Thursday, November 28, 2024

त्याग वो कहलाता है जो छोड़ दिया जाता है और दान वो कहलाता है जो किसी के उपयोग के लिए दे दिया जाता है: मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी

आगरा। श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के अमृत सुधा सभागार हरीपर्वत में निर्यापक श्रमण मुनिपुगंव श्री सुधा सागर जी महाराज ससंघ के मंगल सानिध्य में 30 वां श्रावक संस्कार शिविर का आयोजन किया जा रहा है। शिविर के आठवें दिन मंगलवार को उत्तम त्याग धर्म मनाया गया। शिविरार्थी ने आठवें दिन का शुभारंभ प्रातःकाल ध्यान,श्रीजी का अभिषेक एव वृहद शांतिधारा के साथ किया। शिविरार्थीयो ने मुनिश्री ससंघ के मंगल सानिध्य एवं ब्रह्मचारी प्रदीप भैया सुयश एवं ब्रह्मचारी विनोद भैया,ब्रह्मचारी महावीर भैया जी के निर्देशन में मंत्रोच्चारण के साथ सभी मांगलिक क्रियाएं संपन्न की। धर्मसभा का शुभारंभ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ किया। मुनिश्री सुधा सागर जी ने उत्तम त्याग धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा त्याग कि वह चीज है जो इस बात का संदेश देता है कि कोई न कोई आत्मा से अपराध हुआ है क्योंकि स्वयं की चीज का कभी त्याग किया नही जाता। जो हमारा है वह हमारा ही रहेगा, उसको त्याग करने की बात आगम में नही कंही। जैसे हमारा ज्ञान- दर्शन स्वभाव है इसका त्याग नही करना। त्याग नाम की चीज है ही नही दुनिया मे। स्व चतुष्टय में कोई त्याग करने योग्य वस्तु है ही नही और फिर त्याग को धर्म कहा जा रहा है तो इसका अर्थ है ग्रहण करना, हमने कोई अपराध किया है। मुनि बनना हमारा स्वभाव नही है लेकिन कभी एक गलती करके दूसरी गलती करनी पड़ती है। जेल जाना,प्रतिक्रमण करना, भोजन- पानी ग्रहण करना आत्मा का स्वभाव नही है। तो क्या हिंसा धर्म है, नही, तो नियम लो कि मन-वचन-काय से हिंसा नही करेगे। तुम हिंसा करोगे तो अहिंसा भी धारण करनी पड़ेगी और हिंसा का त्याग कर दो तो अहिंसा की जरूरत ही नही पड़ेगी। अपन को सत्य बोलने का व्रत नही लेना है बस असत्य बोलने का त्याग करना है। नियम ग्रहण का नही, त्याग का किया जाता है। धर्म क्रिया को करते समय ज्ञानी व्यक्ति को कभी ये अनुभव में नही आता है कि यह क्रिया मैं अनन्तो बार कर चुका हूँ। ज्ञानी व्यक्ति जब भी करेगा उसको यही अनुभव में आता है मैं यह कार्य पहली बार कर रहा हूँ। हमने हर धर्म की सीमाएँ बांध ली, मन्दिर एक घण्टे के लिए आऊँगा। मैं साल भर मे इतना दान दूँगा, मैं दो पूजा नित्य करूँगा। पूजाओं की सीमा बांध ली। कोई भगवान से ये बोलकर नही गया बस भगवन मैंने कोई अपराध कर लिया है, मैंने परिवार बसा लिया है, मेरे ऊपर जिम्मेदारी है। बस भगवान इतनी देर के लिए जा रहा हूँ। यहाँ मन्दिर आने की कोई सीमा मत बांधो,भली 5 मिनिट में चले जाना। सीमा बांधकर मत आओ। असीम कर दो धर्म को। संकल्प करके मत जाना, मैं इतनी देर से मंदिर से लौटूंगा। मन्दिर