रोहित जैन/नसीराबाद। त्याग हमारी आत्मा को स्वस्थ और सुंदरतम बनाता है। यह बात आर्यिका तपोमति माताजी की शिष्या ब्रह्मचारिणी अन्जना व अर्चना दीदी ने दस दिवसीय पर्युषण पर्व के आठवें दिन मंगलवार को उत्तम त्याग धर्म की महिमा बताते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि त्याग का संस्कार हमें प्रकृति से ही मिलता है। वृक्षों में पत्ते आते हैं वह झड़ जाते हैं, फल लगते हैं और गिर जाते हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार रक्त से सने हुए वस्त्र को जल से धोकर शुद्ध कर लिया जाता है उसी प्रकार पाप से मलिन जीवन को ग्रह त्यागियो को आहार-दानादि से शुद्ध कर लिया जाता है। ब्रह्मचारिणी ने अपने संबोधन में दान की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दाता चार प्रकार के होते हैं। पहला गीली लकड़ी की तरह, दूसरे पत्थर की तरह, तीसरे घांस-फूस तरह व चौथे कपूर की तरह। नाम के लिए दिया गया धन कभी दान नहीं होता है। धन की तीन ही गति मानी गई है। दान, भोग और नाश। धन किसी को दे दिया या परोपकार व सेवा आदि में लगा दिया तो ठीक अन्यथा नाश तो होता ही है। जो देता है वह पाता है, जो संग्रहण करता है उसका सब यही पड़ा रह जाता है, जो दिया जाता है वह कीमती स्वर्ण सा हो जाता है, जो संग्रह कर लिया जाता है वह मूल्यहीन रह जाता है।