Sunday, September 22, 2024

भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषयक मासिक ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन

अयोध्या। जे ए एस एकैडमी और श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान मे आयोजित भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषयक मासिक ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन। व्याख्यानमाला 14 अक्टूबर को अयोध्या के सांस्कृतिक इतिहास पर वरिष्ट इतिहासकार डा. संजय सोनवानी का व्याख्यान दिया। आपने बताया भारतीय संस्कृति की शुरुआत अयोध्या से ही हुई है और अयोध्या के प्रथम राजा भगवान ऋषभदेव ने जगत को असि मसि कृषि विद्या वाणिज्य शिल्प आदि सभी तरह की कला सिखाई। भगवान ऋषभदेव का ही पुत्र भरत था जो प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुआ और तभी से यह देश भारत कहलाया। कुछ लोग दुष्यंत पुत्र भारत से भारत होना मानते हैं या ऋग्वेद में उल्लेखित भरत जनों से भारत का आधार मानते हैं यह दोनों विचार साहित्य और पारंपरिक प्रमाण के अभाव में तथ्यात्मक नहीं है। साहित्यिक प्रमाण के साथ 2200वर्ष प्राचीन खारवेल के शिलालेख में भारतवर्ष शब्द उल्लेखित है । साथ ही अयोध्या डा बी बी लाल को मिली 2400 प्राचीन जिन केवलिन की मृणमूर्ति भारत में प्राचीनतम जैन प्रतिमा है।
डॉक्टर नरेंद्र भंडारी निदेशक जेएस ने बताया की इस तरह के काफी प्रमाण अब मिलने लगे हैं जिनसे जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है। अतः हमें इन प्रमुख प्रमाणो के आधार पर पाठ्य पुस्तकों में संकलित किए जाने के लिए प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉक्टर रेखा जैन ने बताया की अनेक जगहों पर ऐसे ऐतिहासिक पुरातात्विक संदर्भ उपलब्ध है जो लिखित जैन परंपरा की पुष्टि करते हैं। हमें प्रयास करना चाहिए की इन प्रमाणों के साथ-साथ विद्वानो को संगोष्ठी करके उनके विचार विमर्श करके इनको वैश्विक रूप से प्रचार प्रसार करना चाहिए। मुख्य अतिथि वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि हमारे इतिहास की जानकारी आम लोगो तक पहुचाने के लिए स्कूल और कॉलेज में जैन चेयर और कोर्स और पारंपरिक शिक्षा दिये जाने की आवश्यकता है । जिसके लिए समाज के लोगो को इसके लिए प्रयास करने चाहिए तभी यह उद्देश्य सफल होगा। कार्यक्रम संयोजक शैलेंद्र कुमार जैन ने कहा कि अयोध्या के पुरातात्व से लिखित जैन परंपरागत मान्यताओ का समर्थन तो होता ही है साथ ही उपलब्ध पुरातात्व से यह भी स्पष्ट होता है कि अति प्राचीन काल से जैन दर्शन का प्रमुख केंद्र रहा अयोध्या जिसको मैने अपने शोध लेखो मे सप्रमाण उल्लेखित किया है। मंगलाचरण कर कार्यक्रम का संचालन डा सुदेशी जैन ने किया। अनेक सदस्यों ने कार्यक्रम मे आनलाइन जुड़कर इसे सफल बनाया।

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