सुनिल चपलोत/चैन्नई। परमात्मा की शरण मे जाने से पहले मनुष्य को स्वंय की आत्मा की शरण में जाना पड़ेगा। तभी वह परमात्मा तक पहुंच सकता है। सोमवार को साहुकारपेट जैन भवन साध्वी स्नेहप्रभा ने श्रीमद उत्तराध्ययन सूत्र के तेरहवें अध्याय अज्झयणं चित्तसंभूइज्जं पाठ का वर्णन करते हुए श्रध्दांलूओ से कहा कि संसार मे आत्मा से बढ़कर कुछ भी नहीं है। और मनुष्य संसारिक और भौतिक वस्तुओं से परमात्मा को प्राप्त करना चाहता है जबकि आत्मा को साधने बिना परमात्मा से आत्मा का मिलन नहीं हो सकता है। वही व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त कर सकता है जिसने स्वंय की आत्मा को साध लिया तो वह परम् पिता परमेश्वर से अपनी आत्मा का मिलन करवा सकता है। और इस आत्मा को संसार से मुक्ति दिलवा सकता है। महासती धर्मप्रभा ने अंजना चारित्र का वांचन करते हुए कहा कि इंसान के कर्म ही उसके भाग्य की रचना करते हैं। लेकिन संसार मे भाग्य सभी के एक जैसे नहीं होते है लेकिन मनुष्य अच्छे कर्म करके अपने भाग्य को बदल सकता है और जीवन मे सफलता प्राप्त करके भविष्य को संवार सकता है। श्री संघ के कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया ने जानकारी देतें हुए बताया कि धर्मसभा मे अनेक श्रध्दांलूओ के साथ श्री एस.एस.जैन संघ साहुकारपेट के अध्यक्ष एम.अजितराज कोठारी,हस्तीमल खटोड़,अशोक कांकरिया, शम्भूसिंह कावड़िया,पृथ्वीराज वाघरेचा,उत्तम चन्द नाहर आदि की उपस्थित रही।