Friday, November 22, 2024

भगवान महावीर की दृष्टि में समभाव का महत्व

डॉ. नरेंद्र जैन भारती सनावद (म.प्र.)
मनुष्य के रूप में किसी जीव का संसार में आना सुखद संयोग है क्योंकि मनुष्य को धर्म धारण करने का सुयोग मिल जाता है वह अपने नैसर्गिक ज्ञान का उपयोग कर बुद्धि को इच्छा अनुसार लक्ष्य की प्राप्ति में लगता है जिसे सच्चे सुख की प्राप्ति की इच्छा होती है वह जीव मात्र के सच्चे स्वरूप को समझ कर ऐसा पुरुषार्थ करना चाहता है ताकि दुखों से छुटकारा मिले, पाप का बंधन न हो तथा प्राणियों के प्रति सद्भावना बनी रहे। सद्भावना, समभाव से बनती है। अतः मनुष्य के जीवन में समभाव का विशेष महत्व है।
भगवान महावीर स्वामी के “दर्शन” में बताया गया है कि ” संसार के जितने भी प्राणी दिखाई दे रहे हैं उनमें आत्मा एक समान है अतः किसी भी प्राणी को न मारो और ना सताओ। ” यह उनका संदेश व्यक्ति को अहिंसात्मक जीवन पद्धति के अपनाने पर जोर देकर समान भाव रखने की प्रेरणा देता है। अतः कहा जा सकता है कि समभाव धारण करने के लिए “अहिंसा धर्म” का पालन करना जरूरी है। मन वचन और काय ( शरीर) से शरीर किसी भी जीव के प्रति विकृत भाव ना बनें, वाणी में मधुरता हो तथा शरीर का उपयोग जीव हिंसा में ना हो, ऐसा जो विचार अनवरत रखता है वही सद्भाव है जो हमारी सम भावना को मजबूत बनाता है। सम्यग्दृष्टि के भाव समभाव से आपूरित होते हैं। सम्यक दृष्टि जीव व्यक्ति प्रशम,संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य गुणों से युक्त होता है ये गुण सद्भाव के प्रतीक हैं जिनके मन में सद्भाव होता है वही सबके साथ समानता का व्यवहार करता है यह समानता समभाव की प्रवृत्ति के कारण सार्थक होती है।सच्ची भक्ति और ध्यान के लिए संभव का होना जरूरी है।अतः जीवन में समभाव रखकर मानव जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

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