Friday, November 22, 2024

विद्यासागर जी जन्म दिवस शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर पर, अद्भुत गुरु के अद्भुत शिष्य आचार्य श्री विद्यासागर जी

भारत भूमि मुनियों, संतों, महात्माओं, आचार्यों की भूमि रही है और सभी की सत्य अहिंसा समता, जीयो और जीने दो, वसुधैव कुटुंबकम का भाव जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हम सबका यह परम सौभाग्य है कि इस युग के विश्व विख्यात महान तपस्वी एवं श्रमण संस्कृति के महामहिम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आज हम सबके बीच साधना रत हैं और उनका आशीर्वाद भी हम सबको सुलभ है।
आचार्य श्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले के ग्राम सदलगा में श्रावक श्रेष्ठी
मलप्पाजी अष्टगे और श्रीमती श्रीमंती जी के घर आंगन में बालक विद्याधर के रूप में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में
विद्याधर आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के प्रवचन सुनकर भाव विभोर हो जाते थे। 20 वर्ष की उम्र में आपने आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य
व्रत लेकर गृह त्याग का संकल्प कर लिया और आचार्य श्री के समक्ष अपनी भावना व्यक्त कर एवं उनका आशीर्वाद एवं निर्देश पाकर विद्याधर जैन दर्शन के मर्मज्ञ और संस्कृत, प्राकृत एवं हिंदी के अध्येता एवं अनुभव और आयु समृद्ध अद्भुत भविष्यवेत्ता मुनि श्री ज्ञान सागर जी की शरण में अजमेर पहुंच गए और उसी दिन से उनके जीवन की दशा और दिशा बदल गई।
मुनि ज्ञान सागर जी ने ब्रह्मचारी विद्याधर के भीतर पनप रहे वैराग्य को भांप लिया और आशीर्वाद देकर अपने संघ में रहने की अनुमति प्रदान की ।उसी दिन से विद्याधर ने मुनि ज्ञान सागर जी के समक्ष आजीवन वाहन का त्याग कर दिया और डेढ़ वर्ष तक ज्ञान सागर जी के संघ में रहते हुए विधिवत साधना और अध्ययन में लीन रहकर धर्म, दर्शन, न्याय, व्याकरण और साहित्य सृजन की सारी सीढ़ियां पार कर महाव्रत के दुर्गम शिखर तक पहुंच गए। दिनांक 30 जून 1968 को अजमेर की पावन धरा पर 22 वर्ष की उम्र में मुनि ज्ञान सागर जी ने ब्रह्मचारी विद्याधर को जैनेश्वरी मुनि दीक्षा प्रदान कर विद्यासागर बना दिया एवं 22 नवंबर 1972 को नसीराबाद राजस्थान में आचार्य ज्ञानसागर जी ने अपने अद्भुत सुयोग्य शिष्य
मुनि विद्यासागर की चरण वंदना करते हुए अपना आचार्य पद भी उन्हें सौंप दिया जो इतिहास में अपने ढंग का अनूठा और दुर्लभ तम उदाहरण है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज कोई सामान्य संत नहीं हैं
वे एक गांधीवादी विचारधारा से ओतप्रोत एक निराभिमानी, निस्पृही, निश्छल राष्ट्र संत हैं, जिन पर हमारी संस्कृति, समाज और राष्ट्र गौरव करता है। लगभग 5 दशकों से आप पद त्राण विहीन चरणों से पद बिहार करते हुए त्याग, तपस्या, ज्ञान ,साधना और अपनी करुणा की प्रभा से न केवल जैन क्षितिज को आलोकित कर रहे हैं वरन जिन शासन की ध्वजा को भी दिग- दिगंत तक
फहराकर उसका शीर्ष भी ऊंचा कर रहे हैं। आपके दीक्षा गुरु ज्ञान सागर जी श्रमण संस्कृति के उद्भट विद्वान और यथा नाम तथा गुण थे और आप भी उनके यथा नाम तथा गुण ऐसे अद्भुत शिष्य हैं जो आज धर्म और अध्यात्म के प्रभावी प्रवक्ता एवं श्रमण संस्कृति की उस परमोज्वल धारा के अप्रतिम प्रतीक हैं जो आज भी सिंधु घाटी की प्राचीनतम सभ्यता के रूप में अक्षुण होकर समस्त विश्व को अपनी गौरव गाथा सुना रही है।
आचार्य श्री का धर्म ,समाज, संस्कृति, साहित्य, नव तीर्थ सृजन, गोरक्षा, जीव दया, चिकित्सा एवं स्त्री शिक्षा और हथकरघा के क्षेत्र में जो अवदान है वह वर्णनातीत और स्वर्ण अक्षरों में अंकित किए जाने योग्य है। आपने अभी तक 450 से अधिक ऐलक ,क्षुल्लक, मुनि, एवं आर्यिका दीक्षा प्रदान कर श्रमण परंपरा को भी वृद्धिगत एवं गोरवान्वित किया है। आपके द्वारा रचित कृति “मूक माटी”हिंदी काव्य जगत का ऐसा कालजयी गौरव ग्रंथ और युग प्रवर्तक महाकाव्य है जिसके द्वारा आचार्य श्री ने राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया है और सर्वधर्म समन्वय एवं सामाजिक न्याय के लिए एक आचरण संहिता प्रस्तुत करते हुए मानव मात्र को शुभ संस्कारों से संस्कारित करने का अभिनव प्रयास भी किया है ताकि सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में एवं व्यक्ति के अंदर प्रविष्ट हुई कुरीतियों को निर्मूल किया जा सके। संप्रति डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ (छ ग) मैं चातुर्मास कर रहे प्रज्ञा ,प्रतिभा और तपश्चर्या की जीवंत मूर्ति आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के कुशल रत्नत्रय की मंगल कामना करते हुए उनके अवतरण दिवस पर कोटिश: नमोस्तु‌।

डॉक्टर जैनेंद्र जैन

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article