Friday, November 22, 2024

जैन धर्मावलंबियों का ये पर्व क्यों न विश्व क्षमापना दिवस बन जाए?

मन की कटुता व आपसी वैर-विरोध के विसर्जन का अनोखा पर्व क्षमापना दिवस

(गणपत भंसाली)

लगभग 800 करोड़ की विशाल आबादी वाली दुनियाँ के कुल 195 देशों का समावेश है।इनमें से 54 देश अफ्रीका में, 48 एशिया में, 44 यूरोप में, 33 लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में, 14 ओशिनिया में और दो उत्तरी अमेरिका में स्थित हैं। विश्व में कुल 195 देश हैं, जिनमें से 193 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश हैं, जबकि 2 गैर-सदस्य ऑब्सर्वर देश हैं, जो कि वेटिकन और फिलिस्तीन के रूप में हैं। जिसमें तकरीबन 300 धर्म, मजहब आदि का समावेश है। जिसमें मुख्यतया हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई, इस्लाम, यहूदी, पेंगन, जेन (जापान के सेमुराई लोगों का धर्म) शियो, पारसी व नास्तिक आदि है। सभी धर्मों व मजहबों की अलग संस्कृति व अलग-अलग मान्यता तथा पर्व, त्योहार व फेस्टीवल है। इस विराट विश्व में अनेकों पर्व आमोद-प्रमोद से ओतप्रोत है। अनेक धर्मों, मजहबों में जहां भोग-उपभोग आधारित पर्व व त्योहार भी होते है तथा कुछ पर्वों में त्याग प्रवृत्तियां भी इन पर्वों का हिस्सा होती हैं। लेकिन जैन धर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाने वाला क्षमापना दिवस दुनियां का एक मात्र ऐसा विलक्षण व अनूठा त्योहार है जहां उस दिन प्राणी मात्र के प्रति क्षमायाचना प्रकट की जाती हैं।

