Saturday, September 21, 2024

निर्यापक मुनिपुगंव श्री सुधा सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में 4000 शिवरार्थी सीख रहे धर्मध्यान आदि धार्मिक क्रियाएं

दस लक्षण पर लगा 30वां श्रावक संस्कार शिविर

आगरा। दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के तीसरे दिन गुरूवार को जैन मंदिरों में उत्तम आर्जव धर्म की पूजा की गई । श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के अमृत सुधा सभागार हरीपर्वत में निर्यापक मुनिपुगंव श्री सुधा सागर जी महाराज ससंघ के मंगल सानिध्य में श्रावक संस्कार शिविर का आयोजन किया जा रहा है। शिविर के तीसरे दिन का शुभारंभ शिविरार्थी ने प्रातःकाल धर्मध्यान,श्रीजी अभिषेक एव शांतिधारा के साथ किया। शिविरार्थी ने मुनिश्री ससंघ के मंगल सानिध्य एवं ब्रह्मचारी प्रदीप भैया सुयश एवं ब्रह्मचारी विनोद भैया,ब्रह्मचारी महावीर भैया , दिनेश गंगवाल के निर्देशन में मंत्रोच्चारण के साथ उत्तम आर्जव धर्म की पूजन की मांगलिक क्रियाएं संपन्न की| धर्मसभा का शुभारंभ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ किया| धर्मसभा में शिविर पुण्यार्जक परिवार द्वारा मुनिश्री का पाद प्रक्षालन कर शास्त्र भेंट किए। इसके पूर्व सभी 4000 शिविरार्थियों को मुनिश्री ने ध्यान साधना करायी। सायं:काल शांतिसागर ग्रुप,ज्ञानसागर ग्रुप, विद्यासागर ग्रुप,सुधासागर ग्रुप, गम्भीरसागर ग्रुप के शिविरार्थियों के अतिरिक्त प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप जैन सुयश,सुकांत भैया,महावीर भैया ने धार्मिक बोध का पाठ पढ़ाया। मुनिश्री ने उत्तम आर्जव धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा खुद का जीवन जब हमारे ही काबू से बाहर हो जाता है तो व्यक्ति वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर संसार के उन रास्तो पर चला जाता है जिन रास्तो पर कोई मंजिल ही नही होती। मंजिल विहीन रास्ते होते है लेकिन वो मंजिल पर नही पहुँचाते है। वो ऐसे भटकाव में डाल देते है जिसमे लगता है कि हम बहुत कुछ चल रहे है लेकिन जब उपलब्धि देखते है तो ऐसा लगता है जैसे हम एक कदम भी नही चले। कभी जिंदगी को शांति से बैठकर देखना कि तुमने इतनी बड़ी जिंदगी में क्या पाया है,क्या ऐसा लग रहा है कि मैं जैसे जैसे बड़ा होते जा रहा है मुझे आनंद आ रहा है। कुछ पाने का रस नही,कुछ प्राप्त हो चुका है उसका रस। व्यक्ति जी रहा है भविष्य के लिए। जितना भी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो वो सब भविष्य के लिए कर रहे हो। और भविष्य की एक चिंता ऐसी है जो वर्तमान के आनंद को मिटा देती है। हम जी नही रहे है मरने से डर रहे है। हम यात्रा करते है, यात्रा का आनंद कम आता है,कंही एक्सीडेंट न हो जाये। हम धन कमाते है, धन का आनंद कम आता है कंही चोरी न चला जाये। जितना धन कमाने का आनंद नही है उतना धन को सुरक्षित रखने का टेंशन है।अमीर आदमी को यदि लूटने का भय है तो वह संसार का सबसे बड़ा दरिद्र आदमी है। कंही मेरे बेज्जती न हो जाये समझ लेना आपकी कोई इज्जत नही है दुनिया मे क्योंकि आपके मन मे बना है कोई मेरी बेज्जती न कर दे मैं इज्जत वाला आदमी हूँ। इसको इज्जत नही बोलते है| इज्जत वाला वो आदमी है जिसको अनुभव में आ जाये मैं इज्जत वाला आदमी हूँ क्योंकि संसार मे आज तक कोई पैदा नही हुआ जो मेरी बेज्जती कर दे। जीते जी मरने का डर लग रहा है तो हम चलते फिरते मुर्दा है क्योंकि हमारे मन मे मरने का डर है, जीने का आनंद नही।