने शिष्यों को तो शिक्षित कर रही हैं साथ ही अन्य समाजों को भी प्रोत्साहित करते हुए धर्म का महत्व, धर्म का मर्म समझा रही है। पूज्य माताजी ने अपने उपदेशों में मायाचारी का अर्थ बताते हुए कहा कि – जब व्यक्ति के मन, वचन और काय तीनों सरल हो जाते हैं तो वह आत्मा नहीं परमात्मा हो जाती है और जब इन तीनों में अंतर हो जाता है तो वह दुरात्मा बन जाती है। मायाचारी व्यक्ति का स्वभाव बगुले की तरह होता है। वह करता कुछ और है और दिखाता कुछ और है। उन्होंने कहा मायाचारी व्यक्ति की चाल तो सीधी दिखती है परंतु वह अंदर से बहुत टेढ़ा होता है। वह व्यक्ति सोच रहा होता है कि उसे कोई नहीं देख रहा। परंतु भगवान तो उसे हर समय देख रहे होते हैं। यह भी सत्य है कि वह देख कर भी सजा नहीं देंगे पर कर्म तो अपना फल देंगे ही। जो गड्ढा हम दूसरों के लिए खोदते हैं, उसमें खुद ही गिर जाते हैं। इसलिए सरलता में रह कर भले ही हमें बहुत कष्ट सहने पड़े, लेकिन हमें आर्जव धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। जो अपने मन से कुटिलता निकाल देता है उसका जीवन बहुत सरल हो जाता है। यदि हमारा हृदय सरल है तो कांटा भी फूल बन सकता है। आगामी 10 दिसम्बर 2023 को होने वाले आयोजन पिच्छिका परिवर्तन व 108 फीट उत्तुंग कलशाकार सहस्रकूट जिनालय के भव्य शुभारम्भ में आप अपनी उपस्थिति देकर इस कार्यक्रम के साक्षी बने।