गुंसी। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी के ससंघ सान्निध्य में श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी में नित प्रति अभिषेक, शांतिधारा व शांतिविधान का क्रम बना हुआ है। प्रतिदिन भक्त गुरु माँ के मुखारविंद से अपने नाम के शांतिधारा करने का पुण्यार्जन कर रहे है। आज की शांतिधारा करने का अवसर सुरेश कोटा, चंदाबाई कोटा वालों ने प्राप्त किया। भक्ति भावों से शांति प्रभु के चरणों में शांति विधान का सौभाग्य विनय जी देवली वालों ने प्राप्त किया। मंडल पर बड़े ही श्रद्धा भक्ति से 120 अर्घ्य समर्पित किये गए। पूज्य माताजी की उपवास के बाद पारणा कराने का अवसर चौमुं बाग जयपुर समाज ने प्राप्त किया।
पूज्य माताजी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि – सार्थक और सकारात्मक जीवन जीने के लिए ज्यादा परिश्रम की जरूरत नहीं है। अकसर लोग इसके लिए भटकते फिरते हैं, जबकि हर इंसान के पास दिमाग है जो पूरे शरीर को तो संचालित करता ही है और वही जीवन की यात्रा भी तय करता है। कोई विपरीत स्थितियों और परिस्थितियों के बावजूद अपने दिमाग का सही और सटीक प्रयोग करके ऊंची उपलब्धियां हासिल कर लेता है और कोई सारी सुविधाओं के बावजूद असफल रहता है। हर व्यक्ति को सबसे पहले सुनने की आदत डालनी न बताई है। जब व्यक्ति विद्वानों, श्रेष्ठजनों और गुरुओं की बातें सुनता है तो शब्द रूपी ब्रह्म कानों से प्रवेश कर मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन करते हैं। मस्तिष्क में अच्छी-अच्छी बातें आती हैं। वहीं खराब और बुरी बातें सुनने के बाद प्राय: झगड़े-फसाद हो जाते हैं। ज्ञान से चिंतन-मनन का भाव पैदा होता है। जेम्स वाट ने भाप की आवाज को पहचाना कि भाप में शक्ति है तो न्यूटन ने सेब के गिरने की आवाज सुन ली और गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया। बड़े-बड़े भौतिक विज्ञान के प्रोजेक्ट क्यों न हो उनमें डिजाइन और प्लानिंग की जाती है। फिर उसके हिसाब से धन की व्यवस्था की जाती है। फिर उस प्रोजेक्ट पर काम शुरू होता है। उसी प्रकार जीवन में सबसे पहले मन की आवाज जरूर सुननी चाहिए। प्रथम स्तर पर मन ही बहुत कुछ बता देता है। गलत काम को तो जरूर बताता है। आसपास की घटनाओं, माता-पिता, गुरु आदि की बातों को गहराई से सुनकर जब कोई कदम उठाएंगे तो वह बेहतर होगा।