कोई तुम्हारी जिंदगी में आवे और तुम्हे दुख देकर गया वो तुम्हारा दुश्मन है या कि मीत है,दुश्मन है। ऐसे ही तुम्हारे घर मे कोई मर गया और हम दुखी हो गए तो वो तुम्हारा मीत नही था वो बैरी आया और दुख देके चला गया। माँ-बाप भी बैरी हो सकते है जन्म दिया और चले गए,जा बेटा खाता रहे दूसरे की जूठन। बदला राग से ही नही द्वेष भी लिया जा सकता है। द्वेष से खतरनाक होता है राग का बदला। बेटा है, जवान हुआ और मर गया तुम्हे निपूता करके चला गया| पूर्व भव का बैरी था दुख देकर चला गया। आर्तध्यान बैरी से ही होता है। जो कुछ आपके पास है वो सब आपने चाहा था या उसने आपको चाहा था। संसार की दृष्टि बता रहा हूँ कि जिस जिसको तुमने चाहा है वो धोखा देगा ही देगा और जिस जिस ने तुम्हे चाहा है वो धोखा नही देगा। जब जब तुम दुनिया के पीछे दौड़ोगे, धोखा खाओगे। जैनदर्शन सबसे पहले यही बात कहता है इस दुनिया मे तुम किसी को आकर्षित मत करना,दुनिया मे किसी को मत चाहना, दुनिया से कभी इज्जत की कल्पना मत करना। किसी व्यक्ति से तुम इज्जत चाहते हो बहुत धोखा खाओगे,वही व्यक्ति तुम्हारी बेज्जती करेगा। जो व्यक्ति कहते है हमे कुछ नही चाहिए उनके सामने तीन लोक की हर वस्तु उनके चरणों की घुल बनने के लिए लालायित रहती है। जिस जिस व्यक्ति ने शांति चाही, वो जिंदगी में कभी शांति नही पा पाया। जिस जिस व्यक्ति ने ये भाव किया कि मैं बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता हूँ, कभी बड़ा नही बन पायगा। मोक्ष चाहने को कभी मोक्ष नही मिलता। जो गुटखा नही खाते है, जो जो नशा नही करते है, जो जो रात्रि में नही खाते है समझ लेना उन्हें जैनकुल पुरस्कार में मिला क्योंकि पुरस्कार में मिली हुई वस्तु पाप नही कराती है। मांगी हुई वस्तु नियम से पाप कराएगी और बिना मांगी हुई वस्तु पाप कराती है। पाँच लोग है जो मन्दिर नही आएंगे, अभिषेक नही करेगे फिर भी वो मायाचारी नहीं करेंगे वो सम्यकदृष्टि कहलायेंगे-तिर्यंच स्त्री,कोड़ी-कुष्ठी जिसने ऐसे कुल में जन्म में लिया है जो मन्दिर नही जा सकते या कोई ऐसा पाप किया है जिसके कारण समाज से बहिष्कृत है। आज सारे जैनियों को नियम लेना है कि मैं धर्मक्षेत्र में अपनी शक्ति नही छिपाऊँगा क्योंकि मैं उस कुल में जन्मा हूँ जिसमे भगवान का अभिषेक कर सकता हूँ, जहाँ अभक्ष्य, रात्रिभोजन नही खाया जाता। पाप होने पर गुरु से कभी छिपाना नही और ऐसा कोई पाप नही करना जो गुरु को नही बता सको। ये है अनन्तानुबन्धी मायाचारी। जिस पाप को करते समय लगे कि मैं अपने माँ-बाप को नही बता पाऊँगा वो सबसे बड़ा महापाप है। अपने खून से अपने दूध से कभी मायाचारी मत करना। शाम को सभी शिविरार्थी ने संगीतमय मुनिराज की मंगल आरती की गई| मीडिया प्रभारी शुभम जैन के मुताबिक गुरुवार को श्रावक संस्कार शिविर के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म की पूजा की जाएगी| धर्मसभा का संचालन मनोज जैन बाकलीवाल ने किया| धर्मसभा में प्रदीप जैन पीएसी,नीरज जैन जिनवाणी,हीरालाल बैनाड़ा,निर्मल मोठया,पन्नालाल बैनाड़ा,राजेश बैनाड़ा विभू बैनाड़ा,राकेश सेठी, मीडिया प्रभारी शुभम जैन,राहुल जैन,विजय धुर्र,हुकुम जैन काका, दिनेश गंगवाल, पंकज जैन,यतीन्द्र जैन,शैलेन्द्र जैन, समस्त आगरा सकल जैन समाज के लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे|

रिपोर्ट : मीडिया प्रभारी शुभम जैन

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