गुंसी, निवाई। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ श्री दिगम्बर जैन मंदिर सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी जिला टोंक (राज.) में विराजमान है । माताजी के मुखारविंद से अभिषेक शांतिधारा करने का सौभाग्य राजकुमार संजय ब्यावर टीकमचंद केकडी वालों ने प्राप्त किया। शांतिप्रभु के पादमूल में शांति विधान का अवसर पर सन्तोष वरुण पथ जयपुर वालों को प्राप्त हुआ। पूज्य माताजी ने सभी को संबोधन देते हुए कहा कि – हर व्यक्ति को सबसे पहले सुनने की आदत डालनी चाहिए। जो व्यक्ति सुनता कम है और बोलता ज्यादा है, वह आगे बढऩे के तमाम अवसरों से चूक जाता है। हमारे ऋषियों मुनियों ने शुभ और सुखद सुनने की कला बताई है। जब व्यक्ति विद्वानों, श्रेष्ठजनों और गुरुओं की बातें सुनता है तो शब्द रूपी ब्रह्म कानों से प्रवेश कर मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन करते हैं। मस्तिष्क में अच्छी-अच्छी बातें आती हैं। वहीं खराब और बुरी बातें सुनने के बाद प्राय: झगड़े-फसाद हो जाते हैं। ज्ञान से चिंतन-मनन का भाव पैदा होता है। जेम्स वाट ने भाप की आवाज को पहचाना कि भाप में शक्ति है तो न्यूटन ने सेब के गिरने की आवाज सुन ली और गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया। बड़े-बड़े भौतिक विज्ञान के प्रोजेक्ट क्यों न हो उनमें डिजाइन और प्लानिंग की जाती है। फिर उसके हिसाब से धन की व्यवस्था की जाती है। फिर उस प्रोजेक्ट पर काम शुरू होता है। उसी प्रकार जीवन में सबसे पहले मन की आवाज जरूर सुननी चाहिए। प्रथम स्तर पर मन ही बहुत कुछ बता देता है। गलत काम को तो जरूर बताता है। आसपास की घटनाओं, माता-पिता, गुरु आदि की बातों को गहराई से सुनकर जब कोई कदम उठाएंगे तो वह बेहतर होगा।