त्याग प्रवृतियों से ओतप्रोत है जैन धर्म का पर्युषण व दशलक्षण पर्व

इस जगत में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म हैं जहां श्वेताम्बर व दिगम्बर परम्परा में पूरा पर्व खालिस त्याग वृति मय प्रारम्भ होता हैं व समापन भी त्याग प्रवृतियों के साथ ही होता है। प्रति वर्ष भादवा माह यानी अगस्त-सितम्बर अवधि में इस पर्व का आगाज होता हैं। श्वेताम्बर परम्परा में मूर्तिपूजक सम्प्रदाय अतार्थ मंदिरमार्गी तथा तेरापंथी व स्थानकवासी परम्परा में ज्ञान गच्छ, श्रमण संघ, साधुमार्गी संघ, समर्थ गच्छ, लिमड़ी सम्प्रदाय, अजरामर सम्प्रदाय, नानक पंथ आदि अनेकों पंथों द्वारा ये पर्युषण पर्व त्याग तपस्या अतार्थ तप-जप की प्रवृत्तियों के साथ मनाया जाता हैं। पर्युषण पर्व के नवह्निक अनुष्ठान के तहत जैन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना, उपाश्राय, स्थानको, आराधना भवनों, उपासना स्थलों आदि में आचार्यों, साधु-साध्वियों, श्रमण-श्रमणियों तथा विभिन्न जगहों पर उपासकों आदि के मुखारविंद से आठ दिवसीय विशेष प्रवचन आयोजित होते हैं। पर्युषण अवधि में प्रतिदिन सांयकालीन सामूहिक व व्यक्तिगत प्रतिक्रमण का दौर चलता है। इन्हीं दिनों तपस्वी तपस्या में लीन रहते हैं, एकासन, उपवास, बेला, तेला, पंचोला , अट्ठाइयाँ आठ दिन निराहार (महज पक्के पानी के द्वारा) मास खमण (27 दिन से 30-31 दिन तक निराहार रहना) , अनेक तपस्वी तो और भी दीर्घ तपस्याएं करते है जो कि दो दो माह व इससे ज्यादा के भी रिकॉर्ड बने हैं।अतीत में सूरत के ही तपस्वी रत्न स्व : श्री इन्द्रचन्द जी राठौड़ एक ही चातुर्मास अवधि में दो-दो मास खमण सम्पन्न कर चुके हैं। तपस्वियों के तप अनुमोदना स्वरूप रात्रिकालीन भक्ति संध्याओं का दौर चलता है, सम्पूर्ण पर्युषण व दसलक्षण पर्व की अवधि में जैन समुदाय में हर छोटा-बड़ा रात्रि सौगंध रखता है अतार्थ सूर्यास्त पश्चात किसी भी तरह का अन्न, फल फ्रूट आदि कुछ भी ग्रहण नही किया जाता, सिवाय पानी के सभी द्रव्यों की सौगंध रहती है। व दूसरे दिन सूर्योदय पश्चात ही कुछ ग्रहण किया जा सकता हैं। अनेक तपस्वी श्रावक घर, स्थानक तथा आराधना भवनों में चार प्रहरी, छ प्रहरी व अष्ट प्रहरी पौषध करते हैं, अनेक ऐसे तपस्वी ऐसे भी है जो इससे ज्यादा प्रहर के पौषध भी करते हैं जिसमें 64 प्रहरी तक पौषध का भी रिकॉर्ड भी बना है, गत वर्ष पर्युषण पर्व के दौरान तपस्वी श्रावक श्री रतनलाल पितलिया ने 88 प्रहर के पौषध का तप रिकॉर्ड बनाया था। यानी आठ दिवस बिना अन्न-जल के साधु वेश में तमाम संसारी वृत्तियों को त्यागते हुए यहां तक मोबाइल भी पास में नही रखा जाता ,सिर्फ धार्मिक-आध्यात्मिक पुस्तकों का वाचन करना, जाप, सामायिक, ध्यान में लीन रहना, प्रवचन श्रवण करना, आपस में धार्मिक व आध्यात्मिक विषयो पर चर्चा करना आदि दिनचर्या का हिस्सा रहता हैं। ये उल्लेखनीय है कि पौषध तपस्या साधु वृति का एक स्वरूप सा है जिसमें तपस्वी साधु वेश में व उसी वृति में लीन रहता हैं। अंतिम दिन संवत्सरी जो कि पर्युषण पर्व का प्राण तत्व सा स्वरूप है, इस दिन अधिकांश श्रावक-श्राविकाओं द्वारा उपवास आदि तपस्या की जाती है व रात्रि में सामूहिक या परिवार जनों के साथ प्रतिक्रमण कर एक दूसरे से खमत खामणा, क्षमा याचना या मिच्छामि दुक्कड़म किया जाता है व छोटे बड़ों के चरण छूकर क्षमायाचना करते है। श्वेताम्बर जैन धर्मावलंबियों के पर्युषण पर्व की सम्पन्नता के साथ ही दिगम्बर जैन समुदाय में दशलक्षण पर्व की शुरुआत हो जाती है और लगातार 10 दिनों तक धर्म, ध्यान, तप,जप व तीर्थंकरों की पूजा अर्चना का दौर चलता हैं। मुम्बई के मीरारोड के निकट घोड़बन्दर स्थित नन्दनवन में तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम अधिशास्ता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी चतुरमासार्थ बिराजमान है जहां पर्युषण पर्व में धर्म-अध्यात्म व जप-तप की सरिता बही। सूरत के सिटीलाइट स्थित तेरापंथ भवन में शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी की शिष्या साध्वी त्रिशला कुमारी जी आदि ठाणा-6 के सान्निध्य में तथा उधना स्थित तेरापंथ भवन में विराजित मुनि श्री उदित कुमार जी आदि ठाणा-4 व पर्वत पाटिया स्थित तेरापंथ भवन व भटार स्थित आशीर्वाद पैलेस में साध्वी वृन्दो के सान्निध्य में इस वर्ष पर्युषण काल मे सैकड़ों तेले व सैकड़ों ही अट्ठाइयाँ व अनेकों मास खमण सम्पन्न होंगे। इसी तरह खरतरगच्छ, अच्छलगच्छ, तपागच्छ, स्थानकवासी, ज्ञानगच्छ, श्रमण संघ आदि सम्प्रदायों में पर्युषण पर्व व चातुर्मास काल मे धर्म अध्यात्म व जप-तप की गंगा बही। जैसे ही श्वेताम्बर जैन संघो के पर्युषण पर्व सम्पन्न होते है तो ठीक दूसरी और दिगम्बर जैन संघों का दसलक्षण पर्व प्रारम्भ हो जाता है इस पर्व में भी धर्म अध्यात्म व जप तप की सरिता बहने लगती है।

