Saturday, September 21, 2024

स्वस्थ रहने के लिए कुछ खास बातें….

आयुर्वेदिक शास्त्रों में विशेष निर्देश दिया गया है कि-
सौ काम छोड़कर खाना,हजार काम त्यागकर नहाना
और लाखों कार्य छोड़कर पाखाना। क्योंकि पेट सफा, तो सब रोग दफा यानी पाखाना साफ होने से सारी बीमारी मिट जाती है और पुनः कभी होती ही नहीं है।

कब्ज ने कब्जा कर रखा है-उदर में…
शरीर में कब्ज का कब्जा होने से सारा जज्बा, आत्मविश्वास नेस्तनाबूद हो जाता है।
आयुर्वेद के ऋषि-मुनि कहते हैं कि यदि जीवन से राग है, परिवार से प्रेम है, तो तन-मन को रोग-रहित बनाओ।
रसेन्द्र सारः सहिंता के अनुसार कब्ज के कारण २५ प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं….
हरेक बीमारी की शुरुआत कब्ज से ही होती है। पेट की लगातार खराबी से तन-मन, जीवन बर्बाद हो जाता है।
गैस बनी, तो रिलेक्स खत्म…
आयुर्वेद का नियम है…उदर वायु से आयु
क्षीण हो जाती है। गैस विकार शरीर में हाहाकार मचा देते हैं।
पेट की खराबी से होते हैं अनेक तरह के रोग….
【१】हृदय कमजोर होने लगता है।
【२】सिर में लगातार दर्द बना रहता है
【३】गुदा और गुर्दे के रोग होने लगते हैं।
【४】लिवर, किडनी, आंते और पाचनतंत्र विकृत हो जाते हैं।
【५】पेट में दर्द बना रहता है।
【६】बीपी हाई रहता है
【७】चक्कर आते रहते हैं।
【८】सिर व शरीर भारी रहता है।
【९】हाथ-पैरों में कम्पन्न रहता है।
【१०】बुढ़ापा जल्दी आता है।
【११】आंखें कमजोर होने लगती है।
【१२】कब्ज के कारण ही वातरोग पैदा होते हैं।
【१३】कफ की शिकायत रहती है।
【१४】खून की कमी होने लगती है।
【१५】भूख लगने बन्द हो जाती है।
【१६】किसी काम में मन नहीं लगता।
【१७】याददाश्त कमजोर होने लगती है।

【१८】मोटापा तेजी से बढ़ने लगता है।
【१९】स्वभाव चिढ़ चिढ़ा हो जाता है।
【२०】रात को नींद नहीं आती।
【२१】 हमेशा चिन्ता बनी रहती है।
【२२】शुक्राणु क्षीण होने लगते हैं।
【२३】महिलाओं को भयानक स्त्रीरोग
घेर लेते हैं। उनकी सुन्दरता कम होने लगती है। चेहरे की चमक मिट जाती है।

【२४】बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता।
【२५】केन्सर, मधुमेह, अल्सर, बवासीर,
थायरॉइड आदि ऐसी बहुत सी बीमारियों
का कारण कब्ज है।

आयुर्वेद ग्रंथों में कब्जियत के बारे में विस्तार से बताया है। कब्ज या कॉन्स्टिपेशन से मुक्ति के लिए- करें ये उपाय…

