सुनिल चपलोत/चैन्नई। मनुष्य संसार की सम्पूर्ण कलाओं मे पारंगत और महारत हासिल करने बाबझूद अगर उसमे धर्म की कला को प्राप्त नहीं की है तो सारी कलाएं प्राप्त करना बेकार और निरर्थक है। गुरूवार जैन भवन के मरूधर केसरी दरबार में महासती धर्मप्रभा ने धर्म अराधना करने वाले सभी श्रध्दांलूओ से कहा कि धर्म श्रेष्ठ कर्मो का रूपान्तर है।अंतिम समय मे धर्म ही साथ जाता है बाकी सब कुछ यही पर धरा रह जाता है। मनुष्य के जीवन मे धर्म नहीं आया तो उसका संसार मे जन्म प्राप्त करने लेना व्यर्थ है। धर्म की शिक्षा ही जीवन का निर्माण और आत्मा का उत्थान करती है बाकी सारी कलाएँ किसी भी काम की नहीं है धर्म कि कला मे पारंगत हो जाने वाले मनुष्य को संसार किसी और कलाओ को प्राप्त करने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।क्योंकि धर्म ही इस लोक और परलोक का निर्माता है। वही एक ऐसा सुगम मार्ग है जो जीवन की नैया को पार लगाने में सहायक होता है।साध्वी स्नेहप्रभा ने उत्ताराध्यय सूत्र की तेरहवीं गाथा का वर्णन करतें हुए बताया कि मोह की बेड़ियों मे जकड़ा और फंसा इंसान अंधा और बहरा होता है ऐसे मनुष्य को कितने भी धर्म के उपदेश दे देवें। वह उपदेशों को सुनता नहीं है ऐसे मोह से डूबे व्यक्ति को धर्म के उपदेश देना व्यर्थ है। साहुकार पेट श्रीसंघ के कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया ने जानकारी देतें हुए बताया की धर्मसभा अनेक श्रावक श्राविकाओं के साथ साहुकारपेट श्री एस.एस.जैन संघ के अध्यक्ष एम.अजितराज कोठारी, मंत्री सज्जनराज सुराणा,हस्तीमल खटोड़, शांतिलाल दरड़ा,शम्भूसिंह कावडिय़ा आदि सभी की उपस्थित रही।