Saturday, November 23, 2024

जैन दर्शन में “उत्तम शौच धर्म” का अभिप्राय शारीरिक स्वच्छता से नहीं, अपितु आत्मा की निर्मलता से है: ब्रह्मचारिणी सरिता दीदी

वी के पाटोदी/सीकर। आत्म कल्याण व आत्म आराधना के महापर्व दसलक्षण पावन पर्व पर शहर के समस्त जैन मंदिरों में प्रातः बेला से श्री जी की पूजन, अभिषेक सहित अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम प्रतिदिन होते है। सर्वशान्ति की मंगलकामना के साथ जिनेन्द्र प्रभु की प्रातः सभी जैन मंदिरों में शांतिधारा की जाती है। शुक्रवार को अभिषेक व शांतिधारा पश्चात पूरे श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ दशलक्षण धर्म के चतुर्थ स्वरूप “उत्तम शौच धर्म” की विशेष आराधना की गई।प्रतिदिन दीवान जी की नसियां में ब्रह्चारिणी सरिता दीदी व बबिता दीदी द्वारा दस लक्षण पर्व पर विशेष प्रवचन किए जा रहे हैं। रात्रि में विविध जैन संगठन द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही है। बड़ा मंदिर कमेटी के अभिनव सेठी ने बताया कि दंग की नसियां मंदिर में प्रदीप कुमार मनोज कुमार बाकलीवाल परिवार द्वारा व बड़ा मंदिर में विदेह दोषी व महेश गंगवाल द्वारा प्रातः शांतिधारा की गई। नया मंदिर कमेटी ने बताया कि प्रातः प्रथम अभिषेक का सौभाग्य भागचंद निखिल कुमार अजमेरा परिवार को प्राप्त हुआ। देवीपुरा मंदिर कमेटी मंत्री पंकज दुधवा व सदस्य रामेश्वर पाटनी ने बताया कि सांयकाल महाआरती व प्रातः समस्त मांगलिक क्रियाओं का सौभाग्य पूरणमल राजकुमार अजीत कुमार जयपुरिया परिवार को मिला। विवेक पाटोदी ने जानकारी देते हुए बताया कि दस दिवसीय दसलक्षण महापर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी 19 सितंबर से शुरू होकर भाद्रपद शुक्ल अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर तक पूरे नियम और संयम के साथ मनाया जा रहा है। इन दस दिनों में जैन धर्मावलंबी धर्म के दस धर्मों का पालन पूरी धार्मिक प्रभावना के साथ कर रहे हैं। धर्म के इन दस दिनों में पहले दिन उत्तम क्षमा धर्म, दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म, तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म,चौथे दिन उत्तम शौच धर्म, पांचवें दिन उत्तम सत्य धर्म,छठवें दिन उत्तम संयम धर्म (सुगंध दशमी), सातवें दिन उत्तम तप धर्म, आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म, नौवें दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म, दसवें दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म (भाद्रपदशुक्ल, अनंत चतुर्दशी) मनाया जाएगा।

उत्तम शौच धर्म: ब्रह्मचारिणी सरिता दीदी ने बताया कि जैन दर्शन में “उत्तम शौच धर्म” का अभिप्राय शारीरिक स्वच्छता से नहीं, अपितु आत्मा की निर्मलता से है।उत्तम शौच धर्म का तात्पर्य लोभ का त्याग करना है। लोभ वास्तव में पाप का बाप है। लोभ में फंस कर ही मनुष्य पाप की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने बताया कि संतोष रूपी धन से ही कल्याण संभव है।

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