जयपुर। इंफोसिस फाउंडेशन और भारतीय विद्या भवन के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे धरती धौरा री कार्यक्रम के तीसरे दिन महाराणा प्रताप सभागार से वरिष्ठ रंगकर्मी तपन भट्ट द्वारा लिखित एवं निर्देशित नाटक राजपुताना का मंचन किया गया ।
इस नाट्य प्रस्तुति में राजस्थान की चार महान नारियाँ मीरा, हाड़ी रानी, पन्ना धाय और रानी पद्मिनी की गाथा दर्शायी गयी । गौरतलब है कि तपन भट्ट की इस चर्चित नाट्य कृति का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के भारत रंग महोत्सव सहित अनेक फेस्टिवल्स में हो चुका है । नाटक राजपुताना ये कहता है कि नारी नवरस का भंडार है उसे चिंगारी बनने पर मजबूर मत करो। राजस्थान युगों युगों से वीरों की भूमि रहा है । राजस्थान की भूमि ने हमेशा वीरों और वीरांगनाओं को जन्म दिया है । राजस्थान की नारी, या यूं कहें कि राजपुताना की नारी, हमेशा गरिमामयी और गर्वीली रही है । वो नवरसों का भण्डार है किन्तु आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम नारी और उसकी अस्मिता को वो स्थान नहीं दे पाये हैं जो उसे मिलना चाहिये । राजस्थान की धरती पर बलिदान और त्याग को सार्थक करती कई नारियों ने जन्म लिया है, तो वहीं वीरता और प्रेम से सराबोर महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया है । राजस्थान की नारी के इसी अद्भुत रूप को दर्शाते नाटक राजपुताना का लेखन और निर्देशन प्रसिद्ध रंगकर्मी तपन भट्ट ने किया । नाटक राजपुताना कहता है कि नारी से उसके ये नवरस छीन कर हम उसे रसहीन बना रहे हैं । नारी को उसकी अस्मिता से दूर कर हम उसे चिंगारी बनने पर मजबूर कर रहे हैं ।
नाटक का कथानक : रसों के राजा रसराज के पास पांच स्वर जो पंच तत्वों के प्रतीक है रस की तलाश में आते हैं । रसराज उन्हें राजस्थान की भूमि पर भेजते हैं और कहते हैं कि राजपुताना कि नारी अपने आप रसों का भण्डार है उसमे श्रृंगार है, करुणा है, प्रेम है, वीरता है, वो अद्भुत है । किन्तु जब वो यहाँ आते है तो उन्हें यहाँ डरी सहमी नारी मिलती है जो समाज द्वारा शोषित है । वो नारी को उसका अतीत याद दिलाते है और बताते है कि ये नारी कभी मीरा कि तरह भक्ति और श्रृंगार कि मूरत थी, कभी हाड़ी की तरह आदमी साहसी और वीर थी, पन्नाधाय की तरह अद्भुत बलिदानी थी और पद्मिनी की तरह साहसी और शौर्य का प्रतीक थी । नारी को अपना अतीत याद आता है और नारी उसका शोषण करने वालों को चेतावनी देती है और कहती है कि क्या नारी का अस्तित्व चिंगारी बनकर ही जिन्दा रहेगा, अगर वो चिंगारी नहीं तो क्या नारी नहीं । नारी को मीरा बनाओ हाड़ी बनाओ पन्ना बनाओ पद्मिनी बनाओ । नारी को चिंगारी बनने पर मजबूर मत करो यदि वो चिंगारी बन गयी तो सब कुछ ख़ाक कर देगी ।
विशेष : लगभग डेढ़ घंटे की इस प्रस्तुति में राजस्थान कि चार महान नारियों की तखाये दिखाई गयी पर ख़ास बात ये रही कि नाटक में एक भी फेड आउट नहीं था | दृश्य परिवर्तन के लिए संगीत और कपड़ो का सहारा लिया गया | बड़े बड़े राजस्थानी साफे और साड़ियों से महल, मंदिर आदि बनाये गए और चुन्नियो से बनाए गए थाल में हाडी रानी का कटा सर दिखाया गया जो आकर्षण का केंद्र रहा ।
कलाकार: नाटक में विशाल भट्ट, अभिषेक झाँकल, अजय जैन मोहनबाड़ी, रिमझिम भट्ट, अन्नपूर्णा शर्मा , झिलमिल भट्ट, शाहरुख खान, कमलेश चंदानी, रोशन चौधरी, साहिब मेहंदीरत, दीपक जांगिड़, अनुज और स्वयं तपन भट्ट ने भाग लिया।
नाटक का मजबूत पक्ष था इसका संगीत जिसे तैयार किया सौरभ भट्ट, शैलेंद्र शर्मा एवं अनुज भट्ट ने। प्रकाश व्यवस्था शहजोर अली की एवं रूप सज्जा रवि बांका की थी।
तपन भट्ट लेखक एवं निर्देशक