जब डॉक्टर सिरिंज में किसी शीशी से दवा भरता है तब यह जरुरी नहीं की सिर्फ दवा ही सिरिंज में प्रवेश करे। बहुत बार ऐसा होता है की एक दवा की शीशी कई बार इस्तेमाल करने से वह कुछ खाली हो जाती है जिससे उसमे दवा के साथ हवा भी मौजूद रहती है। इसलिए जब इस शीशी में सिरिंज को डाल कर दवा को बाहर खींचा जाता है तब दवा के साथ यह हवा भी सिरिंज में भर जाती है।
ऐसे में यदि इसे सीधे मरीज के शरीर में लगा दिया जाये तब यह हवा के बुलबुले भी नसों में प्रवेश कर जायेंगे। हवा के बुलबुले नसों से होते हुए शरीर की विभिन्न रक्त कोशिकाओं तक पहुंच जाते हैं। जिससे रक्त कोशिकाओं का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। जिससे उस भाग की रक्त आपूर्ति बाधित हो जाती है। इसके कारण मरीज को जी मिचलाने, घबराहट होने, ब्रेन हेमरेज, लकवे जैसी शिकायत हो सकती है।
और यदि यह हवा का बुलबुला मरीज के ह्रदय तक पहुँच जाये तो हृदयघात के साथ मौत भी हो सकती है। इसलिए डॉक्टर जब इंजेक्शन लगाते हैं तब इंजेक्शन में से थोड़ी दवाई निकाल देते हैं? जिससे की उस दवा के साथ हवा भी बहार निकल जाये और मरीज के शरीर में न पहुँच पाए।
नोट : गलत दवा के अनावस्यक सेवन से जरुरत से ज्यादा पेनकिलर्स खाने से बहरापन की शिकायत भी हो सकती है।
इंजेक्शन कन्हा लगना है इसका चुनाव कैसे करते हैं?
हाथ या कमर में इंजेक्शन का चुनाव बीमारी के आधार पर नहीं होता बल्कि इंजेक्शन में मौजूद दवा के आधार पर होता है। इस प्रकार के इंजेक्शन जिनमें मौजूद लिक्विड खून में आसानी से मिल कर प्रवाहित हो सकता है, उन्हें हाथ में लगाया जाता है। बोलचाल की भाषा में इन्हें हल्के इंजेक्शन कहा जाता है। इनके कारण शरीर को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती।
कूल्हे में वह इंजेक्शन लगाए जाते हैं जिनके अंदर मौजूद लिक्विड रक्त के साथ आसानी से समायोजित नहीं होता। लिक्विड के खून में मिलने की प्रक्रिया के दौरान मरीज को दर्द हो सकता है। दर्द के अहसास को कम करने के लिए इंजेक्शन को कवर में लगाया जाता है। इस तरह के इंजेक्शन हाथ में लगाने की स्थिति में कभी-कभी हाथ हमेशा के लिए काम करना बंद कर देता है।
डाॅ. पीयूष त्रिवेदी, एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