इंजिनियर अरुण कुमार जैन
दीवाली है पर्व महान, वीर प्रभू जी का निर्वाण.
महावीरथा उनका नाम,गौतम गणधर केवल ज्ञान.
राम जी वन से आये थे, सबमिल हर्ष मनाये थे.
दीपक कोटि जलाये थे,रात को दिवस बनाये थे.
निर्वाणपर्व मनाते हैं, लाडू सुबह चढ़ाते हैं,
और शाम को दीप जलाकर, केवल ज्ञान गुण गाते हैं.
यही तो बस दीवाली है, नेह, प्रेम, सुख वाली है.
श्रद्धा, भक्ति बढ़ातेहैं,प्रभु, गुरु गुण गाते हैं.
अहिंसक दीवाली मनाएं हम,
सबके प्यारे बन जाएँ हम.
पटाखे नहीं चलाना है, ना ही बम फुटाना है,
वायु में बिष आता है, अंदर देह में जाता है,
आँखे इससे जलती हैं, कान को हानि होती है,
कभी कोई जल जाता है, अपंग, निरीह बन जाता है.
पशु, पक्षी घबराते हैं, कष्ट वेदना पाते हैं.
धरा-गगन धुँवा होता है, यह जहरीला होता है,
सांसे देखो घुटती हैं, बूढ़ी दादी रोती है.
मरीजवेदना पाते हैं, ह्रदयघात बढ़ जाते हैं,
अग्निकांड हो जाते हैं, घर दुकान जल जाते हैं,
इस विनाश को अब रोकें, कष्ट वेदना दूर करें.
खीर, मलाई खाएंगे, नारियल, मिश्री लाएंगे.
नये वस्त्र धारण करके, मिलकर हर्ष मनाएंगे.
अहिंसक ही दीवाली हो, आनंद लाने वाली हो.
ऑक्सीजन न कम होंगी, हरी -भरी धरती होगी.
गुरु, प्रभु आज्ञा मानेगे, अच्छे बच्चे बन जायेंगे.