गुंसी, निवाई। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी में विराजमान है। माताजी के मुखारविंद से अभिषेक शांतिधारा करने श्रावकगण क्षेत्र पर पहुंच रहे हैं। अभिषेक शांतिधारा के पश्चात पूज्य माताजी के मंगल उद्बोधन हुये जिसमें माताजी ने वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बच्चों को संस्कारित करने की ओर प्रेरित किया। माताजी ने कहा कि आज की आधुनिक अंधादौड में बच्चे संस्कार व संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। उनमें धर्म का अंश कही भी दिखाई नहीं देता। पुराने समय में बच्चा यदि रोता था तो माता – पिता उन्हें णमोकार सुनाते थे और बच्चा रोये नहीं इसलिए मां – बाप उन्हें मोबाइल पकडा देते हैं। माताजी ने अपने बचपन के उदाहरण के माध्यम से समझाया पहले हम मंदिर नहीं जाते थे तो मां देवदर्शन के बिना खाना नहीं देती थी और आज बच्चे बिना मंदिर जाये तो क्या बिना नहाये खाना – पीना करने लगे हैं। बच्चों को लौकिक शिक्षा तो आप विदेशों की दिलवा ही रहे हैं साथ में संस्कार भी विदेशों के ही दे रहे हैं। बच्चों को हम जैसे संस्कार देंगे वैसे ही वो ग्रहण करेंगे। लेकिन उसके पहले जरुरत है हमें सबसे पहले स्वयं को बदलना पडेगा जैसे हम संस्कारित रहेंगे वैसे ही बच्चों पर प्रभाव पड़ेगा।
अतः हम बच्चों के सामने लडे – झगड़े नहीं , नित्य देवदर्शन व श्रावकों के नियमों का पालन करें। मोबाइल से दूर रखें तथा उन्हें धर्म का महत्व बताये जिससे वे धर्म की रक्षा करना भी अपना कर्तव्य समझे। शिक्षा तो वे कही से भी प्राप्त कर लेंगे पर संस्कार उन्हें माता – पिता, गुरू, परिवारजनों से ही मिलेंगे। इसलिए इन सभी बात पर पुन: विचार कर इसके सुधार का प्रयास करें।