भागलपुर। दिगंबर जैन मंदिर, भागलपुर में विराजमान श्रमण मुनि श्री विशल्य सागर जी महाराज ने दस लक्षण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म की व्याख्या करते हुए कहते है, मार्दव अर्थात मान (घमंड) तथा दीनता-हीनता का अभाव। वह मार्दव धर्म आत्मा के ज्ञान श्रद्धान सहित होता है, उसको ‘उत्तम मार्दव धर्म’ कहते हैं। परम पूज्य मुनि श्री ने कहा कि मार्दव यानि मन की मृदुता, कोमलता, नम्रता, मधुरता। उन्होंने कहा कि मान एक दुर्गुण हैं, जिसको महाविष की उपमा दी है जिसका सेवन करने से मानवता की हत्या हो जाती हैं। इंसानियत मर जाती हैं।मान ऐसी कषाय हैं जो अपने को अपनो से दूर कर देती हैं। परम पूज्य मुनिराज कहते हैं “अहं करोति इति अहंकार”, अर्थात अहम का भाव ही अहंकार है। अहंकार जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन हैं।अहँकारी पुरुष मान कषाय के कारण दूसरे के प्रति झुकता नहीं।अहंकार समस्त विपदाओ का जड़ हैं।अहंकार विनाश का मूलाधार हैं।अहंकारी का कभी विकास नही होता। “I Am Something Special” यही अहंकार हैं।गुरुदेव अपनी प्रवचन में आगे कहते हैं रावण, कौरव और कंश का इतिहास देख लो उठा करके इन तिन्हो ने अभिमान किया जिसका परिणाम यह हुआ कि उन तिन्हों का वंश का विनाश हुआ।आखिर अहंकार से मिलता क्या हैं, शिवाय दुर्गति के। मुनिराज कहते हैं जब तक जीवन में दुर्गुणों का माइनस नहीं करोगे तब तक हमारे जीवन में वीतराग गुण का प्लस नहीं हो सकता। अंत में मुनिराज कहते हैं अभिमान की ताकत फरिश्तों को भी शैतान बना देती हैं और नम्रता साधारण को भी फरिश्ता बना देती हैं। वस्तुता अहंकारी अंधा भी होता हैं और बहरा भी। अतः अहंकार को छोड़ विनय को धारण करो, मधुरता लाओ, जीवन को मिठास से भरो और मानवता को गले लगाओ। आचार्यों ने कहा हैं विनय मोक्ष का द्वार हैं,जो विनय से रहित हैं उनका धर्म और तप व्यर्थ हैं।विनय जिनशाशन का मूल है।
प्रेषक:विशाल पाटनी, भागलपुर