पाप करने से डरे, ईश्वर भले माफ कर दे पर कर्म नहीं छोड़ेंगे: दर्शनप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। धर्म ही हमारे जीवन का आधार है। धर्म करने से मनुष्य का जीवन पावन एवं पवित्र होता है। हम धर्म से जुड़े रहेंगे तो हमारे विचार भी श्रेष्ठ बनेंगे। धर्म खेत में तैयार नहीं होता बल्कि अपनी क्रियाओं से उसे अपनी आत्मा के अंदर निपजाना होता है। धर्म करने वाले के जीवन में सभी परेशानियों का हल हो जाता है ओर दुःख आकर भी उसे दुःखी नहीं कर पाते है। वह समभाव में रहना सीख जाता है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में बुधवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए भी विभिन्न प्रसंगों की चर्चा की। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि ईश्वर से भले मत डरिये लेकिन अपने कर्म से डरिये। भगवान भले हम अपनी गलतियों के लिए माफ कर दे पर कर्म कभी माफ नहीं करते ओर पीछा नहीं छोड़ते। कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। जीवन में समकित भाव आने पर ही भव सागर से किनारा मिलेगा। उन्होंने कहा कि हंसना बुरा नहीं है लेकिन किसी की हंसी उड़ाना बुरा है। ज्ञान को बोझ नहीं बनाकर उससे बोध लेना है। ज्ञान पर अभिमान करने वाले का पतन हो जाता है। जीवन में पैसा कभी सुख ओर शांति की गारंटी नहीं हो सकता इसलिए धर्म की शरण में जाना चाहिए। पैसा होने से बाहरी परिवर्तन बहुत आता है लेकिन यह नहीं समझ पाते है कि पूर्व जन्मों के पुण्य के कारण यह सब मिल रहा है। कभी भी अपने हाथ से कार्य करने में शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए क्योंकि अपने हाथ जगन्नाथ होते है। दूसरों पर निर्भर रहने वाला हमेशा कष्ट पाता है। तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन ‘मेरे दादा के दरबार सब लोगों का खाता’ की प्रस्तुति देने के साथ अधिकाधिक जिनवाणी श्रवण कर धर्म प्रभावना करने की प्रेरणा दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा का सानिध्य भी रहा। धर्मसभा में पधारे अजमेर वैशालीनगर श्रीसंघ के मंत्री डॉ. पीएम डोसी एवं महिला मण्डल की सुश्राविका सुशीला पीपाड़ा आदि अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। सचंालन समिति के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। नियमित चातुर्मासिक प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। चातुर्मासकाल में रूप रजत विहार में प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना, दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहा है।
महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की जयंति पर तेला आराधना 17 से
मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की 106वीं जयंति के उपलक्ष्य में 17 से 19 अक्टूबर तक एकासन एवं आयम्बिल का संयुक्त तेला तप होगा। इसके तहत 17 एवं 19 को एकासन एवं 18 अक्टूबर को आयम्बिल की तपस्या होगी। पूज्य महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. द्वारा अधिकाधिक श्रावक-श्राविकाओं को जयंति पर एकासन-आयम्बिल का तेला करने की प्रेरणा दी जा रही है।