जैन धर्म का पर्वराज दशलक्षण धर्म पर्व की आज 19/09/2023 को उत्तम क्षमा धर्म से शुरुआत एवं क्षमा वाणी पर्व मनाने के साथ समापन
जैनधर्म एक अनादि, अनंत, शाश्वत धर्म है । जैन धर्म की शुरुआत इस अवसर्पिणि काल के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के पूर्व से है ।
जैन धर्म के तीन मुख्य त्योहारों में 1) षोडश कारण भावना पर्व – भाद्रपद कृष्णा एकम से अश्विन कृष्णा एकम तक 31- 32 दिनों तक मनाया जाता है । षोडश कारण भावना का पालन करने से तीर्थंकर प्रकृति का आश्रव (बंधन) होता है, 2) अष्टांहिका पर्व – यह भक्ति का पर्व है, यह वर्ष में तीन बार मनाई जाता है एवं 3) दशलक्षण धर्म पर्व – यह भी वर्ष में तीन बार आता है, लेकिन भाद्रपद में आने वाले इस पर्व को बढ़े ही भक्तिभाव से मनाया जाता है । इस दौरान आत्मा के दस धर्मों की विशेष आराधना करते है । दस धर्मों का पालन करना साधकों, तपस्वियों के लिए अनिवार्य है एवं श्रावकगण भी आत्म कल्याण के दश धर्मों का पालन करने की चेष्टा करते है ।
दशलक्षण पर्व आत्मानुभूति का मार्ग प्रशस्त करता है, इसको पर्वराज भी कहा गया है । जैन धर्म में इस त्यौहार का महत्वपूर्ण स्थान है । यह पर्व जिनमंदिरो में विशेष पूजा एवं बड़े ही भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है । इस त्यौहार में जैन धर्मावलंबी सामान्यत: व्यापार एवं नौकरी से अवकाश पर रहते है ।
दिगंबर धर्म में 10 दिन तक चलने वाला यह पर्व इस वर्ष 19 सितंबर भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी से प्रारंभ होकर 28 सितंबर – अनंत चतुर्दशी तक जारी रहेगा । इसी क्रम में अश्विन कृष्णा एकम, 30 सितंबर को क्षमावाणी पर्व मनाया जायेगा ।
दशलक्षण धर्म पर्व जैसा की नाम से आभास होता है दस धर्मों की पूजा एवं पालना की जाती है । ये दस धर्म है – 1) उत्तम क्षमा, 2) उत्तम मार्दव, 3) उत्तम आर्जव, 4) उत्तम शौच, 5) उत्तम सत्य, 6) उत्तम संयम, 7) उत्तम तप, 8) उत्तम त्याग, 9) उत्तम आकिंचन एवं 10) उत्तम ब्रह्मचर्य का पालन कर आत्म शुद्धि की जाती है, आत्मानुशासन की और अग्रसर होते है। इन सभी दस धर्म के अंतर्गुण नाम से ही स्वत : स्पष्ट है । ये सभी दस धर्म एक दूसरे के पूरक है । किसी भी एक धर्म की पालना, साधना करने पर शेष सभी धर्म स्वत: आत्मसात हो जाते है एवं साधक के जीवन का अंग बन जाते है ।
इन दस दिनो के दौरान जैन धर्मावलंबी जिन अभिषेक, शांतिधारा, पूजा, पाठ, स्वाध्याय यथावत करते है । प्रति दिन नित्य नियम पूजा के साथ दसों दिन सभी दशलक्षण धर्मों की आराधना का विधान है किंतु महत्ता की दृष्टि से प्रत्येक दिन क्रमशः अलग अलग धर्म के गुणों का विशेष वर्णन सूक्ष्मतम रूप में करने के साथ आत्मसात किया जाता है ।
दशलक्षण पर्व के दौरान जैन धर्म के मानने वाले साधना के मार्ग पर चलने हेतु व्रत, उपवास रखते है एवं इस अवधि में पूरी तरह सात्विक भोजन किया जाता है । बहुत से भक्त दस दिनों तक अन्न- जल ग्रहण ही नहीं करते है ।श्रावकगण इस समय का सदुपयोग त्याग, तपस्या, आराधना और साधना का मार्ग अपना कर करते हैं । यह पर्व अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करने, आत्मशुद्धि करने एवं कर्मो का क्षय कर मोक्षमार्ग प्रशस्त करने के लिए मनाया जाता है ।