क्षमापना दिवस के साथ ही पर्युषण पर्व की सम्पन्नता

पर्युषण पर्व का समापन क्षमापना दिवस के रूप में होता है। फोन, मोबाइल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तथा वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, ट्विटर आदि सोश्यल मीडिया माध्यमो से एक दूसरे से क्षमा याचना प्रकट की जाती है व क्षमा प्रदान करते हैं। क्षमापना के दिवस जैन मंदिरों, देहरासरों, स्थानको, तेरापंथ भवनों, आराधना स्थलों पर आचार्यों, साधु-साध्वियों, श्रमण-श्रमणियों के दर्शन वंदन कर सामूहिक क्षमायाचना भी की जाती हैं।

क्षमापना कार्ड का चलन था एक दशक पहले तक

एक दशक पूर्व तक क्षमापना कार्ड का चलन था। जैन धर्मावलम्बी थोक मात्रा में क्षमापना कार्ड स्टेशनरी दुकानों तथा देहरासरों, उपाश्रयों, स्थानक भवनों, तेरापंथ भवनों आदि से खरीदते थे तथा अनेक लोग अपनी व्यवसाहिक फर्मो, व्यक्तिगत नामो के साथ प्रिंट भी कराते थे। ये कार्ड पोस्ट व कुरियर के माध्यम से आदान-प्रदान होते थे। सूरत सहित देश भर के तेरापंथ भवनों में पर्युषण पर्व के आठो दिन व संवत्सरी पर्व पर प्रदर्शित बुक स्टॉल पर ये कार्ड उपलब्ध रहते आए हैं। लेकिन अब सोश्यल मीडिया के दौर में ये क्षमापना कार्ड तो अतीत के विषय बन कर रह गए हैं।

राजस्थान आदि प्रदेशों में घर-घर पहुंच कर करते है खमत खामणा

संवत्सरी पर्व के समापन के साथ ही जहां जैन देहरासरों, स्थानको, आराधना भवनों आदि में सामूहिक रूप से परस्पर खमत खामणा किए जाते है वहीं लोग उसके दूसरे दिन अपने रिश्तेदारों स्नेहीजनों के घरों पर पहुंच कर क्षमा याचना करते हैं, मुझे आज से 55-60 वर्ष पूर्व के दृश्य स्मृत है कि क्षमापना के दिन जैन धर्मावलम्बी सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर रिश्तेदारों के घर पर पहुंच कर बड़े ही आत्मीय भाव से खमत खामणा करते थे। छोटे बड़ो के आगे झुक कर चरण स्पर्श कर खमत खामणा करते थे। हकीकत में वे दृश्य बड़े निराले होते थे व मन में पनपे वैर विरोध को वहीं समाप्त कर देते थे।

मशहूर कवि बाल कवि वैरागी हर वर्ष अपने मित्रों, स्नेहीजनों को भेजते थे क्षमापना के स्वरचित छंद

