Friday, November 22, 2024

नव दिवसीय विधान एवं जिनेन्द्र अर्चना महोत्सव आयोजित

टीकमगढ़। नगर के 1008 मुनिसुव्रतनाथ दिगम्वर जैन मंदिर पारस विहार कॉलोनी टीकमगढ़ मे परम पूज्य तपस्वी रत्न वात्सल्यमूर्ति श्रमणोपाध्याय श्री विकसंत सागर जी महाराज के ससंघ मंगल पावन सानिध्य में नव दिवसीय विधान का आयोजन किया जा रहा है।प्रतिदिन प्रातःकालीन,नित्य नियम सामूहिक अभिषेक, शांतिधारा पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद द्वारा कि जा रही है।तत्पश्चात श्री 1008 वासुपूज्य महामंडल विधान का आयोजन बड़े ही भक्ति भाव से किया गया। मुनिश्री ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुये धर्म का महत्व बतलाते हुये कहा धर्म मंदिर में नहीं, शास्त्रों में नहीं, पीछी कमंडल में नहीं, किसी मठ में नहीं, केश लोंच में नहीं, गुरुद्वारा में नहीं होता बल्कि धर्म तो आत्मा में होता है आत्मा के परिणामों को निर्मल बनाकर रखो। धन के अभाव में धर्म नहीं होता ऐसा अज्ञानी जीव कहता है परंतु ज्ञानी जीव ऐसा कदाचित नहीं सोचता है क्योंकि धन से धर्म नहीं होता धन से धार्मिक क्रियाएं तो हो सकती हैं परंतु धर्म तो निर्मल भावों से होता है। इसलिए इस गलत अवधारणा को नष्ट करो और धन का विकल्प न करके धर्म करो धन हो या ना हो भाव निर्मल रखो तो धर्म हो जायेगा। धर्म करते समय सांसारिक सुखों की कामना किंचित भी मत करना कथंचित मुक्ति की आकांक्षा कर लेना परंतु ये भी ध्यान रखना आकांक्षा से मुक्ति नहीं बल्कि धर्म करने से मुक्ति मिलती है। धन विनाशीक है धर्म शाश्वत ह, धन से दु:ख मिल सकता है परंतु धर्म से कभी भी दु:ख नहीं मिलता है।हे ज्ञानी धन से चिंताएं बढ़ती हैं धर्म से चिंताएं घटती हैं, धन से भोजन मिल सकता है परंतु धर्म से भूख मिटती है धर्म नहीं किया तो पुण्य के अभाव में भोजन नहीं कर पाते हैं। अंत में मुनि श्री ने कहा हे भोले ज्ञानी मनुष्य पर्याय धर्म करने के लिए प्राप्त हुई है इसे भोगों में मत गवा देना।

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article