Monday, November 25, 2024

अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी वात्सल्य मूर्ति आचार्य श्री वसुनन्दी महामुनिराज

राष्ट्र संत आचार्य श्री १०८ विद्यानन्द जी मुनिराज के सुयोग्य शिष्य एवं विश्व भर में मीठे प्रवचन कर्ता के नाम से विख्यात आचार्य श्री १०८ वसुनन्दी जी महामुनिराज ने अपना आत्म कल्याण का मार्ग बाल्य अवस्था से ही चुन लिया था और 21 वर्ष की अवस्था में 1989 में ही मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली थी ।

वैराग्य का वेग
03 अक्टूम्बर 1967 को विरौंधा मनिया (धौलपुर ) में सौभाग्यवती त्रिवेणी देवी धर्म पत्नी श्री ऋषभ चंद जैन की कुक्षी से अवतरित बालक दिनेश जैन ने बी. कॉम. तक की लौकिक शिक्षा ग्रहण की। आगे सी.ए. के लिए जयपुर की ओर बढ़ते कदम अचानक वैराग्य के वेग से मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ गए और उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, कन्नड़, प्राकृत, उर्दू, अपभ्रंश, मुडिया, शोर्ट हैण्ड, गुजराती, ब्राह्मी लिपि, तमिल, बुन्देली सहित कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया तथा अब तक 350 के क़रीब ग्रंथ संपादित किए है ।

वसुनन्दी उवाच
इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें : मीठे प्रवचन , वसुनंदी उवाच, धर्म संस्कार ,सर्वोदयी नैतिक धर्म, दशामृत, आहार दान के अचिन्त्य फल, धर्म बोध संस्कार आदि है । बृहद प्राकृत ग्रंथ ‘अशोक रोहिणी’ चरित्र नामक महाकाव्य, जो दिगंबर जैनाचार्य द्वारा लिखित अब तक का सबसे वृहद महाकाव्य प्रकाशनाधीन है ।

धर्म प्रसार – पद विहार
एक वर्षाकाल से दूसरे वर्षा काल अर्थात् क़रीब आठ माह में 2000 किलोमीटर का पद विहार करते हुए साधु जीवन में 40000 से 45000 किलोमीटर का पद विहार कर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु दिल्ली में इन्होंने तथा इनके उपसंघों ने ‘धर्म बचाओ धर्म सिखाओ की अलख जगायी है ।

धर्म प्रभावक योगी
जैनम जयतु शासनं विश्व कल्याण कारकम् का घोष करने वाले वात्सल्य मूर्ति , अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, युवा मनीषी ,अध्यात्मिक संत , आदर्शोतम शिष्य , तपोनिधि , गुणसागर , वात्सल्य रत्नाकर , उपसर्ग विजेता , बाल योगी , वात्सल्य निधि , साधना के शिखर पुरुष , अध्यात्म सरोवर के राजहंस , तीर्थोद्धारक , लोह पुरुष ,गुरु सेवक, जिनधर्म प्रभावक, ज्ञान ध्यान तप में लीन, कुशल संघ संचालक, सरल मना, वात्सल्य की खदान, आचार्य श्री १०८ वसुनंदी जी गुरु से दीक्षा प्राप्त कर बहुत से मुनि आर्यिकाए अपनी आत्म साधना में लीन रहते हुए धर्म प्रभावना कर रहे है ।

ग्रंथ और सन्त जिन शासन के प्राण
जैन ग्रंथ प्रकाशन एवम् संरक्षण हेतु “निर्ग्रंथ ग्रंथमाला समिति“ तथा साधु सन्तों के आहार विहार आदि व्यवस्थाओ के लिए रास्ट्रीय स्तर पर “धर्म जागृति संस्थान “ जैसी संस्थाएँ तथा जम्बूस्वामी तपोस्थली बोलखेड़ा ,जिनशासन अजमेर, विद्यानंद स्थल नोएडा जैसे कई क्षेत्र है जिनका विकास इनकी प्रेरणा का ही परिणाम है ।

जयपुर सोभाग्य
जयपुर का सोभाग्य है की यहाँ आचार्य श्री एवं इनके सभी उप संघों का कभी न कभी प्रवास रहा है । जैन नगरी जयपुर के जैन समाज का आचार्य श्री के प्रति विशेष जुड़ाव* रहा है ,वर्तमान में भी मीरा मार्ग में चातुर्मास रत इनके तीन प्रिय शिष्य वृहद् कार्यक्रमो के साथ पूरे जयपुर में धर्म प्रभावना कर रहे है । जयपुर में वर्ष 2011 , 2015 ,2019,2020, 2022,2023 में आचार्य श्री ससंघ के तथा पाँच उप संघों के चातुर्मास के अलावा आचार्य श्री एवम् उपसंघों के सानिध्य में बड़े बड़े धार्मिक अनुष्ठान एवम् पंचकल्याण भी हुये है ।

मैरे जैसे कई भक्तजनों के पथ प्रदर्शक परम पूज्य आचार्य श्री को शत शत वन्दन शत शत नमन।

पदम जैन बिलाला
प्रांतीय अध्यक्ष
प्रांतीय धर्म जागृति संस्थान, राजस्थान

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