टीकमगढ़। नगर के 1008 मुनिसुव्रतनाथ दिगम्वर जैन मंदिर पारस विहार कॉलोनी टीकमगढ़ मे परम पूज्य तपस्वी रत्न वात्सल्यमूर्ति श्रमणोपाध्याय श्री विकसंत सागर जी महाराज के ससंघ मंगल पावन सानिध्य मे 1008 एकीभाव स्तोत्र विधान का आयोजन बड़े ही भक्ति भाव से किया गया। प्रतिदिन प्रातः कालीन, नित्य नियम सामूहिक अभिषेक, शांतिधारा करने का मंगल सौभाग्य श्रीमती अंगूरी जैन वीरेन्द्र सापोन, श्रीमति वैशाली जैन अमन सापोन को प्राप्त हुआ। शांतिधारा पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद द्वारा कराई गई।तत्पश्चात श्री 1008 एकीभाव विधान का आयोजन बड़े ही भक्ति भाव से किया गया। मुनिश्री ने भक्तो को सम्बोधित करते हुये कहां श्रीपाल को कुष्ठ रोग क्यों हुआ था आपको पता है?श्रीपाल ने पूर्व पर्याय में मुनिराज का अनादर किया था तथा 700 साथियों ने उसकी अनुमोदन की थी उसे कर्म का फल श्रीपाल सहित 700 साथियों को कुष्ठ रोग हो गया था पुण्य कर्म किया तो सभी का कुष्ठ रोग दूर हो गया। कर्म ने दु:ख दिया ऐसा कभी मत कहना तूने अशुभ कर्म किये थे उसी का उदय आया है। यदि तूने शुभ कर्म किये होते तो तुझे ये कर्म दु:ख नहीं देते।अतः मेरे द्वारा किये गये कर्मों का ही ये फल है ऐसा चिंतावन करके समता से कष्टों को सहना तो तेरे पूर्व कृत कर्मों की निर्जरा हो जाएगी तथा नवीन कर्मबंध नहीं होगा यदि तूने संकलेश्ता की,या अशुभ परिणाम किये तो पूर्व कृत कर्मों का फल तो भोग ही रहा है तथा नवीन कर्मों का बंध् करके भविष्य में उसका फल पुनः भोगेगा अतः कष्टों को समता से सहन करके पूर्व कर्मो क्षय् करों । अंत में गुरुदेव ने कहा पाप कर्म के उदय में कूलों नहीं और पुण्य कर्म के उदय में फूलों नहीं दोनों में सम्भाव रखो क्योंकि न पाप कर्म शाश्वत है न ही पुण्य कर्म क्योंकि दोनों कर्म विनाशीक् हैं।समस्त विधि विधान का कार्य ब्रह्मचारी भैया सागरमल जी एवं बा. ब्र. देशना दीदी के कुशल निर्देशन में किया गया। अनुराग जैन अकलंक जैन अंकुश जैन आशीष जैन अमित जैन कमलेश जैन विनोद जैन रियांक जैन अमन जैन आदि का सहयोग सराहनीय रहा।