Saturday, November 23, 2024

संवत्सरी पर रूप रजत विहार में उमड़ा आस्था व भक्ति का सैलाब

पहली बार हुए चातुर्मासिक पर्युषण में प्रवाहित तप, साधना व भक्ति की अविरल त्रिवेणी धारा

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में श्री अरिहन्त विकास समिति के तत्वावधान में पहली बार हो रहे चातुर्मास के सबसे बड़े आयोजन अष्ट दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सान्निध्य में तपस्या, साधना व भक्ति की ऐसी अविरल त्रिवेणी धारा प्रवाहित हुई जिसमें सरोबार होकर हर कोई स्वयं को धन्य महसूस कर रहा था। शहर व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक परिवार सहित संवत्सरी की आराधना के लिए पहुंचे थे। श्रावक-श्राविकाओं का ऐसा सैलाब उमड़ा कि मुख्य हॉल के अतिरिक्त जो पांडाल तैयार किया गया था वह भी पूरी तरह भर जाने से कई श्रावकों ने आसपास मकानों के बाहर बैठ संवत्सरी की जिनवाणी श्रवण का लाभ प्राप्त किया। तपस्या की होड़ ऐसी लगी कि संवत्सरी के दिन ही करीब एक दर्जन तपस्वियों ने अठाई या उससे बड़ी तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने पांच, तेला, बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन के भी प्रत्याख्यान लिए। पर्युषण पूर्व ही डेढ़ दर्जन से अधिक अठाई तप की आराधना हो चुकी थी। सामायिक साधना की ऐसी होड़ भी पहली बार देखी गई कि श्राविका ही नहीं कई श्रावकों ने भी मात्र पर्युषण के आठ दिन में 140-150 सामायिक तप की साधना कर ली यानि प्रतिदिन 15 से 18 घंटे सामायिक तप में व्यतीत किए। इसी तरह आठों दिन नवकार महामंत्र की अखण्ड आराधना के माध्यम से भी लाखों नवकार महामंत्र जाप का उच्चारण कर रूप रजत विहार में भक्ति की पॉजिटिव एनर्जी का संचार हो गया। संवत्सरी धर्म आराधना कार्यक्रम के दौरान साध्वी मण्डल से लेकर वरिष्ठ सुश्रावकों तक ने एक सुर में कहा परिवारों की संख्या की दृष्टि से छोटे संघ में पहले ही चातुर्मास में जिनशासन भक्ति का ऐसा अद्भुत नजारा परमात्मा की कृपा से प्रस्तुत हुआ है। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के साथ आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा., तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने विचारों व गीतों के माध्यम से चातुर्मासकाल मंें किसी भी शब्द या कृत्य से हुई असाधना व कठिनाई के लिए क्षमायाचना की। उन्होंने कहा कि संघ क्षेत्र व संख्या के हिसाब से भले छोटा हो लेकिन तपस्या, साधना व भक्ति का जो माहौल यहां देखने को मिला है वह हमेशा याद रहेगा। तपस्याओं ओर सामायिक साधना की ऐसी होड़ की उम्मीद तो उन्हें भी नहीं थी। श्रावक संघ की ओर से श्रीसंघ के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा, नवरतनमल बाफना आदि सुश्रावकों ने साध्वी मण्डल सहित सभी श्रावक-श्राविकाओं से किसी भी प्रकार की अविनय असाधना ओर व्यवस्था से जुड़ी कोई परेशानी हुई तो क्षमायाचना की। अध्यक्ष सुकलेचा ने कहा कि पिछला चातुर्मास पाली में सम्पन्न करने वाले साध्वी मण्डल का यहां आगमन हुआ तो मन में संकोच था कि पता नहीं संघ छोटा होने से व्यवस्था कैसी हो पाएगी लेकिन सबके सहयोग से एतिहासिक सफल चातुर्मास गतिमान है। समारोह में सुश्रावक राजेन्द्र लोढ़ा ने भी विचार व्यक्त किए। जैन कॉन्फ्रेंस राष्ट्रीय महिला शाखा की अध्यक्ष पुष्पा राजेन्द्र गोखरू भी मौजूद रही। संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा, मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया एवं पदाधिकारियों द्वारा किया गया। धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे सैकड़ो श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे। शाम को प्रतिक्रमण श्रवण करने एवं पौषध की साधना करने भी बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे। प्रतिक्रमण समाप्त होने के बाद मिच्छामी दुक्कड़म बोल आपस में भी क्षमायाचना की गई। बुधवार सुबह 9 बजे रूप रजत विहार में श्री अरिहन्त विकास समिति के तत्वावधान में सामूहिक क्षमायाचना का कार्यक्रम होगा।

वैर विरोध मिटाना है ओर सभी को गले लगाना है

प्रवचन में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा., दर्शनप्रभाजी म.सा., समीक्षाप्रभाजी म.सा. आदि ने क्षमा के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि संवत्सरी पर्व मना क्षमायाचना करना तभी सार्थक होगा जब हम अपने मित्रों से नहीं जिनसे वैर-विरोध है उनसे क्षमायाचना करेंगे। हम पापी से नहीं पाप से नफरत करनी है। जो हमारे विरोधी है उनसे पहले क्षमायाचना करनी है ताकि वैर अनुबंध समाप्त होकर सभी के प्रति मैत्री भाव कायम हो सके। साध्वी दीप्तिप्रभाजी एवं हिरलप्रभाजी ने क्षमा के महत्व व तपस्वियों की अनुमोदना में भजनों की प्रस्तुति दी।

