सुनिल चपलोत/चैन्नई। साधनों से नही साधना से आत्मा को मुक्ति मिलती है। बुधवार साहूकार पेट जैन भवन में महासती धर्मप्रभा ने आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करतें हुए कहा कि मौत से बचना है तो आत्मा को जन्म- मरण से मुक्त करवाने पर ही आत्मा को संसार से मुक्ति मिल सकती है। मौत टलने वाली नहीं है क्योंकि प्रकृति और संसार का नियम है जो जीव संसार मे जन्म लेता है उसकी मृत्यु जन्म पर ही निधारित हो जाती है इस दुनिया ऐसा कौई जीव जन्मा नहीं जिसने जन्म लेने के बाद मृत्यु ना आई है। इंसान लाख जतन करले और कितना भी प्रत्यन करले फिर भी वह मौत पर विजय नहीं प्राप्त कर सकता है क्योंकि शरीर नश्वर है इस सत्य जो व्यक्ति स्वीकार लेता है वह मौत के आने पर भी मौत से डरेगा नही और नाहि भयभीत रहेगा। साधना ही वो मार्ग जिससे मनुष्य अपनी आत्मा को पहचान कर संसार मे आत्मा के जन्म और मृत्यु से मुक्त करवा सकता है साध्वी स्नेहप्रभा ने उत्ताराध्यय अध्ययन सूत्र की तेरहवीं गाथा वर्णन करतें हुए बताया संसार में आत्मा अकेले ही आती है और अकेले ही जाती है। फिर भी मनुष्य संसार के मोह मे साधना को छोड़कर साधनो मे लिप्त होकर अपनी मौत को भूल रहा है। और संसार के सुख को शास्वत समझ कर अपनी इस आत्मा की दुगति कर रहा है जबकि संसारी सुख क्षण मात्र का सुख है जबकि संसार दुःख ही दुःख भर हुए है।सही समय पर व्यक्ति चैत जाता है और साधना मे संलग्न हो जाएगा तो वह अपनी आत्मा को संसार के भटकाओ से बाहर निकाल कर के इस आत्मा को मोक्ष दिला लेगा। इसदौरान धर्मसभा मे साहूकार पेट श्री एस.एस.जैन संघ के कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया,महामंत्री सज्जनराज सुराणा, हस्तीमल खटोड़, शम्भूसिंह कावड़िया, जवंरीलाल कटारिया आदि ने बाहर से पधारें अतिथियों का स्वागत किया।