मॉर्निंग वॉक एव व्यायाम नियमित करें।
प्राणायाम की आदत बनाये।
रात का खाना भरपेट न लें।
रात्रि में दही का सेवन कतई न करें।
रात्रि में सोते समय और सुबह उठते ही अधिक से अधिक सादा पानी ग्रहण करें। गर्म नहीं,
ताकि आँतों में खुश्की उत्पन्न न हो।
सप्ताह में दो बार मूंग की दाल का पानी जरूर पिएं। हो सके, तो मूंग की दाल में रोटी गलाकर खावें। पेट के रोगों में यह बहुत मुफीद है।
अमरूद, गुलकन्द, मुनक्का, किसमिस, अनारदाना और अमलताश गूदा आदि
कब्जनाशक तथा पेट को ठीक रखने वाली प्राकृतिक ओषधियाँ हैं। जिनका ज्यादा से ज्यादा सेवन करने की आदत डालें।
रात को फल, जूस, सलाद के सेवन से बचें।
अरहर की दाल सबसे ज्यादा कब्ज
पैदा करती है।
पेट की बहुत सी बीमारी इसी की वजह से होती है। इसका उपयोग कम से कम करें। यदि खाने का बहुत मन हो तो अधिक से अधिक जल जरूर पियें।
एसिडिटी रहती हो, तो खाने के बाद
एक पान गुलकन्द युक्त चबा-चबाकर खाएं।
सुबह बिना नहाए कुुुछ भी
अन्न न लेवें। अधिकांश लोगों ने यह
आदत बना ली है कि…सुबह चाय के
साथ बिस्किट आदि बिना स्नान के ही
लेते हैं, जो शरीर के लिए बेहद हानिकारक है।
दरअसल हमारे शरीर में 70 फीसदी
पानी का हिस्सा है, इसलिए शरीर की पहली
जरूरत पानी है।
पानी जवानी बनाये रखता है। पानी से ही
वाणी शुद्ध होती है। बिना नहाए, खाया गया अन्न शरीर में अनेकों दोष एवं रोग उत्पन्न करता है।
पेट साफ करने वाले चूर्ण सनाय तथा शुद्ध जयपाल जैसी नुकसानदेह ओषधियों से निर्मित होते हैं, जो तत्काल तो लाभ देते हैं, किन्तु बाद में रोगों का कारण बनते हैं। इनसे बचे।
~ आयुर्वेद औषधियों की सेवन विधि…

आयुर्वेद में अनुपान का विशेष महत्व है। कौन सी ओषधि कब, कितनी मात्रा में कैसे खानी है इस बात का ध्यान रखें, तो आयुर्वेद अमृत समान है।

【!】जैसे-इच्छाभेदी रस का मूल घटक शुद्ध जयपाल है। यह औषधि बेहतरीन दस्तावर है। इसे ठंडे पानी से लेने पर 4 से 5 बार दस्त लगते हैं और गर्म पानी से लेने में दस्त बन्द कर देती है।

【!!】अमृतम विरेचनी टेबलेट भी शुद्ध जयपाल युक्त है।

【!!!】भैषज्य कल्पना विज्ञान ग्रन्थ के अनुसार…हरड़ सभी पेट के रोगों को ठीक कर देती है।

【!v】हल्दी का सेवन लाभकारी है,हल्दी की मात्रा 25 से 50 mg तक निर्धारित है। इससे अधिक लेने पर गर्मी, खुश्की करती है।

【v】नीम इतना ही खाना चाहिए, जिससे कंठ कड़वा हो जाये। ज्यादा लेने पर यह पित्त की वृद्धि करता है।

कौनसा जूस या रस कितनी मात्रा में लेना चाहिए…

आयुर्वेद चंद्रोदय, द्रव्यगुण विज्ञान, आयुर्वेदिक निघण्टु, भावप्रकाश शास्त्रों के अनुसार शरीर की गन्दगी दूर करने का तरीका-

【१】लौकी का जूस 20 से 50 ml तक लेना चाहिए ।

【२】करेले का रस 10 ml लेना पर्याप्त है।

【३】नीम, बेल के पत्तों की 2 से 3 नई कोपल ही लाभदायक है।

【४】आयुर्वेद के अनुसार कोई भी चीज जितनी सही बताई गई मात्रा में लेंगे, उतना कारगर होगी।

【५】अनेक लोग एक से दो चम्मच तक हल्दी का उपयोग करते हैं, यह हानिकारक है।

【६】रात में ठंडा दूध कफ बढ़ाता है और सुबह ठंडा दूध पियें, तो पित्त सन्तुलित होता है।

ऐसे बहुत से अनुपान आयुर्वेद में बताएं है।

【७】शहद और देशी घी बराबर लेने पर विष हो जाता है।

【८】दिन भर में एक से अधिक नीबू का रस लेने से नपुंसकता आने लगती है।

【९】अरहर की दाल खाएं, तो उस दिन पानी 4 गुना पियें।

【१०】उड़द की दाल की तासीर देशी घी से बेहतरीन होती है।

【११】दिन भर इन समुद्री या सादा नमक 60 फीसदी और सेंधा, काल नमक 40 फीसदी लेना चाहिए।

【१२】कुछ लोग केवल सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करते हैं, जिससे रक्त नाड़ियाँ दूषित होने लग जाती हैं।बार बार नमक बदल कर लें।
आयुर्वेद ज्ञान से भरा हुआ है,आयुर्वेद अपनाओ स्वस्थ हो जाओ।

डाॅ. पीयूष त्रिवेदी, एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ

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