देश के ख्यातनाम कवि व पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री बालकवि वैरागी अपने जीते जी हर वर्ष पर्युषण पर्व पर अपने मित्रों स्नेहीजनों को क्षमापना के स्वरचित छंद अन्तर्देशीय पत्र पर लिपिबद्ध कर प्रेषित करते रहते थे उन्होंने ये सिलसिला 1988 के आस-पास प्रारम्भ किया था वर्ष 2013 तक के 25 वर्षो तक उन्होंने ये सिलसिला बनाए रखा। विशेष यह भी हैं कि उनके द्वारा रचित अनेक छंद इतने प्रचलित हो गए कि कार्ड निर्माता उनके नाम का उल्लेख किए बिना कार्ड प्रिंट कर बाजार में बेचते और वे छंद अधिकांश जैन धर्मावलंबियों को मुखजबानी स्मृत भी हैं। ये मेरा सौभाग्य था कि श्री बाल कवि वैरागी क्षमापना के अनेकों छंद मुझे भी अन्तरर्देशिय पत्रों के माध्यम से प्रेषित करते रहे जो कि आज भी मैंने यूं के यूं संजो के रखे हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तक करते हर वर्ष मिच्छामि दुक्कड़म

देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर्युषण पर्व की सम्पन्नता के पश्चात क्षमापना दिवस पर हर वर्ष मिच्छामि दुक्कड़म प्रकट करते आ रहे है, ये सिलसिला तब से बना हुआ है जब से वे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पदासीन थे। अनेक सोश्यल मीडिया माध्यमो से ये वीडियो हर वर्ष क्षमापना दिवस से पहले वायरल होते रहते हैं। आज ही नई संसद में उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों मंत्रियों सहयोगियों आदि को मिच्छामी दुक्कड़म’ किया।पीएम मोदी ने नए संसद भवन के अपने पहले संबोधन में किया मिच्छामि दुकड़म का जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में समापन भाषण देने के बाद नई संसद भवन की कार्यवाही को भी संबोधित किया है। इस दौरान पीएम मोदी ने सभी सांसदों और देशवासियों से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहा है।

‘मिच्छामी दुक्कड़म’ का मतलब क्या है?
मिच्छामी दुक्कड़म प्राकृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका जैन धर्म में बहुत ही विशेष और पवित्र महत्त्व है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है- मिच्छामी और दुक्कड़म। इसमें मिच्छामी का अर्थ होता है, क्षमा मांगना; और दुक्कड़म का अर्थ होता है जाने-अनजाने में हुई कोई भी गलती या भूल या बुरे कर्मों के लिए। यानी ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ का अर्थ है, जाने-अनजाने हुए गलत कर्मों के लिए क्षमा याचना करना।

मंगलवार को ही है संवत्सरी महापर्व
इस साल जैन धर्म के श्वेताबंरों के 11 सितंबर से ही पर्युषण पर्व मनाया जा रहा था। यह पर्व 8 दिवसीय होता है। इसकी समाप्ति के बाद आखिरी दिन संवत्सरी महापर्व मनाने की परंपरा रही है। इस हिसाब से 19 सितंबर यानी मंगलवार को ही संवत्सरी महापर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व का सार ये है कि ‘मेरा किसी के साथ कोई बैर नहीं है और सभी से मेरी दोस्ती या मैत्री’ है।

सारे गिले-शिकवे दूर करने का होता है अवसर
मतलब धार्मिक भावना ये है कि संवत्सरी महापर्व के समापन के अवसर पर ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहने से सारे गिले-शिकवे दूर होते हैं और जाने-अनजाने में हुई भूलों से भी बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है। इसे मन का मैल दूर करने में सहायता मिलती है और लोग मिलजुल कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।

पीएम मोदी ने नए संसद भवन में क्या कहा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन में जब ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ शब्द का इस्तेमाल किया, तब उन्होंने भी इसके माध्यम से सदस्यों से पुरानी कड़वाहटों को दूर करके आगे बढ़ने की ही अपील कर रहे थे। इस दौरान वे बोले की मेरी ओर से सभी को ‘मिच्छामी दुक्कड़म’।

