वाणी प्रकाशन दरियागंज, दिल्ली व अयोध्या शोध संस्थान लखनऊ
वर्ष 2023
प्राकृत भाषा में राम कथा पउमचरियं की हिंदी भाषा में रचित कथा है। पउमचरियं महाराष्ट्री प्राकृत में 2000 वर्ष पूर्व लिखित रामकथा पर आधारित विशालकाय महाकाव्य है ।इसमें लगभग 9000 श्लोक और 118 सर्ग है ।भाषा ,शैली और काव्यगत सौंदर्य के साथ महाकाव्य के सभी आधारतत्वों से परिपूर्ण यह महाकाव्य अति आकर्षक मनोवैज्ञानिक तथ्यपरक रामकथा है। सर्वजन सुलभार्थ विदुषी डॉ. नीलम जैन ने इसमें से सभी रामायण के पुरुष ,महिला पात्रों विभिन्न घटनाओं काव्यगत विशेषताओं के वर्णन से इस शोध ग्रंथ बना दिया है।राम का जीवन सदा सर्वदा प्राणिमात्र के लिए प्रेरणाप्रद है राम भरत के वैराग्य, राम लक्ष्मण के साथ लव कुश युद्ध ,कैकेई के पश्चाताप ,मंदोदरी रावण संवाद का अति सजीव चित्रण है।
इस प्रति की विशेषता है कि प्रतिपाद्य विषय की महत्ता और प्रतिपादन शैली की रमणीयता का अनुपम समन्वय हुआ है । कवि ने अपनी विराट भाव योजना के लिए विशाल फलक पर लोक कल्याण की मंगलमय भाव भूमि पर प्रतिष्ठित किया है ,हिंदी में इसका अनुवाद विषय वस्तु आने से यह 2000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन रचना को आज का पाठक समझ सकेगा/ पढ़ सकेगा। इस कृति की उपयोगिता एवं महत्व को देखते हुए अयोध्या शोध संस्थान उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ ने अपने ग्लोबल एनसाइक्लोपीडिया आफ दी रामायण प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिया है । देश के प्रमुख प्रकाशन संस्थान वाणी प्रकाशन दरियागंज दिल्ली ने आकर्षक शुद्ध मुद्रण एवं प्रकाशन किया है। यह पुस्तक मनीषियों, राम कथा प्रेमियों, शिक्षाविदों शोधकर्ताओं सभी के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है ।लेखिका ने प्रभावपूर्ण आकर्षक भाषा एवं विविध विषयों को समाहित करते हुए किया है । स्वयं कवि विमल सूरी जी ने लिखा है- यह कथा पुण्यदायी सर्वसुख प्रदाता एवं दुर्गति से बचाने वाली है तथा इसके पढ़ने से समस्त मनोवांछित परियोजनाओं की सिद्धि होती है । इस कालजयी कृति का गौरव भी द्विसहस्त्र वर्षों के पश्चात भी प्रतिष्ठित है। प्राकृत भाषा में राम कथा सत्यं शिवमं सुंदरम से अभिमण्डित है ।इसमें मानवता का नवीन प्रकाश है राम कथा की पावनता है। विश्वास है यह कृति बौद्धिक वर्ग व जन सामान्य में लोकप्रिय होगी।