आधुनिक बनने की होड़ में आध्यात्मिक दृष्टि से पिछड़ते जा रहे: समीक्षाप्रभाजी म.सा.
भीलवाड़ा। सूर्योदय के बजाय सूर्यास्त को महत्वपूर्ण मानने वाली पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में होने से हम आध्यात्मिकता को भूल आधुनिक बनने की होड़ में उलझे हुए है। हमारी जैन संस्कृति में तो सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक पानी भी नहीं पीया जाता है। सूर्योदय को हमारे यहां शुभ माना जाता है ओर हर शुभ कार्य सूर्य के साक्षी में करने का प्रयास रहता है। हम आध्यात्मिक बनना है ओर आधुनिकता के नाम पर अंधानुकरण नहीं करना है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में शनिवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने पर्वाधिराज पर्युषण के पांचवें दिन ‘‘आधुनिक नहीं आध्यात्मिक बने’’ विषय पर प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। प्रवचन के शुरू में अंतगड़ सूत्र का वांचन आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने एवं दोपहर में कल्पसूत्र का वांचन आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. किया। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि अच्छा दिखना आसान है लेकिन अच्छा बनना कठिन है। जो अच्छा दिखना चाहता है वह आधुनिक ओर जो अच्छा बनना चाहता है वह आध्यात्मिक होता है। बाहर देखने वाला आधुनिक ओर भीतर देखने वाला आध्यात्मिक होता है। आधुनिक जीवन जीने वाला तनाव व अशांति से घिरा रहता है जबकि आध्यात्मिक जीवन जीने वाला तनावरहित सुखी जीवन जीता है। उन्होंने बिना सोचे-समझे नहीं बोलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि बिना जाने बोलने से झगड़े होते है ओर परिवार टूटते है। साधु-साध्वी आपको आध्यात्मिक जीवन की राह दिखा सकते है लेकिन चलना तो आपको पड़ेगा। हम अच्छा दिखने की नहीं अच्छा बनने की जरूरत है। अपनी प्रतिज्ञा ओर दिया हुआ वचन कभी नहीं भूलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि साधर्मी की सेवा अति महत्वपूर्ण एवं अति उत्तम है। प्रवचन में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि नींद से शरीर को ओर ध्यान से आत्मा को आराम मिलता है। हम आधुनिक बनने की होड़ में तो बहुत आगे निकल गए लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से पिछड़ते जा रहे है। आध्यात्मिक दृष्टि से जो धनवान बन जाएगा वह किसी भी जन्म में दुःख नहीं पाएगा। तृप्ति व संतोष आधुनिकता में नहीं आध्यात्मिकता में ही मिलेगा। बिना संतोष पाए व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि धर्मपत्नी वहीं होती है जो पति को धर्म व अध्यात्म के पथ से जोड़ दे। अध्यात्म से जुड़ने वाले का मनोबल मजबूत होता है ओर वह मानसिक तनाव से दूर होता है। साध्वीश्री ने कहा कि आधुनिकता के नाम पर फैशन में इतना भी नहीं डूबे कि अपना धर्म व संस्कृति ही भूल जाए। बच्चों को केवल मांगना व लेना ही नहीं देना व छोड़ना भी सिखाए इसके लिए उन्हें अपनी संस्कृति व संस्कारों से जोड़ना होगा। हम बच्चों की हर जायज-नाजायज मांग पूरी कर उनके दुश्मन नहीं बने बल्कि उनकी उनको संस्कारित व आदर्श नागरिक रूप में तैयार करने वाले पालनहार बने। धर्मसभा में आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने ‘जिनवाणी सत्य सुनावे, स्वीकारे जो तिर जावे’ गीत की प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि जो स्वयं को पहचानता है वह बाहर को भी जानता है। हम दूसरों को सुधारने की बजाय स्वयं सुधरने की जरूरत है। हम दूसरों को ठगने की सोच रखेंगे तो स्वयं भी ठगे जाएंगे। तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण नहीं करने की प्रेरणा देने वाले भजन ‘‘संस्कारों का दीप बुझा रही पश्चिम की आंधी’’ की प्रस्तुति देकर लोगों को भक्ति रस से सराबोर कर दिया। धर्मसभा में लक्की ड्रॉ के माध्यम से 11 भाग्यशाली श्रावक-श्राविकाओं को पुरस्कृत किया गया। इसके लाभार्थी नवरतनमल अनमोलकुमार बापना परिवार रहा। पर्युषण के पांचवें दिन प्रार्थना के बाद राजेन्द्रजी तातेड़, प्रवचन के अंत में सतीशजी बोहरा एवं नवकार मंत्र जाप में हस्तीमलजी बोहरा़़ परिवार की ओर से प्रभावना का वितरण किया गया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा, मंत्री सुरेन्द्र चोरड़िया एवं पदाधिकारियों द्वारा किया गया। धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे सैकड़ो श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।
अंतगड़ दशांग सूत्र एवं कल्प सूत्र का वाचन एवं विवेचना
