प्रकृति की व्यवस्था को प्रेम से स्वीकारें: गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी
गूंशी, निवाई। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ , गुन्सी में विराजित भारत गौरव गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी के सानिध्य में वार्षिक उत्सव मनाया गया जिसमें श्रद्धालुओं ने भगवान शांतिनाथ एवं नेमीनाथ भगवान के विशेष कलशाभिषेक करके शांतिधारा की। इस दौरान विज्ञाश्री माताजी के मंत्रोच्चार से चोबिस भगवान की पूजा अर्चना कर श्री फल अर्ध्य समर्पित किए गए जिसमें महावीर प्रसाद पराणा विमल जौंला सुनील भाणजा विमल सोगानी राजेश बनेठा को सौभाग्य मिला। इस दौरान शिखरचंद सिरस विष्णु बोहरा महेश जैन, महेंद्र चंवरिया, हितेश छाबड़ा, मनोज पाटनी सहित कई लोग मौजूद थे। इस अवसर पर विज्ञाश्री माताजी ने भक्तों को धर्मोपदेश देते हुए कहा कि – महान दार्शनिक सुकरात 70 वर्ष की उम्र में भी मानव जाति के समक्ष अपने दर्शन का प्ररूपण किया करते थे। मन का युवा होना जरूरी है। मन डूबा तो नाव डूबी। जो लोग बुढ़ापे को कारागार समझते हैं उनसे मैं कहना चाहती हूँ कि वे बुढ़ापे को जीवन का स्वर्ण शिखर समझें प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार जिनका जन्म हुआ है , उन्हें मृत्यु के द्वार से गुजरना ही पड़ता है जो फूल खिलता है, उसे मुरझाना भी पड़ता है। अगर व्यक्ति प्रकृति की इस व्यवस्था को प्रेम से स्वीकार कर ले तो उसके जीवन की आपाधापी खुद समाप्त हो जाये।