पवित्रता सर्वोपरि गुणों में से एक गुण है
दशलक्षण धर्म के प्रथम तीन धर्म उत्तम क्षमा, मार्दव एवं आर्जव धर्म भाव प्रधान है । आज चतुर्थ दिवस पर हम उत्तम शौच धर्म मना रहे है । उत्तम शौच सहित आगे के पांच धर्म उपाव यानी मोक्ष मार्ग की सीढ़िया है ।
शौच धर्म का शाब्दिक अर्थ है शुद्धता एवं उत्तम शौच धर्म अर्थात आत्मा की पवित्रता । सम्यग दर्शन- आत्मा के श्रद्धान के साथ उत्तम शौच धर्म का नाम दिया जाता है। । उत्तम शौच ही सम्यक चारित्र है, अंतश्चेतना की क्रांति है।
शारीरिक शुद्धता/पवित्रता तो बहुत आसान है परंतु आत्मा की शुद्धता/पवित्रता के लिए लोभ कषाय को त्यागना पड़ता है । इसी लिए कहा है – लोभ पाप का बाप बखाना अर्थात् सभी पापों की जड़ लोभ है। लोभ का अभाव एवं संतोष का भाव शौच धर्म कहा जा सकता है। लोभ कषाय के अभाव होने को शौच धर्म कहते हैं । विषयों के प्रति आसक्ति, भोग की वस्तुओं के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकाव को लोभ कहते हैं । लोभ या लालच का संबंध केवल धनराशि से ही नही है, अपितु किसी भी वस्तु के प्रति अधिक आसक्ति लोभ है । सारे पापों की जड़ यह लालच ही है। लालची जीव किसी भी अवस्था में संतुष्ट नहीं होता वह तो सदैव ही असंतुष्ट रहता है, और असंतुष्ट जीव की लालसा, अदेय अपेक्षा कभी समाप्त नहीं हो सकती ।
सामान्यत: जो लालची होगा वह अपनी विषय पूर्ति के लिए समय आने पर अवांछित प्रक्रिया चोरी, मायाचारी, छल-कपट, हिंसा, परिग्रह, बैर-भाव भी करता ही रहेगा और इस तरह के कृत्य की आदत बनी रहेगी । यही कारण है कि लोभ से बचना परम आवश्यक है ।
सामान्यत: शरीर की शुचिता, शुद्धता को ही पवित्र मान लेते है । जैन धर्म में शरीर की शुद्धता के बजाय परिणामों की शुद्धता पर बल दिया गया है । अपने मनोभाव में मलीनता ना आने देने से शुचिता का मार्ग प्रशस्त होता है ।
आत्मा को पवित्र बनाने के लिए हमें तीनों योग मन, वचन और काय को लोभ से दूर रखना होगा। लोभ के भाव का त्याग करना होगा । आत्म गुणों का चिंतन और मनन ही शौच धर्म का लक्षण है ।राग द्वेष, मोह रहित रहना शौच धर्म है।
आहार विहार, आचार विचार, व्यवहार की शुद्धता, भोजन की शुद्धता, रात्रि भोजन त्यागना, अनछने जल का त्याग, सभी जीवों पर करुणा,दया, मैत्री भाव रखना आदि शौच धर्म के कुछ लक्षण हैं ।
गंगा निकलती है तब पवित्र होती है लेकिन बाहरी संसर्ग से अपवित्र हो जाती है । इसी प्रकार आत्मा पवित्र होती है लेकिन लोभ के वशीभूत होकर अपवित्र हो जाती है ।
कविवर ‘पंडित द्यानतराय जी’ ने लिखा है :
धरि हिरदै संतोष, करहु तपस्या देह सों।
शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में।।
जीव के ह्रदय अर्थात अंतर के परिणामों में संतोष होना चाहिए तथा देह से उसे सदैव तपस्या करनी
चाहिए। शौच धर्म का पालन करने वाला सदैव निर्दोष होता है,
इसलिये उसे सबसे बड़ा धर्म कहा गया है ।
पण्डित की ने आगे लिखा हैं –
प्रानी सदा शुचि शील-जप-तप, ज्ञान-ध्यान प्रभाव तें।
नित गंग जमुन समुद्र न्हाये, अशुचि-दोष स्वभाव तें।।
ऊपर अमल मल-भर्यो भीतर, कौन विधि घट शुचि कहे।
बहु देह मैली सुगुन-थैली, शौच-गुन साधु लहे।।
प्राणी अर्थात जीव शील,जप-तप, ज्ञान-ध्यान के भावों से ही शुचि अर्थात स्वच्छ होता है। नित्य गंगा-यमुना अथवा समुद्र के पूरे जल से भी यदि इस देह को स्वच्छ करने का प्रयास करेंगे तो भी यह स्वच्छ होने वाली नहीं है।यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे कोई घड़ा ऊपर से तो स्वच्छ हो तथा अंदर से उसमें मल भरा हुआ हो तो कौन उसे स्वच्छ कहेगा वैसे ही, यह देह भी ऊपर से तो सुंदर दिखाई देती है परंतु अंदर झांकने पर इसके समान अस्वच्छ वस्तु कोई नहीं है ।
उत्तम शौच लोभ परिहारी, संतोषी गुण रतन भंडारी ।
अर्थात् निर्दोष शुचिता से लोभ कषाय का हनन होता है और ज्ञानी जन इस मैली देह के राग को छोड़कर अनंत गुणों का पुलिंदा जो आत्मा तथा उत्तम शौच धर्म है, उसे धारण करते है ।
सरकार द्वारा भी स्वच्छ भारत अभियान चलाया गया है । देश में स्वच्छता के प्रति जागृति आयी है, यह बाहरी स्वच्छता सबको अच्छी लगती है । शारीरिक स्वच्छता से आप कुछ सीमा तक बीमारी से छुटकारा प्राप्त कर सकते है । लेकिन इससे आगे बढ़कर आंतरिक स्वच्छता, शुद्धता के क्रम में यदि मन शुद्ध हो गया तो हम परम आनंद की प्राप्ति कर सकते है । शारीरिक और मानसिक बीमारियां अपने मन से सोचने की गुणवत्ता पर निर्भर करती है । चिकित्सक मानने लगे है कि सभी तरह की दीर्घकालीन (chronic) बीमारियां हमारी मानसिक विचारों से अत्यधिक प्रभावित होती है ।
विज्ञान ने या चिकित्सकों ने नया कुछ नहीं बनाया है l धर्म ग्रंथो में दिए गए उद्धरणों का दोहन किया गया है । हमारी प्राचीन समृद्ध संस्कृति को आत्मसात किया है एवम् नये नए आविष्कारों को जन्म दिया है ।
क्या हम सभी इस पर्व के अवसर पर सीमित रूप में ही सही, आनंद प्राप्ति के लिए उत्तम पवित्रता का मार्ग अपना सकते है ?
उत्तम शौच परमाणु शक्ति से भी अधिक शक्तिशाली है ।
संकलन
भागचंद जैन मित्रपुरा
अध्यक्ष, अखिल भारतीय जैन बैंकर्स फोरम, जयपुर।