पर्युषण के बाद भी जिनवाणी सुनना नहीं करे बंद

धर्मसभा में साध्वीवृन्द ने श्रावक-श्राविकाओं को पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद भी धर्म साधना से जुड़े रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि हमे अपना धर्म चातुर्मास या आठ दिन तक सीमित नहीं कर लेना चाहिए। पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद भी जब तक चातुर्मास चले तब तक धर्मस्थान पर जाकर संत-साध्वियों के मुखारबिंद से जिनवाणी सुनने का संकल्प अवश्य ले। उन्होंने कहा कि धर्म ही हमारे साथ जाएगा बाकी सब यही रहे जाएगा इसलिए पर्युषण का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि हमारे धर्म हो गया अब अगले पर्युषण तक कुछ नहीं करना है। धर्म की आराधना तो सतत चलती रहनी चाहिए तभी जीवन का कल्याण होगा।

तपस्वियों का श्रीसंघ ने किया स्वागत- सम्मान

अठाई या इससे अधिक तपस्या पूर्ण कर रहे तपस्वियों का धर्मसभा में श्री अरिहन्त विकास समिति की ओर से स्वागत-सम्मान किया गया। इन तपस्वियों में किशनगढ़ से साध्वीवृन्द के सानिध्य में आकर 11 उपवास की तपस्या पूर्ण कर रही युवा सुश्राविका नविशा कोठारी के साथ सुश्राविका पारसदेवी लोढ़ा, सिद्धिका भंडारी, श्वेता नाहर, रीता गोखरू, लक्ष्मी डांगी, दिव्यांशी गुगलिया, सुश्रावक ज्ञानचंद तातेड़, नवीन नाहर, युवा सुश्रावक हर्षद पितलिया भी शामिल थे। समारोह में एकासन तप का मासखमण मंगलवार को पूर्ण कर रहे सुश्रावक निलेश कांठेड़ का भी समिति की ओर से सम्मान किया गया। समिति द्वारा किशनगढ़ से पधारे दीपक कोठारी व फतेहगढ़ से पधारे महावीर बाफना का भी स्वागत किया गया। पर्युषण के दौरान उपवास की अठाई, एकासन व आयम्बिल की अठाई ओर 108 से लेकर 51 सामायिक तक करने वालों को डायमंड, गोल्डन व सिल्वर कूपन प्रदान किए गए थे। इसके तहत लाभार्थी परिवारों में डायमंड कूपन के प्रकाशचन्द्रजी, प्रदीपजी, विजय जी पारख परिवार, गोल्डन कूपन में विशाल जैन एवं परिवार (चरखी दादरी), सिल्वर कूपन में लक्ष्मणचन्द्रजी, प्रदीपजी, सुशीलजी तातेड़ परिवार शामिल रहा। उपवास की अठाई या इससे बड़ी तपस्या करने वालों को गजराजजी प्रेमजी भंडारी की तरफ से भी प्रभावना दी गई।

आठ दिन अखण्ड नवकार महामंत्र की साधना

रूप रजत विहार स्थानक में अष्ट दिवसीय पर्युषण के तहत अखण्ड नवकार महामंत्र जाप की आराधना अंतिम दिन मंगलवार को भी जारी रही। संवत्सरी महापर्व पर भी श्रावक-श्राविकाएं अपने तय समय पर नवकार महामंत्र की आराधना करने में जुटे रहे। नवकार महामंत्र की साधना के लिए श्री रूप रजित विहार में स्थापित गौतम कलश की बोली संवत्सरी आराधना कार्यक्रम में श्री नवरतनमल अनमोल बापना परिवार के नाम छूटी। ये कलश कार्तिक पूर्णिमा पर नवकार महामंत्र की साधना पूर्ण होने पर विधिपूर्वक बापना परिवार को सौंपा जाएगा।

श्रीसंघ ने किया सुकलेचा दपंति का सम्मान

धर्मसभा में श्री अरिहन्त विकास समिति के पदाधिकारियों ने प्रथम बार चातुर्मास आयोजन में अहम भूमिका निभा रहे समिति के अध्यक्ष श्री राजेन्द्रजी सुकलेचा एवं उनकी धर्म सहायिका सुनीताजी सुकलेचा का सम्मान किया गया। संघ पदाधिकारियों ने कहा कि श्री सुकलेचा की पहल, कड़ी मेहनत एवं अग्रणी भूमिका से ही यह प्रथम चातुर्मास एतिहासिक सफलता कायम कर रहा है। सुकलेचाजी ने सम्मान के लिए आभार जताते हुए कहा कि अकेले कोई कार्य नहीं हो सकता पूरी टीम व सभी के सहयोग से ही यह चातुर्मास सफलतापूर्वक गतिमान है।

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