Saturday, September 21, 2024

हमारी जुबान संभल गई तो जिंदगी भी संभल जाएगी, मत लांधों शब्दों की लक्ष्मणरेखा: दर्शनप्रभाजी म.सा.

मन व विचारों से अहंकार खत्म होने पर वाणी में आएगी मिठास ओर जीवन बनेगा सुंदर: समीक्षाप्रभाजी म.सा.

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। हमारे जीवन में अच्छा-बुरा जो भी होता है उसमें मुख्य कारण हमारी वाणी होती है। सुंदर व प्रिय शब्दों से भरी वाणी सरस्वती का वरदान भी है तो अप्रिय व कठोर शब्दों का उपयोग क्लेश भी करा देते है। वाणी को मधुर बनाए ओर हमेशा प्यार से बोले। इस वाणी के कारण घर जगमगा भी सकते है तो जल भी सकते है। कभी किसी पर शब्दों के बाण मत चलाओ उसके परिणाम भोगने से केकयी, मंथरा, द्रोपदी से लेकर कोई आत्मा नहीं बच सकी है। शब्दों की लक्ष्मणरेखा को कभी नहीं लांधना चाहिए अन्यथा दुष्परिणाम तो भोगने ही पड़ते है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में सोमवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सान्निध्य में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के सातवें दिन ‘‘वाणी को मधुर कैसे बनाए’’ विषय पर प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट ध्यान योगी डॉ. शिवमुनिजी म.सा. की एवं पूज्य अमरेशमुनिजी म.सा. ‘निराला’ की जयंति पर गुणानुवाद किया गया। प्रवचन के शुरू में अंतगड़ सूत्र का वांचन आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने एवं दोपहर में कल्पसूत्र का वांचन आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. किया। पर्युषण के अंतिम दिवस मंगलवार को महापर्व संवत्सरी मैत्री दिवस के रूप में मनाते हुए सामूहिक क्षमायाचना विषय पर प्रवचन होंगे। धर्मसभा में दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि वाणी हमारे घर में शांति भी करा सकती है ओर अशांति का कारण भी बन जाती है। हमारी जुबान संभल गई तो जिंदगी भी संभल जाएगी। वाणी शस्त्र ओर शास्त्र दोनों का कार्य करती है। जीवन जीने की कला आ गई तो जीवन की बलाएं टल जाएगी। बिना सत्संग के जीवन व्यवहार में परिर्वतन मुश्किल है। तत्वचिंतिका साध्वी डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि इंसान की वाणी से ही उसके स्वभाव का पता चलता है। मन ओर विचार सुंदर होने पर वाणी भी मधुर होगी। हमारी वाणी में कभी अहंकार नहीं आना चाहिए। अहंकार ही इंसान को पतन के मार्ग पर धकेल देता है। जब हमारा शरीर भी अपना नहीं है तो अहंकार हम किस बात का करते है। उन्होंने कहा कि मन व विचारों से अहंकार खत्म होने पर वाणी में मिठास आएगी। इस वाणी के प्रभाव से ही हम किसी के दिल में जगह बना भी सकते है तो किसी के दिल से बाहर निकल भी सकते है। हमारी वाणी हमारे चरित्र का भी परिचय देती है। साध्वीश्री ने कहा कि व्यवहारिक जीवन में वाणी पर संयम रखना बहुत कठिन है पर वाणी अच्छी नहीं होने पर जो कार्य हो रहा होता है वह भी बिगड़ जाता है। तनावरहित जीना है तो मधुर वचन बोलने होंगे। इस वाणी के कारण ही तनाव व क्लेश की उत्पति होती है। एकान्त में विचारों पर ओर समूह में जुबान पर नियंत्रण रखना चाहिए। धर्मसभा में तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. एवं आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने भजनों की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में लक्की ड्रॉ के माध्यम से 11 भाग्यशाली श्रावक-श्राविकाओं को पुरस्कृत किया गया। पर्युषण के सातवें दिन प्रार्थना एवं नवकार मंत्र जाप में अजीतजी लोढ़ा परिवार एवं धर्मसभा में गौतमजी कुमठ परिवार एवं आंचलिया परिवार की ओर से प्रभावना का वितरण किया गया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा एवं पदाधिकारियों द्वारा किया गया। धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे सैकड़ो श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।

