Saturday, September 21, 2024

इंसान होकर इंसान के काम आना सबसे बड़ा धर्म: संत विगुण सागर

अंबाह। जैन धर्मशाला में धर्म सभा को संबोधित करते हुए संत श्री 105 विगुण सागर जी महाराज ने कहा कि जो अन्नदान करता है उसका अन्नभंडार सदा भरा रहता है। व्यक्ति आतिथ्य सत्कार के लिए सदा तैयार रहें। महिलाएं चार मुठ्ठी आटा ज्यादा भिगोए। चार रोटियों से आपके तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर जिसके पेट में अन्न जाएगा उसका बहुत भला हो जाएगा। व्यक्ति वस्त्र दान और औषधि दान करने की भावना रखे। घर में अनुपयोगी अथवा पुराने कपड़ों को देने में संकोच न खाएं। कोई गरीब बीमार हो जाए तो उसे औषधि दिलाने का पुण्य कमाएं। घर के बाहर मटकी भर के रख दें, छत पर कुंडी भर के रख दें ताकि औरों की प्यास बुझाने का सौभाग्य मिल सके। श्रमदान करने की प्रेरणा देते हुए संत श्री ने कहा कि आप जिस क्षेत्र में है उस क्षेत्र में श्रमदान करे। व्यापारी महिने में एक दिन न फायदा न घाटे में सामान बेचे, डॉक्टर एक दिन फ्री में देखें, गरीबों के ऑपरेशन निशुल्क करें, रक्तदान और नेत्रदान का सौभागय लें।
संत श्री ने कहा कि दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है और दूसरों के दिल को ठेस पहुँचाने से बढ़कर कोई पाप नहीं है। जैसे फूल का धर्म है खिलना, काँटे का धर्म है गढऩा, पानी का धर्म है शीतलता और अग्नि का धर्म है गर्मी पैदा करना, ठीक वैसे ही इंसान सोचे कि आखिर उसका धर्म क्या है। हम इंसान हैं इसलिए पहले इंसानियम का धर्म अपनाएं और इंसान होकर इंसान के काम आएं। अगर कोई मंदिर में एक ओर लाखों को चढ़ावा बोलता है और दूसरी ओर द्वार पर आए भिखारी को धक्के मार के निकाल देता है तो सोचो उसका धर्म ठीक है? देने वाला कहलाता है देवता- संतश्री ने कहा कि जो औरों को देता है वही देवता कहलाता है। जो गरीब और जरूरतमंद लोगों के काम आता है, उनकी सेवा करता है भगवान उसकी झौली सदा भरता है। उन्होंने कहा कि भगवान से प्रार्थना में धन-दौलत नहीं, वरन् औरों के काम आने की सेवा मांगना क्योंकि सेवा से मेवा अपने आप बरसने लग जाते हैं। जिसके भीतर औरों का भला करने की भावना है उससे अगर सौ गलतियाँ भी हो जाए तो भगवान उसे माफ कर देता है। दूसरों की मदद करें-दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि केवल अपने बीबी-बच्चों तक ही सीमित न रहें वरन् दूसरों की मदद भी करें। जो दूसरों की मदद करेगा वह जरूर आगे बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि भाग्य का निर्माण धर्म-कर्म से नहीं मदद करने से होगा।

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