हम सदा जीवन-तिमिर में दुःख के ही वाचक रहे,
बाँटते सुख रह गये पर प्रेम के याचक रहे।।
एक मूरत के चरण का पुष्प हर कुम्हला गया
कर्म हम वह कर न पाए फूल हो जिससे नया
पुण्य ही करते रहें पर पाप सारे बढ़ गये
पुष्प पाने को डगर में कंटकों को गढ़ गये
पुण्य करके भी सदा हम कर्म से पातक रहे
बाँटते सुख रह गये पर प्रेम के याचक रहे।।
दीर्घ जीवन,अल्प जीवन का न कोई मोल है
दो पलों का प्रेम पाया जन्म वह अनमोल है
एक जल धारा में बहती वस्तु के जैसे कहीं
है हमारा स्थान सच में देखिए तो अब वहीं
स्वाति की बूंदें गिरी पर हम कहाँ चातक रहे।
बाँटते सुख रह गये पर प्रेम के याचक रहे।।
मृत्यु आने तक भी जीवन अब कहाँ आसान है
तन तो केवल भूमि पर निर्जीव-सा सामान है
साधनों की चाह में ही हम असाधारण हुये
लोभ लालच की तपन में हम सभी चारण हुये
हम स्वयं ही या स्वयं के साथ ही घातक हुये।
बाँटते सुख रह गये पर प्रेम के याचक रहे।।
डॉ. अनुराग