अपने संबोधन के दौरान वे बोले, ‘आज ही संवत्सरी भी मनाई जाती है…. ये एक अद्भुत परंपरा है…. आज वह दिन है, जब हम ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहते हैं। इससे हमें किसी ऐसे व्यक्ति से क्षमा मांगने का मौका मिलता है, जिसे हमने जाने या अनजाने में ठेस पहुंचाई है……. मैं भी कहना चाहता हूं ‘मिच्छामी दुक्कड़म’…….संसद के सभी सदस्यों और देश के लोगों को……’

इस तरह से पीएम मोदी ने बहुत ही सही मौके पर एक उचित परंपरा का निर्वाह करते हुए देश की संसदीय व्यवस्था के लिए नई पहल की है

एन डी टी वी के रविशकुमार तक मुरीद क्षमापना दिवस के

एन डी टी वी के पूर्व एंकर श्री रवीश कुमार तक जैन धर्मावलंबियों के क्षमापना पर्व के मुरीद है, उनका एक वीडियो सोश्यल मीडिया पर वायरल हुआ है जिसमें वे जैन समुदाय के क्षमापना दिवस की प्रशंसा करते नजर आते हैं। वे कहते हैं कि दुनिया में ऐसा उदाहरण अन्यत्र नजर नही आता।

अनेक धर्मावलम्बी करते हैं अपने जैन मित्रों आदि से क्षमापना

जब से सोश्यल मीडिया का वर्चस्व बढ़ा है तब से गैर जैन भी अपने जैन मित्रों व स्नेहीजनों को क्षमापना के मैसेज प्रेषित करते व मोबाईल आदि से भी मिच्छामि दुक्कड़म अथवा क्षमायाचना प्रकट करते हैं।

गुजरात के अखबारों में क्षमापना दिवस पर विज्ञापन तक दिए जाते हैं

पर्युषण पर्व की परिसम्पन्नता तथा संवत्सरी के प्रतिक्रमण पश्चात सामूहिक तथा व्यक्तिगत रूप से क्षमापना व मिच्छामी दुक्कड़म करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि मिच्छामी दुक्कड़म शब्द का उद्गम गुजरात की धरा से हुआ। गुजरात से प्रकाशित गुजरात समाचार, सन्देश, दिव्य भास्कर, गुजरात मित्र, कच्छ मित्र, फुलछाव तथा मुम्बई से प्रकाशित मुम्बई समाचार, जन्मभूमि आदि अखबारों में अनेक कॉरपरेट जगत के उद्यमी, व्यवसाही आदि अखबारों में मिच्छामी दुक्कड़म भरे संदेशों के विज्ञापन तक प्रकाशित कराते हैं।

