श्रमण संस्कृति संस्थान की वेटीयो ने देशभर की समाज को प्रभावित किया: विजय धुर्रा
आगरा। जानने में सुख मिल सकता है हित नहीं हो सकता ज्ञान तो पाप को हेय को भी जनता है ज्ञान तो जहर को भी जनता है लेकिन जानने में सुख नहीं है सुख और भी ऊपर है जानने के बाद कुछ और भी हैं कुछ विचार ऐसे होते हैं जिनको सोचने में भय होने लगता है कुछ वाते हम सोचते तक नहीं है क्योंकि वहां दुःख नजर आ रहा है कष्ट नजर आ रहा है उक्त आश्य केउद्गार हरि पर्वत आगरा में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि पुगंव श्री सुधासागरजी महाराज ने व्यक्त किए।
कम्प्यूटर से भी तेज स्पीड में जनता के समक्ष ग्रंथ को सुनना बड़ी बात है
जिज्ञासा समाधान समारोह में मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा ने कहा कि समयसार शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर में जिस 8तरह से श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर की वेटीयो ने समयसार जैसे कठिन ग्रंथ राज को जिसकी चार लाइनें भी दोहराना मुश्किल होता है ऐसे 450प्रष्ट के ग्रंथ को कंठस्थ कर परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्रीसुधासागरजी महाराज के पूछने पर कम्प्यूटर से भी तेज स्पीड में सीधे प्रसारण में जनता के समक्ष रखा है उससे पूरा देश इन वेटीयो की प्रतिभा का कायल हो गया है थूवोनजी कमेटी इन की प्रतिभा व कठिन परिश्रम की भूरी भूरी प्रसंशा करते हुए आनंदित हो रही है कमेटी अध्यक्ष अशोक जैन टींगू मिल महामंत्री विपिन सिंघाई मंत्री विनोद मोदी कोषाध्यक्ष सौरववाझल आडिटर राजीवचन्देरी हमारे संरक्षण इसरो वैज्ञानिक डॉ जी सी जैन अहमदाबाद के साथ हम इनको सम्मानित करना चाहते हैं इस दौरान प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ जी सी जैन अहमदाबाद ने समाज स्थिति पर अपनी चिंता से सभी को अवगत कराया। आगरा चातुर्मास में हो रहें विभिन्न आयोजन के बाद दस दिवसीय समयसार शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर में श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर के वेटा वेटीया भाग ले रहे हैं इनके वीच अनेक विद्वान वनने की राह पर अग्रसर इन प्रशिक्षणतीयो ने कठिन तम कठिन मानें जाने वाले श्री समयसार ग्रंथ को कंठस्थ कर देशभर की जैन समाज को अभिभूत ही नहीं अपनी ओर आकर्षित किया है आजइनके इनके कौशल की सब ओर प्रसंशा की जा रही है इस दौरान चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष प्रदीप जैन पी एन सी महामंत्री नीरज जैन जिनवाणी कोषाध्यक्ष निर्मल कुमार मोढया हीरालाल वैनारा संयोजक मनोज वाकलीवाल अमित जैन आगरा इन व्यवस्थाओं को देख रहे हैं।
पाप को छोड़ना सरल है पुण्य के फल को छोड़ना कठिन है
इस दौरान मुनि पुंगव श्रीसुधासागरजी महाराज ने कहा कि पाप को छोड़ना सरल है पाप के कारणों को छोड़ते ही है लेकिन पुण्य को छोड़ना कठिन है क्योंकि पुण्य से हमें सुख मिल रहा है जाति कुल परिवार को छोड़ ने को जिनवाणी कह रही है पुण्य के उदय से जो जो भी मिला है उसे छोड़ने का कहा जा रहा है अरे जव छुड़ाना ही था तो ग्रहण करने को क्यों कहा। छोड़ने को उसी को कहा जाता है जिसे आप ग्रहण कर सकते हैं उसको क्या छोड़ना जो हेय हो मध्य मधु मांस को तो वचपन में ही छूड़ लिया जाता है मैं अभक्ष्य नहीं खाऊंगा फिर भक्ष का त्याग करने को कहा गया है रात्रि भोजन करने का त्याग हो गया है और दिन में दो बार खा सकता था लेकिन एक बार ही ग्रहण कर लिया ये त्याग हो गया ज्ञानी पुरुष तप के साथ त्याग करके अपनी तपस्या को बढ़ाता चला जाता है इस वार दस लक्षण पर्व में तप त्याग की चर्चा को प्रधानता से किया गया था वैराग्य को कैसे वनाये और केसे बढ़ाया जाए इस और फ़ोकस था तप और त्याग में इतना ही अंतर है कि जिसे आप ग्रहण कर सकते थे उसमें कोई वाधा भी नहीं थी फिर भी वुद्धि पूर्वक उसे छोड़ दिया ये त्याग कह लायेगा