सुनिल चपलोत/चैन्नई। अभिमान नहीं करना और स्वाभिमान को छोड़ोगे नहीं तो जीवन में दुःख नहीं सुख पाओगे। मंगलवार साहुकार पेट जैन भवन मे श्री मद उत्तराध्ययन सूत्र के सोलहवें अध्याय का साध्वी स्नेहप्रभा ने वर्णन करतें हुए श्रध्दांलूओ से कहा कि अभिमान एक रोग है जिस मनुष्य को यह रोग लग जाता है वह जीवन भर दुःख झेलता है वह थोड़ी सी कामयाबी और अल्प धन के बल पर दुसरोँ के स्वाभिमान को गिराने वाला व्यक्ति जीवन मे कभी श्रेष्ठ और महान नहीं बन सकता है ऐसा इंसान जीवन प्रयाय सुख की अनूभूति नहीं कर सकता है और ना ही कभी महान बन पाएगा। वही व्यक्ति श्रेष्ठ और महान बन सकता है। जिसके भीतर मे करूणा, दया और अपनत्व की भावना के साथ स्वाभिमान होगा वही मनुष्य जीवन मे महान बन सकता है। और अपनी ख्याति को बढ़ा सकता है। महासती धर्मप्रभा ने अंजना चारित्र वांचन करतें हुए कहा कि कर्म बलवान होते है जिससे मनुष्य पीछा नहीं छुड़ा सकता है वह संसार के किसी भी कोने मे छिप जाए, कर्म उसका पीछा छोड़ने वालें नहीं है और कर्मो के भूगतान किए बिना संसार से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। इस दौरान धर्मसभा में श्री एस.एस.जैन संघ के अध्यक्ष एम.अजितराज कोठारी, कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया, सुरेश डूगरवाल, जितेन्द्र भंडारी,शम्भूसिंह कावड़िया,सज्जन राज सुराणा आदि पदाधिकारियों ने अतिथियों और त्याग प्रत्याख्यान लेने वाले तपस्वीयो का स्वागत किया।