जैन धर्मावलंबी इस पर्व के दौरान स्वाध्याय में पूरा ध्यान लगाते है ।
पर्व की अवधि में दिया गया दान का भी अपना महत्व है, सभी जैन धर्मावलंबी कुछ न कुछ दान देने का अभिप्राय अवश्य रखते है ।
दशलक्षण पर्व में व्यक्ति को अपने द्वारा किए बुरे कर्मों की निर्जरा करने एवम बुराई से दूर होने के लिए अवसर मिलता है । ये पर्व जीवो और जीने दो की राह पर चलने की प्रेरणा देता है । इस पर्व के अंत में अपने द्वारा की गई गलतियों पर विचार कर क्षमा मांगी जाती है ।
दश लक्षण पर्व आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है इसलिए इस दौरान पंच अणुव्रत / महाव्रत यथा अहिंसा अर्थात् किसी को दुख, कष्ट ना पहुंचाना, सत्य के मार्ग पर चलना, चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, परिग्रह से दूर रहना, जैन धर्म के सिद्धांतों को रेखांकित करता है ।
जीवन को सर्वोत्तम तरीके से जीने की कला सिखाने वाले दश लक्षणों को व्यवहार में उतारने का पर्व दशलक्षण महापर्व है ।
दश लक्षण धर्म में प्रथम धर्म उत्तम क्षमा धर्म है । क्ष अर्थात् क्षरण मा अर्थात् मान का । क्षमा में अपने अहम का अहंकार का का त्याग आवश्यक होता है ।यह इसका मूल सिद्धांत है ।कितने भी द्वेष, क्लेश, लड़ाई, झगड़े आदि का कारण अहंकार ही है । क्षमा करना, क्षमा मांगना दोनो ही क्षमा के गुण है । क्षमा के भाव अपना कर हम सभी मानव जीवन को स्वर्ग से भी सांसारिक तौर पर सुंदर, सुखी, आनंद की अनुभूति वाला बना सकते है एवम उसी के द्वारा हम जीवन मरण से छुटकारा पाकर मोक्ष मार्ग की और प्रशस्त सकते है ।
क्षमा के ज्ञान हेतु क्रोध की चर्चा होना पूर्णत: मनोवैज्ञानिक है । क्रोध में व्यक्ति दूसरों के साथ स्वयं का भी बहुत नुकसान कर देता है । यह एक ऐसा जहर है जिसकी उत्पत्ति अज्ञानता से एवं अंत पश्चाताप से होता है । क्षमा भाव से हम परिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रव्यापी एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के झगड़े यहां तक की युद्ध भी समाप्त कर सकते है । हम अपनी जीवन यात्रा सुगम कर सकते है ।
क्षमा से शारीरिक रोग दूर होते है एवम मानसिक शांति मिलती है ।
उल्लेखनीय है कि क्षमा धर्म या किसी भी धर्म पर जैन समाज का या किसी का भी कोई भी अधिकार नहीं है, कोई भी इसे अपनाकर अपना जीवन सार्थक बना सकते है ।
हां, यह जरूर है की जैन धर्मावलंबी क्षमा धर्म को उत्सव, पूजा, कर्म निर्जरा के रूप में प्रति वर्ष ही नही हर पल मनाता है ।
आज के परिपेक्ष्य में, विध्वंसकारी नीतियों के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय क्षमा दिवस मनाने की आवश्यकता है ।विश्व शांति आपके अंत:स्थल पर अंकित होगी ।
इस तरह जैन धर्म के बताएं मार्ग पर चलकर विश्वशांति सुनिश्चित की जा सकती है ।
श्वेतांबर धर्मावलंबियों द्वारा इसे पर्युषण पर्व के रूप में 8 दिन तक, इस वर्ष 12 सितंबर से 19 सितंबर तक मनाया गया है ।
संकलन
भागचंद जैन