क्यों न विश्व मैत्री दिवस के रूप में मनाया जाए

सयुंक्त राष्ट्रीय महासभा द्वारा घोषित दुनिया भर में अनेक अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाए जाते हैं जिसमें फादर डे, मदर डे, फ्रेंडशिप डे, वेलेंटाइन डे, यहां तक साइकिल डे, तथा विश्व प्रलय डे तक मनाए जाते है तो क्यों न सयुंक्त राष्ट्र संघ विश्व स्तर पर ‘अंतर्राष्ट्रीय क्षमापना दिवस’ मनाने की शुभ शुरुआत करें। आज सम्पूर्ण विश्व बारूद के ढेर पर बैठा है। सर्वत्र युद्ध के नगाड़े बजाए जा रहे हैं। 24 फरवरी 2022 से प्रारम्भ हुए रूस-यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध डेढ़ वर्ष बीत जाने के बावजूद कहीं थमने का नाम नहीं ले रहा हैं, व इस युद्ध के पश्चात सम्पूर्ण जगत दो खेमों में बंट कर रह गया हैं। चीन का ताइवान पर झूठा हक जमाने को लेकर भयंकर अंतर्द्वंद्व चल रहा हैं, न जाने कब ये चिंगारी आग का विक्राल रूप धारण कर लें। चीन व भारत के बीच भी तनातनी का माहौल है। आर्थिक संकट से झुंझते श्री लंका में वहां के नागरिकों ने वहां के राष्ट्रपति भवन में गत वर्ष डेरा डाल दिया था व हिंसा की वारदातें हुई थी तथा ईरान में भी कमोबेश कुछ ऐसा ही हुआ ईरान में तो वहां के अनेक नागरिक मारे भी गए हैं। पाकिस्तान में राजनैतिक उठापटक का खामियाजा वहां की जनता भोग रही है व आलू-प्याज जैसी सब्जियां 400 से 500 रु किलो के भाव मे तथा पेट्रोल-डीजल आदि वस्तुएं मुंह मांगे दामों में खरीदने हेतु मजबूर हो रही हैं। चीन से पनपे कोरोना वायरस ने विगत तीन वर्षों में पूरी दुनियां में तबाही मचा रखी है व सम्पूर्ण जगत को आर्थिक संकट में धकेल दिया हैं। अगर विश्व क्षमापना दिवस के मनाने का प्रावधान होता तो चीन के हुक्मरान आज पूरी दुनिया से क्षमा मांगते। चीन की विस्तारवादी नीति से भारत सहित दुनिया के अनेक देश दुःखी व हैरान हैं। पाकिस्तान गाहेबगाहे परमाणु युद्ध की गीदड़ भभकी देता रहता है। गत ही दिनों वहां के आतंकियों ने हमारे देश के वीर सैनिकों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। अफगानिस्तान में तालिबानियों के सत्ता में आ जाने के पश्चात वहां लोकतन्त्रीय ढांचा वैसे तो चरमरा ही गया है। गत वर्ष हमारे देश मे ही नोएडा के सेक्टर-93 ए स्थित सुपरटेक ट्विन टावर को ध्वस्त कर दिया गया, इसे गिराने में महज 9-10 सेकेंड लगे. और देखते ही देखते यह 40 मंजिल टॉवर जमींदोज हो गया तो आखिर गैरकानूनी ढंग से इस टॉवर को बनाने वाले बिल्डर व भ्रष्टाचार के जनक ऑफिसरों को सभी से क्षमा मांगनी चाहिए थी। कनाडा वहां बसे खालिस्तानियों को वहां की सरकार खुले आम प्रश्रय देती नजर आ रही है इस कारण मंगलवार को दोनो देशों के राजनायकों को देश छोड़ने का निर्णय लिया गया जो कि आपसी सम्बन्धों में दरार का जनक है। दुनिया भर में विश्व क्षमायाचना दिवस मनाया जाए तो क्षमा प्रकट करते हुए मन में पनपे वैर विरोध की गांठे खुलने की प्रबल संभावना बन सकती हैं। जैन धर्मावलंबियों में ऐसे अनेकों उदाहरण है कि क्षमापना के दिवस पर अनेकों परस्पर झगड़े समाप्त हो गए, अनेकों के मन में समाई कटुता खत्म हो गई। में ऐसा दावा नही करता कि इस त्योहार के मनाने से तमाम जैन धर्मावलंबियों के वैर-विरोध खत्म हो गए, लेकिन यह वास्तविकता है कि इस क्षमापना दिवस के कारण अलबत्ता आपसी झंझटों का निपटारा होता है। मन में मैत्री भाव पनपते हैं तो विश्व स्तर पर इस त्योहार को मनाने के प्रयास क्यों न किए जाए। अब जबकि भारत में कुशल व सक्षम नेतृत्व के चलते इस गौरवशाली देश की विश्व में साख व धाक दोनों बढ़ी है, अतः प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को विश्व पटल पर ये सुझाव रखना चाहिए व इसके क्रियान्वयन के पुरजोर प्रयास करने चाहिए। साथ मे देश की विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नेताओं, देश के बुद्धिजीवियों आदि को विश्व पटल तक यह सुझाव देना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व क्षमापना दिवस मनाया जा सके।

