Saturday, November 23, 2024

विनयवान बने बिना नहीं हो सकती धर्म की सच्ची आराधना: समीक्षाप्रभाजी म.सा.

नवपद की आराधना करने से प्रबल होता है हमारा पुण्य: चेतनाश्रीजी म.सा.

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। सनातन धर्म में जिस तरह श्रीमद् गीता का महत्व है उसी तरह जैन धर्म में भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन आगम का महत्व है। इसके प्रथम अध्याय में ही बताया गया है कि धर्म का मूल ही विनय है। विनय के बिना धर्म नहीं हो सकता। विनय बाहर से नहीं अंदर से होना चाहिए। अहंकार होने पर जीवन की गति नहीं सुधर सकती। जो बाहर से विनयवान ओर अंदर से खराब हो उसकी दुर्गति तय है। अंदर एवं बाहर दोनों तरफ से जो विनयवान है उसका कल्याण अवश्य होगा। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में मंगलवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या वात्सल्यमूर्ति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना श्रीमद् भागवत उत्तराध्ययन आगम सूत्र की 21 दिवसीय आराधना शुरू करते हुए व्यक्त किए। पहले दिन प्रथम अध्याय विनय श्रुत एवं द्वितीय अध्याय परिषह की चर्चा की गई। इसके माध्यम से 13 नवम्बर तक उत्तराध्ययन सूत्र के 36 अध्यायों का वाचन पूर्ण किया जाएगा। मूल गाथा का उच्चारण करने के साथ उनका अर्थ भी समझाया जा रहा है। आचार्य श्री भूधरजी म.सा. की 368वीं जयंति भी श्रद्धा भाव से मनाई गई। समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमे अहम का त्याग कर स्वयं को छोटा मानते हुए सीखने की लालसा रखनी होगी। गुरू के समक्ष शिष्य हमेशा विनयवान होना चाहिए। विनय का सम्मान हमेशा होता है। उन्होंने दूसरे अध्याय परिषह की चर्चा करते हुए कहा कि जीवन में भूख, लोभ, तिरस्कार आदि 22 परिषह में कोई भी आए तो समभाव रखे। जीवन में उपसर्ग कोई अन्य प्रदान करता है लेकिन परिषह अपने आप उत्पन्न होते है। कभी इच्छाएं पूरी नहीं हो तो गुस्सा नहीं करना चाहिए। धर्मसभा में नवपद ओली आयम्बिल आराधना के तहत श्रीपाल-मैना सुंदरी चरित्र का वाचन करते हुए आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि नवपद की आराधना करने वाले का पुण्य प्रबल होता है ओर संकट के समय यही सहायक बनता है। उस इंसान को पहचानना सीखे जो कपट का चोला पहन हमारे गम में दुःखी होने का नाटक करता है। उन्होंने बताया कि किस तरह श्रीपाल के धवल सेठ के साथ जहाज पर यात्रा पर निकलने के दौरान पहले मदनसेना के साथ उसका विवाह होता है उसके बाद मदमस्त पागल हाथी को वश में कर देने पर एक राजा अपनी पुत्री रत्नमंजूषा का विवाह भी उसके साथ कर देता है। श्रीपाल की दो-दो शादियां राज परिवारों में होने ओर खूब धन संपदा होने पर धवल सेठ के मन में लालच आ जाता है ओर वह मुनीम के साथ मिल उसे मारने का षड़यन्त्र करता है ओर गहरे समुद्र में मगरमच्छ दिखने पर श्रीपाल जैसे ही झुकता है वह समुद्र में गिर जाता है। नवपद की शक्ति उसकी सहायक बनती है ओर वहीं मगरमच्छ उसके लिए घोड़ा समान बन उसे समुद्र के किनारे पहुंचा देता है। धवल सेठ श्रीपाल की पत्नियों के समक्ष ऐसा दिखावा करता है जैसे अधिक बहुत दुख हो रहा हो। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा., तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा का सानिध्य भी रहा।

सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत का जाप

रूप रजत विहार में मंगलवार को सुबह 8.30 बजे से सर्वसुखकारी व सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत जाप का आयोजन किया गया। मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. एवं तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने ये जाप सम्पन्न कराया। इसमें भाग लेकर श्रावक-श्राविकाओं ने सभी तरह के शारीरिक कष्टों के दूर होने एवं सर्वकल्याण की कामना की। चातुुर्मासकाल में प्रत्येक मंगलवार को सुबह 8.30 से 9.15 बजे तक इस जाप का आयोजन हो रहा है।

भूधर की जयंति आज आनंद रंग छायों

आचार्य श्री भूधरजी म.सा. की 368वीं जयंति एवं पुण्य स्मरण दिवस मंगलवार को तप-त्याग के साथ मनाया गया। पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने भजन ‘‘भूधर की जयंति आज आनंद रंग छायों’ के माध्यम से आचार्य भूधर का जीवन परिचय देते हुए उन्हें भावाजंलि अर्पित की। धर्मसभा में अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। सचंालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। नवपद ओली आयम्बिल आराधना चौथे दिन भी जारी रही। कई श्राविकाएं इसके तहत आयम्बिल तप कर रही है। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि नियमित चातुर्मासिक प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। चातुर्मासकाल में रूप रजत विहार में प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना, दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहा है।

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