गुंसी, निवाई। गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने प्रवचन सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधन देते हुए कहा कि समुद्र में कितनी भी नदियां मिल जाये फिर भी वह तृप्त नहीं होता, अग्नि को कितना भी ईंधन डाल दो फिर भी वह तृप्त नहीं होती। उसी प्रकार तृष्णा की खाई खूब भरी पर रिक्त रही वह रिक्त रही। लोक में जो भटकाता है वह लोभ। लोभ को पाप का बाप कहते है। क्योंकि किसी भी पाप की प्रवृत्ति लोभ से ही होती है। माताजी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को सन्त नहीं तो संतोषी जरूर बनना चाहिए। आज का व्यक्ति पेट नहीं पेटी भरने की सोच से ही दुख भोग रहा है। अपनी सोच से लोभ हटाकर संतोष को भरे। क्योंकि संतोष रूपी धन ही जीवन के सारे सुखों को देने वाला है। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी में चातुर्मास के अंतर्गत पर्वराज दस लक्षण पर्व के शुभ अवसर पर श्री दशलक्षण महामण्डल विधान का आयोजन चल रहा है। जिसकी चर्चा पूरे भारत देश में हो रही है। आज चौथे दिन उत्तम शौच धर्म की पूजन कराने का सौभाग्य सुरेशचंद भानजा सपरिवार को प्राप्त हुआ। इसी के साथ श्री शांतिनाथ विधान राजकुमार जैन फागी ने रचाकर शांतिप्रभु की विशेष आराधना सम्पन्न करायी। तत्पश्चात गुरु माँ के पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट एवं आहारचर्या कराकर स्वयं को धन्य किया। श्रावकों ने अनेक प्रकार के उपवास व्रत धारण किये। विज्ञातीर्थ क्षेत्र पर चल रहे विविध प्रकार के अनुष्ठान, आयोजन एवं आराधना का पुण्य लाभ यात्रीगण ले रहे हैं।