से घर जाना तो जरूर उसकी सीमा करके जाना, मैं घर मे इतनी देर रहूँगा, उसके बाद मंदिर में आऊँगा, ये है त्याग धर्म। धर जाने की सीमा करो। उपवास की सीमा मत करो, रोटी खाने की करो, मैं इतने दिन भोजन करूँगा। पाप कार्य मे सीमा बांधकर जाना कि मैं इतने दिन के लिए जा रहा हूँ। जब जब तुमने धर्म को सीमित किया तो समझना तुम्हे सिर्फ मजदूरी मिलेगी। मजदूरी मिलना और मालिक बनकर वसीयत मिलने में कितना अंतर है। नौकर भी काम कर रहा है और बेटा भी काम कर रहा है। नौकर को वेतन मिलता है लेकिन बेटे को वसीयत मिलती है। तुमने भी माला फेरी लेकिन बीच मे मेरु याद आया, मजदूरी में डाल दिये जाओगे और एक ज्ञानी कहता है हे भगवन ये मन बड़ी मुश्किल से माना है, एक माला करने की छूट दी है, हे भगवन ये मेरु कभी आवे ही नही। मन कहेगा बहुत देर हो गयी, खबरदार अभी एक माला ही नही हुई। मेरु कभी आवे नही लेकिन मेरु तो आवेगा। तुम 108 गुरियो की माला को भी असीम कर दो। उस एक माला को फेरते समय आप अनंतानंत भवो तक जितनी मालाये फेरते, उतनी माला का फल एक माला में लग जायेगा। माला फेरते हुए मेरु आ जाये तो भाव आवे कि इतने जल्दी मेरु आ गया और मेरु आते ही आपकी हाय श्वास निकल जाये तो जाओ अनंतानंत मालाओं का पुण्य तुमने पा लिया। दान को असीम कर दो, कोई सीमा नही है दान की। एक कोड़ी देना, सीमा बांधकर मत देना। दान की सीमा मत बांधना कितना देना है। जितना है, देना है। जब तक तुम्हारे पास एक चावल का दाना भी है, तब तक भी मैं दान देता रहूँगा। एक चावल के चार टुकड़े करूँगा लेकिन दान दूँगा। जैसे ही तुमने दान की सीमा को असीम कर दिया तुम्हे अक्षयनिधि का पुण्य बन्ध हो गया। कैसे मिलती है ये अक्षय निधियां ये कल्पवृक्ष। ऐसे ही परिणाम चलते है हम दान की कोई सीमा नही करेगे। बिना दान दिये मुँह में एक दाना भी नही जाएगा। एक चावल का दाना है तो उसके चार टुकड़े करूँगा, एक टुकड़ा मैं खाऊंगा, एक टुकड़ा परिवार खायेगा, एक टुकड़ा किसी भूखे को रखेगे और एक टुकड़ा मेरे पूज्य भगवान और पूज्य गुरुदेव के लिए देगे। त्याग वो कहलाता है जो छोड़ दिया जाता है और दान वो कहलाता है जो किसी के उपयोग के लिए दे दिया जाता है। दान में स्वयं के लिए किसी दूसरे के काम आ जावे। त्याग में स्वयं के लिए काम नही और किसी दूसरे के भी काम नही आवेगा। धर्मसभा में प्रदीप जैन पीएसी,नीरज जैन जिनवाणी,हीरालाल बैनाड़ा, निर्मल मोठया,पन्नालाल बैनाड़ा राजेश बैनाड़ा विवेक बैनाड़ा,जगदीश प्रसाद जैन, सुनील जैन ठेकेदार,राकेश जैन पर्देवाले,राकेश सेठी,अशोक जैन, मीडिया प्रभारी शुभम जैन,राहुल जैन,विजय धुर्र,हुकुम जैन काका दिनेश गंगवाल,पंकज जैन, ललित जैन,यतीन्द्र जैन,शैलेन्द्र जैन,राजेश जैन,अंकेश जैन,सचिन जैन,समस्त आगरा सकल जैन समाज के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

रिपोर्ट: मीडिया प्रभारी शुभम जैन

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