Friday, November 22, 2024

जैन दर्शन में पञ्च. अणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता

प्रस्तुति: सतेन्द्र कुमार जैन
सम्पादन: डॉ. दर्शना जैन
संस्करण: प्रथम, जून 2011

प्रकाशक – धर्मोदय साहित्य प्रकाशन, सागर

प्रमुख कृति की प्रस्तावना संजय कुमार जैन, सिविल जज ने लिखी है। प्रस्तुत कृति का नाम जैन दर्शन में पञ्च-अणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता है। उक्त विषय नाम से ही अवगत होता है कि इसमें जैन दर्शन के सिद्धान्तों की तुलना भारतीय दण्ड संहिता से की हैं। इसमें व्रत का स्वरूप, अहिंसाणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता, सत्याणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता, अचौर्याणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता, ब्रह्मचर्याणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता, परिग्रह परिमाणाणुव्रत एवं भारतीय दण्ड संहिता अंत में परिशिष्ट है। इसे लेखक ने कहानियों के माध्यम से समझाया है संदर्भ ग्रंथ सूची 101 पृष्ट पर है।

लेखक की उक्त पुस्तक पढकर ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने भारतीय दण्ड संहिता का अध्ययन परिश्रम तथा लगन से किया, जिससे श्रम साध्य इस पुस्तक के यह कार्य संभव हो सका है इस पुस्तक के यह विचार पाठकों के जनमानस में स्थापित हो जाते हैं तो पञ्च-अणुव्रत रूप सिद्धान्तों के पालन से अनायास ही भारतीय दण्ड संहिता की वर्णित धाराओं का पालन कर लेगा। जैनदर्शन के कुछ सिद्धान्तों में भारतीय दण्ड संहिता के अतिरिक्त अधिनियम लगने पर उसका संकेत मात्र किया है जिसे पाठकगण दण्ड को अपनी बुद्धि अनुसार स्वरूप समझकर कानून के अधिवेता से परामर्श करें। जैसें परविवाहकरण में बालविवाह अधिनियम, कुशील में अनैतिक देह व्यापार अधिनियम, हिन्दू विवाह अधिनियम आदि कुछ अन्य अधिनियमों का संकेत रूप से नामोल्लेख है। भारतीय दण्ड संहिता की लगभग 80 प्रतिशत धाराएँ जैन दर्शन के सिद्धांत पर आधारित हैं, लेखक ने तत्त्वार्थसुत्र के तीव्रमंदज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषभ्यस्तद्विशेषः सूत्र को भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं के आधार पर टेबल बनाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। समाज में 95 से 99 प्रतिशत अपराध ऐसे हैं, जो जानकारी के अभाव में हो जाते हैं। इन अपराधों को कम करने के लिए अपराध संहिता का सहज ज्ञान इस पुस्तक के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। अपराध होने से पहले अपराध को रोकने का एक उपाय और भी है जिसका नाम अपराध के अथवा कानून के विषय में प्रत्येक नागरिक को शिक्षा प्रदान करना है। समाज में उपस्थित पाठकगण एवं सत्ताधीन शासक वर्ग को परामर्श रूप निवेदन है कि यदि कानून की शिक्षा कक्षा 6 से उच्च शिक्षा की प्रत्येक कक्षा में हिंदी और अंग्रेजी विषय की भाँति अनिवार्य विषय कर दिया जाए, तो व्यक्तियों को अपराध के विषय में जानकारी पर्याप्त मात्रा में हो सकती है। पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् पाठक तो अपराध से बच ही सकते हैं। यदि एक व्यक्ति भी बच जाता है, तो मैं लेखक की इस पुस्तक के लेखन को सफल समझूंगी।

पुस्तक समीक्षक-डॉ दर्शना जैन, जयपुर

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article