Saturday, September 21, 2024

आचार्य श्री शांति सागर जी भरत क्षेत्र के सूर्य है: आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

उदयपुर। सकल दिगंबर जैन समाज उदयपुर द्वारा प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के 68 वे अंतर्विलय समाधि वर्ष के उपलक्ष्य में दिनांक 16 एवं 17 को दो दिवसीय विनयांजलि के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। धर्म सभा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने मंगल देशना में बताया कि भारत में जितने भी साधु हैं वह आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की देन है। उन्हें चारित्र सूर्य के रूप में स्मरण किया जाता है। जिस प्रकार जंबूदीप में दो सूर्य है, उसी प्रकार भरत क्षेत्र में प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान और प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज सूर्य है। भगवान श्री आदिनाथ ने धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया वहीं आचार्य श्री शांति सागर जी ने मुनि चारित्र धर्म का प्रवर्तन किया। पूर्व में दक्षिण भारत में जो साधु थे उनके चरित्र में निर्मलता नही थी ।जिस प्रकार सूर्य पूर्व दिशा में उदित होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है वैसे आचार्य शांति सागर जी दक्षिण भारत में उदित हुए। आपने चरित्र के प्रवर्तन के लिए दक्षिण से लेकर उत्तर संपूर्ण भारत में मंगल विहार कर अपने प्रवचन उपदेश के माध्यम से प्रचार प्रसार किया। भारत में जैन साधुओं के दर्शन आचार्य शांति सागर जी की देन है क्योंकि सभी को यह सौभाग्य मिल रहा है नहीं तो साधुओं के दर्शन दुर्लभ हो जाते। आचार्य शांति सागर जी ने दुर्लभता को सुलभता प्रदान की। एक उदाहरण में आचार्य श्री ने मंगल देशना में बताया कि उद्योगपति उद्यम व्यापार के माध्यम से भौतिक आर्थिक विकास करते हैं आचार्य शांति सागर जी भी आध्यात्मिक उद्योगपति रहे उन्होंने चारित्र के जितने भी अंग हैं उनका जीवन में परिपालन कर अपने जीवन को प्रयोगशाला बनाया उन्होंने अनेक सिंह के, सर्प के, चींटी के, मकोड़े के, उपसर्ग को क्षमता भाव से सहन किया। जिनवाणी को तांबे पर अंकित कराया। जिन मंदिर जैन धर्म की संस्कृति की रक्षा के लिए 1105 दिन अन्न आहार नही लिया। आपने 40 वर्ष के साधु जीवन में 9938 उपवास किए। उदयपुर का सौभाग्य है कि सन 1934 में आचार्य श्री का चातुर्मास आयड उदयपुर में हुआ आचार्य शांति सागर जी को निर्दोष चर्या के कारण सन 1924 में समडोली में आचार्य पद दिया गया। सन 2024 में आचार्य पद प्रतिष्ठापना को 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। उदयपुर से शताब्दी आचार्य पदारोहण का शुभारंभ हो चुका है। भारतवर्ष में नहीं पूरे विश्व में आचार्य शांति सागर जी का शताब्दी वर्ष मनाया जाना चाहिए। अपने दिगंबर जैन महासभा के अध्यक्ष गजराज गंगवाल एवं महामंत्री प्रकाश ज बड़जात्या चेन्नई को प्रेरणा दी कि महासभा विस्तृत कार्य योजना बनाकर आचार्य श्री शांति सागर जी का शताब्दी महोत्सव बनाने के लिए संकल्पित हो।
आचार्य श्री के मंगल प्रवचन के पूर्व प्रात 7:00 बजे नगर के प्रमुख मार्गो में आचार्य शांति सागर जी के जीवन ,उपसर्ग, दीक्षा 41 वर्ष के संयम जीवन को दर्शाने वाली विभिन्न झांकियां नगर के समाज के विभिन्न सामाजिक धार्मिक मंडलों द्वारा बनाई गई। चारित्र चक्रवर्ती शोभा यात्रा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी भी संघ सहित शामिल हुए। शोभा यात्रा का समापन हूमड भवन में हुआ। जहां संघ के मंचासीन होने के बाद आचार्य शांति सागर जी महाराज सहित पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन का सौभाग्य आचार्य श्री के दीक्षित साधुओ के गृहस्थ अवस्था के परिजनों को प्राप्त हुआ। पंडित हँसमुख जैन, धर्मचंद गुरुजी, डॉक्टर महेश, राजेश पंचोलिया, देवेंद्र बोहरा, राजकुमार अखावत आदि परिवारों ने आचार्य शांति सागर जी के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्वलन किया तथा पूर्वाचार्य को अर्ध समर्पित किया। आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन शास्त्र भेंट और अर्घ समर्पित करने का सौभाग्य सकल जैन समाज के अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत एवं सुरेश पद्मावत को प्राप्त हुआ आचार्य शांति सागर जी के जीवन पर उपस्थित विद्वानों पंडित हँसमुख शास्त्री पंडित धर्मचंद शास्त्री गुरु शांतिलाल वेलावत, सुरेश पद्मावत गजराज गंगवाल, प्रकाश बड़जात्या चेन्नई तथा अन्य वक्ताओं ने आचार्य श्री के जीवन के बारे में जानकारी दी। जैन गजट का तथा आचार्य श्री शांति सागर जी पर होने वाली आगामी प्रतियोगिता पोस्टर का विमोचन अतिथियों ने किया। कार्यक्रम का संचालन प्रकाश सिंघवी, राजेश देवड़ा ने किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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