Saturday, September 21, 2024

महाराणा प्रताप से सीखों कैसे करते सनातन धर्म की रक्षा: ठाकुर

पं. श्रीदेवकीनंदन ठाकुरजी महाराज के मुखारबिंद से भागवतकथा श्रवण के लिए उमड़ रहे भीलवाड़ा वासी

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। अपने धर्म के खिलाफ आचरण करने वालों के साथ कभी खड़े मत रहो। सनातन धर्म की रक्षा करना सीखना है तो वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप से सीखो जिन्होंने घास की खाई पर अपने धर्म ओर स्वाभिमान से कोई समझोता नहीं किया। अपने स्वाभिमान को जागृत करे ओर सनातन की रक्षा के लिए खुद भी जगे ओर बच्चों को भी जगाए। सर्व कल्याण की कामना करने वाले सनातन धर्म की रक्षा करना हम सभी सनातनियों का कर्तव्य है। सनातनधर्मी अपने धर्म पर गौरव करें और कल्याण की राह दिखाए। ये विचार परम पूज्य शांतिदूत पं. श्रीदेवकीनंदन ठाकुरजी महाराज ने मंगलवार दोपहर शहर के आरसी व्यास कॉलोनी स्थित मोदी ग्राउण्ड में विश्व शांति सेवा समिति के तत्वावधान में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा महोत्सव के तीसरे दिन कथा में व्यक्त किए। तीसरे दिन जड़भरत संवाद, नृसिंह अवतार, वामन अवतार आदि प्रसंगों की चर्चा की गई। कथा श्रवण के लिए शहरवासियों के साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी भक्तों सैलाब मोदी ग्राउण्ड में उमड़ पड़ा। इस दौरान विभिन्न भजनों पर भी श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर होकर थिरकते रहे। ठाकुरजी ने कहा कि संत ओर ग्रंथ दोनों भगवान की वाणी है ओर उनके बताए मार्ग पर चलना सनातनियों का दायित्व है। भगवान को ढूंढने की इच्छा रखो मानव खुद तुम्हारे पीछे घूमेगा। भगवान हमारी माने ये जरूरी है,मनुष्य माने या न माने ये मायने नहीं रखता है। आप वेश से नहीं आचरण से साधु बने। हम किसी का बुरा नहीं सोचते न बुरा देखते है तो घर बैठे ही साधु है। अपने मैं को त्याग जो अपमान करने वाले को भी सम्मान दे उसी को भगवान मिलते है। उन्होंने कथा के माध्यम से सामाजिक समरसता का संदेश देते हुए कहा कि हमारा समय अच्छा चल रहा हो या विपरीत परिस्थितियां बन रही हो हर हाल में समभाव रखने वाला ही गोविन्द यानि परमात्मा की नजर में महान होता है। कौन कितना जिया इससे फर्क नहीं पड़ता कौन कैसे जिया इसका फर्क पड़ता है। जैसी हमारी संगत होगी वैसा ही हमारा रंग-ढंग होगा इसलिए संगत हमेशा श्रेष्ठ की करनी चाहिए। ठाकुरजी ने कहा कि कोई भी सांसारिक साधन बच्चों का जीवन सुखमय नहीं बना सकता केवल भगवान का नाम ही वह कवच है जो बच्चों को यहां भी ओर परभव में भी सुखी रखेंगे। आयोजन समिति के महासचिव एडवोकेट राजेन्द्र कचोलिया ने बताया कि तीसरेे दिन हनुमान टेकरी के महंत श्रीबनवारीशरण काठियाबाबा, सुरेन्द्र डांगी, दिनेश पोरवाल, राजेन्द्र सिंघवी, रमेश नेहरिया, गणपत चौपड़ा, फतहलाल जैथलिया, अनिल दरक, राजेश मण्डोवरा, दिनेश कचोलिया, बालूलालजी संदीप पोरवाल, योगेश लढ़ा आदि ने व्यास पीठ की आरती करके देवकीनंदनजी ठाकुर से आशीर्वाद प्राप्त किया। अतिथियों का स्वागत आयोजन समिति के संयोजक श्यामसुन्दर नौलखा, अध्यक्ष आशीष पोरवाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष एडवोकेट हेमेन्द्र शर्मा, महासचिव एडवोकेट राजेन्द्र कचोलिया, समिति के कोषाध्यक्ष राकेश दरक, सचिव धर्मराज खण्डेलवाल, संयुक्त सचिव दिलीप काष्ट आदि पदाधिकारियों ने किया। कथा के दौरान राधे-राधे की गूंज के साथ भजनों पर भक्तगण थिरकते रहे।

बंधन हो या मुक्ति सब मन पर निर्भर

पं. श्रीदेवकीनंदन ठाकुरजी महाराज ने कहा कि जीवन में बंधन व मुक्ति का एक मात्र कारण मन है। हमार मन संसार के उन कार्यो में लग जाता है जिसके कारण बार-बार जन्म लेना पड़ता है। उसी से बचने का मार्ग श्रीमद् भागवत कथा बताती है। मनुष्य जन्म ही मुक्ति का एक मात्र मार्ग है। मन में गोविंद बसाने पर गोविन्दधाम चले जाओंगे और मन में संसार सागर बसाने पर नरक ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि तन से अधिक मन की सुंदरता जरूरी है लेकिन अधिकतर लोग तन की सुंदरता देखते है। शरीर का नहीं मन का रंग ही काम का है।

कुत्ता घर के अंदर नहीं द्वार पर रखो

देवकीनंदनजी ठाकुर ने कहा कि जिस घर के अंदर कुत्ता रहता है वहा न देवी-देवता न पितृ पूजा को स्वीकार करते है चाहे हम कितनी ही पूजा कर ले। जिस घर के अंदर कुत्ते रहते है उनके आचार विचार भी प्रभावित होते है। उन्होंने कहा कि हो सकता उनकी कोई बात अच्छी नहीं लगे लेकिन वह वही बात करते है जो सनातन धर्म ओर हमारी संस्कृति के हित में हो। कुत्ते को घर के द्वार पर रखा जाना चाहिए अंदर स्थान नहीं दे सकते।

हमारे कर्म ही रोकते स्वर्ग जाने का मार्ग

ठाकुरजी ने कहा कि सभी स्वर्ग में जाने की कामना करते है लेकिन कर्म अपने हिसाब से ऐसे करते है जो स्वर्ग जाने का मार्ग रोक देते है। यदि हम स्वर्ग जाना चाहते है तो दूसरों को दुःखी करना, किसी को कलंकित करना, छवि खराब करना जैसे कार्यो पर फुल स्टॉप लगाना होगा। हम जैसे कर्म करेंगे वैसा ही फल पाएंगे। अच्छे कर्म करने पर सुख तो बुरे कर्म करने पर दुःख ही वापस आएगा। उन्होेंने कहा कि हम मौत को भूल जाते है ओर क्षणिक सांसारिक सुखों की आस में वह सारे कार्य करते है जो शास्त्रों में निषेध बताए गए है। याद रखे कि पाप की कमाई कभी ज्यादा टिकती नहीं है।

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