वैसे मनाया तो जाता है वैश्विक क्षमा दिवस, लेकिन व्यापक स्तर पर नहीं, आइए जानतें है इसका इतिहास।
हर साल 7 जुलाई के दिन वैश्विक क्षमा दिवस मनाया जाता है। यह लोगों की गलतियों को माफ करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने पुराने मतभेदों को भुलाकर नए सिरे से शुरुआत करते हैं।

क्या होता है विश्व क्षमापना दिवस?
वैश्विक क्षमा दिवस लोगों को अपने रिश्तों को ठीक करने का मौका देता है। यह एक ऐसा दिन है जब आप अपने सभी पुराने मौका संघर्षों और मतभेदों को एक तरफ रख सकते हैं। शिकायतों और पीड़ाओं से परे जाकर नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं। यह दिन हम सभी को दूसरा मौका देता है। यह रिश्तों के बीच आई कड़वाहट को मिटाने का अवसर देता है।

वैश्विक क्षमा दिवस का इतिहास
20वीं शताब्दी में क्षमा ने विज्ञान का ध्यान खींचा जब वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों और शिक्षकों ने मानव कल्याण पर इसके प्रभाव का अध्ययन करना शुरू किया. 1994 में, क्रिश्चियन एम्बेसी ऑफ क्राइस्ट एंबेसडर (CECA) द्वारा ब्रिटिश कोलंबिया में राष्ट्रीय क्षमा दिवस की स्थापना की गई। CECA ने विक्टोरिया शहर में इसे राष्ट्रीय क्षमा दिवस के रूप में घोषित करते हुए एक विशाल बैनर लटका दिया। इस दिन ने गति पकड़नी शुरू कर दी और बाद में इसका नाम बदलकर ‘वैश्विक क्षमा दिवस’ कर दिया गया। हर गुजरते साल के साथ, वैश्विक क्षमा दिवस (Global Forgiveness Day in Hindi) ने मीडिया का ध्यान खींचा और लोगों ने इसे दुनिया भर में क्षमा के संदेश को फैलाने के लिए मनाना शुरू कर दिया।

वैश्विक क्षमा दिवस का महत्व
क्षमा दिवस के पीछे का विचार क्षमा करने को बढ़ावा देना है। साथ ही, पिछले गलत कार्यों के लिए क्षमा मांगना है। यह क्षमा की उपचार शक्ति की याद दिलाता है और व्यक्तियों को द्वेष, नाराज़गी और क्रोध को दूर करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि क्षमा एक व्यक्तिगत और जटिल प्रक्रिया है। जबकि क्षमा दिवस क्षमा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक अनुस्मारक के रूप में काम कर सकता है, इस कार्य के लिए अक्सर समय, प्रतिबिंब और वास्तविक इरादे की आवश्यकता होती है।

जो लोग क्षमा करते हैं वे क्रोध करने वालों की तुलना में अधिक खुश और स्वस्थ रहते हैं।
किसी को क्षमा करना या क्षमा का मार्ग खोजना कभी-कभी कठिन और चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन कुछ भी असंभव नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे कई और विभिन्न दृष्टिकोण हैं जो क्षमा का मार्ग देखने में हमारी सहायता कर सकते हैं।
क्षमा करने से डिप्रेशन, क्रोध, स्ट्रेस के स्तर में कमी आती है।

बड़े ही अल्पसंख्या में है जैन धर्मावलम्बी

जैन धर्म का उद्गम भारत की धरा पर ही हुआ। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 130 करोड़ की कुल आबादी वाले हिंदुस्तान में जैन धर्मावलंबियों की संख्या महज 44 लाख के इर्दगिर्द दर्शाई गई है।

भगवान महावीर का दिव्य सन्देश है क्षमा लो व क्षमा दो

खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमन्तु में।
मित्तिमे सव्व भुएस् वैरं ममझ न केणई।
-अथार्त सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है।
भगवान महावीर के इस कथन में क्षमा का पूर्ण सारांश समाया हुआ हैं।

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