मत बनो आठ दिन के जैनी पर्युषण के बाद भी सुने जिनवाणी

धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा., साध्वी दर्शनप्रभाजी एवं साध्वी समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने श्रावक-श्राविकाओं को पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद भी धर्म साधना से जुड़े रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि हमे अपना धर्म चातुर्मास या आठ दिन तक सीमित नहीं कर लेना चाहिए। पर्युषण पर्व की समाप्ति के बाद भी जब तक चातुर्मास चले तब तक धर्मस्थान पर जाकर संत-साध्वियों के मुखारबिंद से जिनवाणी सुनने का संकल्प अवश्य ले। चातुर्मास समाप्ति के बाद भी प्रतिदिन घर पर ही कम से कम एक घंटे धर्मसाधना अवश्य करे। उन्होंने कहा कि धर्म ही हमारे साथ जाएगा बाकी सब यही रहे जाएगा इसलिए पर्युषण का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि हमारे धर्म हो गया अब अगले पर्युषण तक कुछ नहीं करना है। धर्म की आराधना तो सतत चलती रहनी चाहिए तभी जीवन का कल्याण होगा।

आचार्य शिवमुनिजी का साधनामय जीवन हमारे लिए प्रेरणादायी

श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनिजी म.सा. की 82 वीं जयंति श्रद्धा व भक्ति भाव से मनाई गई। इस अवसर पर सुबह प्रार्थना के बाद श्रावक-श्राविकाओं ने सूरत से लाइव आ रहे कार्यक्रम के माध्यम से ध्यान साधना का अभ्यास भी किया। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने आचार्य शिवमुनिजी म.सा. के जीवन को प्रेरणादायी एवं आदर्श बताते हुए कहा कि साधना को समर्पित ऐसे महान व्यक्तिव के गुणों को हम अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि आचार्य का दायित्व ग्रहण करने के बाद पिछले 22 वर्ष से ध्यान योगी डॉ. शिवमुनिजी ने संघ व समाज के कल्याण के लिए कई कार्य किए ओर लाखों लोगों को भक्ति व साधना के माध्यम से जिनशासन से जुड़ने की प्रेरणा प्रदान की। साध्वी डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने भी आचार्यश्री के प्रति भावाजंलि अर्पित की। जैन कॉन्फ्रेंस राष्ट्रीय महिला शाखा की अध्यक्ष पुष्पाजी गोखरू ने आचार्यश्री के प्रति भावना व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी निश्रा में जाकर असीम शांति एवं आनंद की अनुभूति हर श्रावक-श्राविका को होती है। आध्यात्मिक साधना को समर्पित ऐसे महान संत को पाकर श्रमण संघ गौरवशाली महसूस करता है। युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने आचार्य शिवमुनिजी म.सा. के प्रति मन के भाव व्यक्त करते हुए कहा कि गुरूदेव के गुणों को शब्दों से बयां करना आसान नहीं है। उनका पूरा जीवन ही हमारे लिए आदर्श एवं अनुकरणीय है।

अमरेशमुनिजी निराला को अर्पित की भावाजंलि

पूज्य संत अमरेशमुनिजी ‘निराला’ की जयंति पर भी गुणानुवाद किया गया। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि अमरेश मुनिजी निराला ने उनके पास जो भी आए उसे धर्म से जुड़ने की प्रेरणा दी ओर सदा जिनशासन की आराधना करते हुए अपने गुरू भगवंतों की सेवा के लिए समर्पित रहे। उनकी सादगी व सहजता श्रावकों को उनसे जोड़ देती थी। ऐसे संत का असमय हमारे बीच से चले जाना जिनशासन के लिए अपूरणीय क्षति रहा।

रूप रजत विहार में तपस्या का लग रहा ठाठ

रूप रजत विहार में पहले ही चातुर्मास के दौरान पर्युषण में जिनवाणी सुनने के लिए श्रावक-श्राविकाएं उमड़ रहे है। भीलवाड़ा शहर के आसपास के क्षेत्रों से भी श्रावक परिवार सहित धर्मलाभ लेने पहुंच रहे है। चातुर्मास में पर्युषण पर्व के दौरान जप, तप व साधना का भी ठाठ लगा हुआ है। किशनगढ़ से आई सुश्राविका नमिषा कोठारी ने सोमवार को 10 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने आठ, सात, छह, चार, बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन के भी प्रत्याख्यान लिए। पर्युषण में अखण्ड नवकार महामंत्र जाप सोमवार को भी जारी रहा।

अंतगड़ दशांग सूत्र एवं कल्प सूत्र का वाचन एवं विवेचना

पर्युषण के सातवें दिन सुबह 8.30 बजे से अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचना पूज्य आगममर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्री म.सा. के मुखारबिंद से हुई। उन्होंने गाथाओं में आ रहे विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि इस ग्रंथ के श्रवण से भी पुण्यार्जन होता है। पर्युषण अवधि में दोपहर 2 से 3 बजे तक कल्पसूत्र वांचन भी पूज्य आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद जारी रहा। इसमें कल्प सूत्र के विभिन्न प्रसंगों को सुनाने के साथ उनके महत्व व प्रभाव के बारे में चर्चा की।

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