मनोज नायक/भिण्ड। “इच्छा निरोध: तप” इच्छा का निरोध करना ही तप है। तप दो प्रकार के होते हैं। अंतरंग तप और वहिरंग तप। उपवास, व्रत, नियम आदि वहिरंग तप हैं और विनय या ध्यान आदि अंतरंग तप है। ऐसे तप वास्तविकता में निग्रंथ दिगम्बर साधुओं के होते है और इस संसार में किसी के पास सामर्थ शक्ति नहीं है कि वो दिगंबर साधुओं जैसा तप कर सके और इन सबसे भी बड़कर है अपनी इच्छाओं को रोकना, अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाना। इसलिए ‘दीक्षा ग्रहण करना भी एक विशेष तप है। उक्त विचार बाक्केशरी आचार्य श्री विनिश्चय सागर महाराज ने धूप दशमी के पावन दिवस पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्य श्री ने कहा कि दीक्षा अर्थात जिन्होंने अपनी इच्छाओं को दे दिया। अब कुछ भी इच्छा इन्द्रिय विषयों का नहीं है। वह है दीक्षा। दीक्षा से पहले वैरागियों की परीक्षा ली जाती है। इसलिए दीक्षा प्रदान करने से पूर्व मेंहदी, बिनोली, हल्दी आदि कार्यक्रम कराए जाते है। जिसको वैराग्य है वह किसी भी कार्य में उत्साह नहीं रखता, उदासीन भाव से करता है। आज तत्वार्थ सूत्र का वाचन हुआ। आचार्य श्री के पावन सान्निध्य श्रद्धा दीदी को तत्वार्थ सूत्र वाचन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तत्वार्थ सूत्र का अर्घ चढ़ाने का सौभाग्य हुक्की जैन, संतोष जैन परिवार को प्राप्त हुआ। मीडिया प्रभारी ऋषभ जैन अड़ोखर ने बताया कि पर्युषण पर्व के दिनों में आज सुगंध दशमी के पावन अवसर पर अहिंसा ग्रुप भिंड द्वारा आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी महाराज की 1008 दीपको के साथ भव्य महा आरती की गई। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।