पर्युषण के पांचवें दिन सुबह 8.30 बजे से अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचना पूज्य आगममर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्री म.सा. के मुखारबिंद से हुई। उन्होंने पांचवें वर्ग का वाचन पूर्ण करने के साथ छठे वर्ग का वाचन शुरू किया। इस दौरान उन्होंने बताया कि मूल आगम में 23 लाख 28 हजार गाथाएं थी जो छेद होते-होते अब मात्र 900 गाथाएं रह गई है। अंतगड़ दशांग सूत्र मोक्षगामी आत्माओं का सूत्र है। केवल पर्युषण तक सीमित नहीं रहकर वर्ष में 5-7 बार तो इसका स्वाध्याय करना ही चाहिए। उन्होंने गाथाओं में आ रहे विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि जीवन में स्वच्छन्दचारी बनकर कभी किसी पर कुदृष्टि नहीं डाले। बड़ो के समक्ष हमारी नजरे हमेशा नीची रहना संस्कारवान होने का प्रतीक है। पर्युषण अवधि में दोपहर 2 से 3 बजे तक कल्पसूत्र वांचन भी पूज्य आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद हो रहा है। इसमें वह कल्प सूत्र में विभिन्न प्रसंगों को सुनाने के साथ उनके महत्व व प्रभाव के बारे में चर्चा कर रहे है।
पर्युषण में लग रहा तपस्याओं का ठाठ
रूप रजत विहार में प्रथम बार हो रहे चातुर्मास में पर्युषण पर्व के दौरान जप, तप व साधना का ठाठ लगा हुआ है। किशनगढ़ से आई सुश्राविका निमिषा कोठारी ने शुक्रवार को 8 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने शुक्रवार को पांच उपवास के प्रत्याख्यान लिए। इसी तरह कई श्रावक-श्राविकाओं ने चार, तेला, बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन के भी प्रत्याख्यान लिए। पर्युषण के दौरान कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास, आयम्बिल व एकासन की अठाई करने की भावना रखते हुए कूपन भी लिए है। इस तरह कई श्रावक-श्राविकाएं दिन में 15-18 सामायिक की धर्मसाधना भी रूप रजत विहार में ही कर रहे है। पर्युषण में अखण्ड नवकार महामंत्र जाप चौथे दिन शुक्रवार को भी जारी रहा। जाप शुरू होने के बाद श्रावक-श्राविकाएं निरन्तर अपने तय समय पर नवकार महामंत्र की आराधना करने में जुटे हुए है।
हर दिन अलग-अलग विषयों पर प्रवचन एवं प्रतियोगिताएं
अष्ट दिवसीय पर्युषण पर्व में प्रतिदिन अलग-अलग विषयों पर प्रवचन के साथ प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से धार्मिक भावना से ओतप्रोत प्रतियोगिताएं हो रही है। इनके माध्यम से भी श्रावक-श्राविकाओं को धर्मसंदेश देने के साथ जिनशासन से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। इसके तहत पांचवें दिन आधुनिक नहीं आध्यात्मिक बने विषय पर प्रवचन हुआ तो दोपहर में हाव-भाव प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में श्राविकाओं ने उत्साह से भाग लिया। पर्युषण पर्व में विशेष प्रवचन के तहत रविवार 17 सितम्बर को नशा नाश का कारण, 18 को वाणी को मधुर कैसे बनाएं विषय पर प्रवचन होंगे। संवत्सरी पर 19 सितम्बर को मैत्री दिवस एवं सामूहिक क्षमायाचना विषय पर प्रवचन होंगे। इसी तरह 17 सितम्बर को जैन हाउजी एवं 18 को दिमागी कसरत (लिखित) प्रतियोगिता होगी।
पन्नालालजी म.सा. की जयंति पर भिक्षु दया कल
पर्युषण पर्व के दौरान ही रविवार 17 सितम्बर को पूज्य प्रवर्तक पन्नालालजी म.सा. की 135वीं जयंति भी महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में मनाई जाएगी। इस अवसर पर धर्म साधना के तहत भिक्षु दया का आयोजन किया जाएगा। साध्वीजी ने कहा कि कर्मो की निर्जरा के लिए इस तरह के आयोजन में सभी श्रावकों को सहभागिता करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी तरह 18 सितम्बर को श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनिजी म.सा. की जयंति पर ध्यान साधना का आयोजन कराया जाएगा। इसी दिन पूज्य संत अमरेशमुनिजी ‘निराला’ की जयंति भी मनाई जाएगी।
एकासन की सिद्धी तप आराधना 23 सितम्बर से
पर्युषण पर्व के बाद भी तपस्याओं का दौर समाप्त नहीं होने वाला है। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी के सानिध्य में 23 सितम्बर से एकासन का सिद्धी तप शुरू होने जा रहा है। इस तप साधना के तहत एक एकासन पारणा, दो एकासन पारणा इस तरह निरन्तर गतिमान रहते हुए आठ एकासन पारणा तक जाना होगा। कुल 44 दिन की इस तप साधना में 36 दिन एकासन के एवं आठ दिन पारणे के रहेंगे। कोई भी श्रावक-श्राविका इस तपस्या में सहभागी हो सकता है। एकासन सिद्धी तप करने वालों का श्रीसंघ द्वारा सम्मान किया जाएगा।
निलेश कांठेड़, मीडिया समन्वयक