मुनि श्री सुप्रभसागर जी की कृति पर विद्वानों ने प्रस्तुत किए आलेख
उज्जैन। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक नगरी उज्जैन के श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ऋषिनगर, उज्जैन मध्य प्रदेश में चर्या शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के परम शिष्य श्रमण मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज एवं मुनि श्री प्रणतसागर जी महाराज के मंगल सान्निध्य में डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत के निर्देशन व डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर के संयोजकत्व में ‘सुरभित मैत्री’ अनुशीलन (भावना द्वात्रिशंतिका -आचार्य अमितगति पर आधारित मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज की कृति ‘सुरभित मैत्री’ पर आधारित) दो दिवसीय राष्ट्रीय विद्वत्त् संगोष्ठी का आयोजन 29 और 30 अक्टूबर 2023 को ऐतिहासिक सफलता के साथ संपन्न हुआ।
इस संगोष्ठी में डॉ. शीतलचंद्र जैन जयपुर, डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत, ब्र. चक्रेश भैया, डॉ. नरेंद्र जैन टीकमगढ़ , प्रोफेसर श्रीयांस सिंघई जयपुर, पंडित विनोद जैन रजवांस, डॉ. सुरेंद्र जैन भारती बुरहानपुर, डॉ. ज्योति जैन खतौली , पंडित पवन दीवान सागर, डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर, श्रीमती अनुभा जैन (संयुक्त कलेक्टर ) विदिशा, राजेंद्र जैन ‘महावीर’ सनावद, डॉ. जयेंद्र कीर्ति जी उज्जैन, डॉ पंकज जैन इंदौर, डॉ. आशीष जैन आचार्य शाहगढ़, डॉ. सोनल कुमार जैन दिल्ली, डॉ बाहुबली जैन इंदौर, पं. मुकेश जैन शास्त्री गुड़गांव, डॉ. ममता जैन पुणे, डॉ. राजेश जैन शास्त्री ललितपुर, डॉ. आशीष जैन शास्त्री बम्होरी, पंडित शीतलप्रसाद जैन ललितपुर, पं. अखिलेश जैन शास्त्री रमगढ़ा, पं. जिनेन्द्र जैन उज्जैन, पंडित अनिल शास्त्री सागर, पंडित विवेक शास्त्री उज्जैन, मनीष जैन विद्यार्थी सागर, विजय शास्त्री शाहगढ़ आदि विद्वान सम्मिलित हुए।
विद्वानों द्वारा प्रस्तुत शोधलेखों के माध्यम से अनेक नए तथ्य और सत्य उदघाटित हुए, गंभीर चर्चा हुई जिसमें देवाधिदेव, सुदेव, देव, कुदेव और अदेव के संबंध में महत्वपूर्ण चर्चा हुई। समस्त आलेख वाचकों के वक्तव्य की समीक्षा परमपूज्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने बहुत ही गवेषणा पूर्वक रोचक तरीके से की। उस समीक्षा में जहां एक और ज्ञान का समायोजन था वहीं दूसरी ओर विद्वानों के लिए बहुत सारे सुधारात्मक पहलुओं को भी पूज्यश्री ने इंगित किया।
उज्जैन में आयोजित यह संगोष्ठी अनेक विशेषताएं लिए हुई थी। आयोजन समिति ने विद्वानों का खूब बहुमान-सम्मान-सत्कार किया।
चांदी के बर्तनों में विद्वानों को भोजन : विद्वानों को आयोजन समिति के द्वारा चांदी के बर्तनों में उच्चासन पर बैठाकर भोजन कराया गया, अत्यंत सुस्वादिष्ट और उत्तम कोटि के व्यंजनों को परोसा गया। आयोजन समिति के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने भोजन स्वयं अपने हाथों से विनय भाव के साथ परोसा। ‘अतिथिदेवो भव:’ को उज्जैन की समाज ने चरितार्थ किया।
यातायात की सुंदर व्यवस्था : विद्वानों को आवागमन में कोई परेशानी न हो इसके लिए आयोजन समिति ने विद्वानों को स्टेशन/बस स्टैंड से रिसीव करने के लिए वाहन की व्यवस्था की, स्टेशन लेने पहुँचे तथा संगोष्ठी के बाद स्टेशन तक भिजवाया भी। आवास स्थान से संगोष्ठी स्थल तक आवागमन के लिए ससमय वाहन व्यवस्था की गई, अभिषेक-पूजन के लिए पूजन की थालियां और पूजन के शुद्ध वस्त्रों का समुचित प्रबंध किया था। संगोष्ठी स्थल पर बैठक व्यवस्था बड़े ही शानदार तरीके से की गई थी। संगोष्ठी का लाइव प्रसारण ‘ सुप्रभ उवाच’ यूट्यूब चैनल पर किया गया।
आयोजक दिगम्बर जैन समाज एवं महाज्ञान कुंभ बर्षायोग समिति के अध्यक्ष शान्तिकुमार कासलीवाल, कार्याध्यक्ष प्रमोद जैन, महामंत्री अशोक जैसवाल, अरविन्द बुखारिया, अशोक मंगलम, आवास प्रभारी मुकेश काला, राजकुमार जैन, सतेन्द्र जैन, अशोक मोदी, सुनील बरघड़िया, पी सी मंगलम आदि पदाधिकारियों, वरिष्ठ समाजजनों ने विद्वानों का भावभीना सम्मान किया।
संगोष्ठी के निर्देशक डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत व संयोजक डॉ. सुनील संचय ललितपुर को प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया।
सुनयनपथगामी अनुशीलन का हुआ विमोचन : संगोष्ठी के दौरान मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में वर्णी भवन मोरा जी सागर (सन 2021 में) में सम्पन्न हुई संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा प्रस्तुत आलेखों की स्मारिका ‘सुनयनपथगामी अनुशीलन’ का भव्य विमोचन किया गया। जिसका संपादन /संयोजन पंडित विनोद जैन रजवांस व डॉ सुनील संचय ललितपुर ने किया है। साथ ही शास्त्रि-परिषद की प्रमुख पत्रिका ‘बुलेटिन’ का चारुकीर्ति जी भट्टारक महास्वामी स्मृति विशेषांक भी विद्वानों को प्रदान किया गया।
यह संगोष्ठी आचार्य प्रवर अमितगति के ग्रंथ भावना द्वात्रिशंतिका (सामायिक पाठ) पर मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज की कृति ‘सुरभित मैत्री’ पर केंद्रित थी। मुनिश्री ने भावना द्वात्रिशंतिका के 32 श्लोकों पर 32 प्रवचनों के माध्यम से विस्तार से प्रकाश डाला है। ‘सुरभित मैत्री’ अध्यात्म एवं वक्तृत्वकला के संगति स्वरूप उदघाटित हुई है, जिसमें पगै-पगै अध्यात्म की रसधार है तो पंक्ति-पंक्ति में, शब्द-शब्द में वक्ता की आंतरिक विद्वता का श्रृंगार है।