सुनिल चपलोत/चैन्नई। साधना के बल पर असंभव काम को भी संभव किया जा सकता है।रविवार साहुकारपेट जैन भवन में महासती धर्मप्रभा ने नवपद ओली तप करने वाले अराधको और साधकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि साधना जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। मनुष्य विधी विधान और श्रध्दां-आस्था के साथ मन को स्थिर रखकर साधना करता है तो वह मनवांछित फल प्राप्त कर सकता है। जीवन में साधना छोटी और बड़ी नहीं होती है,साधना साधना होती है विधी- विधान और ध्यान पूर्वक व्यक्ति आराधना-साधना करता है तो वह मानव भव सार्थक बनाकर आत्मा को उच्चगति दिलवा सकता है।साध्वी स्नेहप्रभा ने श्रीमद उत्ताराध्यय सूत्र के पंचमं अध्याय अज्झयणं अकाममरणिज्यं पाठ का वर्णन करतें हुए श्रध्दांलु ओ से कहा कि संसार मे मनुष्य ने सम्पूर्ण कलाएँ प्राप्त करने बाद अगर उसमे मृत्यु की कला को नहीं जान पाया तो उसकी सम्पूर्ण कलाएं अधूरी रह जाएगी। जन्म का महोत्सव तो संसार के सभी व्यक्ति मनाते है परन्तु मृत्यु को महोत्सव बनाने वाला व्यक्ति ही मानव जीवन को सार्थक बनाकर अपनी आत्मा को मोक्ष दिलवा सकता है। मोह और अज्ञान मे जीवन जीने वाला इंसान मृत्यु को महोत्सव नहीं बना सकता है। साहुकारपेट श्रीसंघ के कार्याक्ष्य महावीर चन्द सिसोदिया ने जानकारी देतें हुए बताया कि आयंबिल ओलीजी के चतुर्थ दिवस धर्मसभा मे अनेक बहनों और भाईयो ने आयंबिल और एकासन व्रत के साध्वी धर्मप्रभा से प्रत्याख्यान लिए ।जिनका साहूकारपेट श्री एस. एस.जैन संघ के मंत्री सज्जनराज सुराणा, देवराज लुणावत, हस्तीमल खटोड़, शांतिलाल दरड़ा, शम्भू सिंह कावड़िया आदि सभी ने तप कि अनूमोदना करते हुए आयंबिल तप करने वाला का शब्दों से सम्मान किया गया।