गुंसी, निवाई। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी में ससंघ विराजित गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी के ससंघ सान्निध्य में नित नये – नये कार्यक्रमों का क्रम चलता आ रहा है। गुरु माँ के मुखारविंद से शांतिप्रभु की शांतिधारा करने दूर – दूर से यात्रीगण पहुंच रहे है। आज की शांतिधारा करने का सौभाग्य जी. सी. जैन भोपाल, जितेंद्र जैन भोपाल वालों ने प्राप्त किया। पूज्य माताजी ने सभी मंगल उद्बोधन के माध्यम से समझाते हुए कहा कि – धन्य है वह धरती जहां गुरुओं और संतों के चरण पड़ते हैं। यह अपने सातिशय पुण्य का ही प्रभाव है जिसके कारण हम संतों की सेवा कर पाते हैं। सच्चे देव – शास्त्र – गुरू की सेवा, वैयावृत्ति, दान आदि देने का असीम फल स्वर्ग आदि में अपना स्थान सुनिश्चित करना है। माताजी ने उदाहरण देते हुए कहा कि – एक कुत्ता जिसके गले में पट्टा है वो पालतू है और जिसके गले में पट्टा आदि नहीं है वह फालतू है। एक कुत्ता AC की गाड़ी में घूमता है अच्छा खाता है। यहां तक की अच्छे कपड़ें भी पहनता है। और एक कुत्ता गलियों में घूमता, खाने के लिए तड़पता है। तो ये सब पूर्व कर्म का ही फल है। जो कुत्ता पालतू है उसने पूर्व में दान किया होगा, देव – शास्त्र – गुरु की भक्ति की होगी पर अंतिम समय उसके भाव विपरीत हो गये जिसका फल तिर्यंच पर्याय में जन्म मिला। लेकिन दान का फल भी उसे मिला इसलिए पालतू बना। हम सब भी यदि मन से दान पूजा सेवा करेंगे तो फालतू नहीं बनेंगे। लेकिन हमें न फालतू बनना है न पालतू तो अपने भावों को संभालकर धर्म में लगाये रहे । जिससे हमारा इस मनुष्य भव में जैन धर्म पाना सार्थक हो जाये।