इंजिनियर अरुण कुमार जैन
दीप जलाओ प्रिय ऐसा तुम,
मन को जो आलोकित कर दे.
सत्य, प्रेम के नव प्रकाश को,
सबके रोम -रोम में भर दे…
घर के आंगन दीप जलाओ,
नेह, प्रेम हर मन में आये.
हो मुंडेर पर दीपमलिका,
आलोकायन भू पर आये.
पावन, निर्मल छवि नयनों में,
तृप्ति सुधा का सागर भर दे…
देवालय में दीप जलाओ,
भक्तिभाव हर मन में आये,
कटुता, द्वेष तमसक्षय कर दे,
मानवता का वर जग पाए.
सेवा कर जग दीन, दुखी की,
उनके संतापों को हर ले…
सीमा पर एक दीप जलाकर,
राष्ट्रभक्ति हर जन को देना,
ज़ब चाहो हे मातृभूमि,
मेरे प्राणों को तुम ले लेना.
ऐसे भावों का चिंतन ही,
कोटि जनों के मन में भर दे…
एक दीप औषधिमंदिर में,
जो निरोगता जग में लाये.
वर्षो से पीड़ित, वेबस जो,
उनकी व्याधि शमन कराये.
स्वस्थदेह उपहार आनोखा,
प्राणिमात्र को अर्पित कर दे..
खेतों में भी एक दीप हो,
श्रमलोक हर मन में ला दे,
‘है हराम, आराम हमें,
हर देशवासी के मन ला दे,
श्रम की करे तपस्या भारत,
सोना उगले, धरती वर दे..
एक दीप तममय खानों में,
मन का तम भी दूर हटा दे,
जीवन अंधकूप लगता है,
मन से ऐसे भाव मिटा दे.
अधरों पर लाकर मुस्काने,
इनके नाम भी,कुछ सुख कर दे.
दीपों के निर्मल प्रकाश से,
जड़- चेतन आलोकित होगा,
सपना मेरे गाँधी जी का,
रामराज्य इस भू पर होगा.
स्वर्ग-मोक्ष न कोई चाहे,
ऐसा अनुपम भारत कर दे.
दीप जलाओ प्रिय..